सुविचार कबीरदास जी ने कहा है- "निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिनु पानी साबुन बिना, निरमल करत सुभाय।।" यह सच है कि पीठ पीछे की गई आलोचना 'बुराई' कहलाती है, जबकि मुख के सामने की गई आलोचना व्यक्तित्व में सुधार ला सकती है। अतः आलोचना से घबराएँ नहीं, उसे स्वीकार करें।"
क्षमा वीरस्य भूषणम् पर्युषण महापर्व जब है आता, अंतःकरण पावन कर जाता। क्षमा दान है महादान, ये जियो-जीने दो का भी पाठ पढ़ाता। भुलाकर बैर भाव सब पिछले, जो मन का सारा मैल बहाता। सच्ची है उसकी क्षमा प्रार्थना, जो भूलों पर दिल से पछताता। शुरुआत हम खुद से करते, माँग रहे हैं क्षमा जोड़ दोउ हाथा। शुद्ध भाव धर हर प्राणी को, जो क्षमा करे वो ही सच्चा दाता।।
"जैन धर्म का पावन पर्व है, दस लक्षण दस धर्म। उसमें भी जो क्षमा भाव है, करता शुद्ध अंतरंग।। हाथ जोड़ हम शीश झुकाते, भूल के सारी अनबन। मन, वाणी और काय से माँगें, क्षमा करो सब जन।।" उत्तम क्षमा, सबसे क्षमा, सबको क्षमा। क्षमा वीरस्य भूषणम्'