सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिंदी कविता 'पर्यावरण को सुंदर बनाएँ'

पर्यावरण को सुंदर बनाएँ आओ मिल-जुल पेड़ लगाएँ, पर्यावरण को सुंदर बनाएँ। पेड़ों से ही हमको मिलते     रंग-बिरंगे फूल और फल, इन्हें देखकर और खाकर,      पड़ जाता मन-तन को कल।   घनी पत्तियाँ इसकी देतीं        तपतों को शीतल छाँव पवन, प्राणदायी ऑक्सीजन पाकर       धन्य हो जाता है हर जन।  जड़ भी इसकी बड़े काम की     पानी सींच धरती को रखे नम,  अन्न इसका खाकर ही     जीवन धारण करते हैं हम। बीमारियों से दूर रखें      इसकी औषधियाँ हैं पावन, टहनी लकड़ी भी उपयोगी     देतीं दातुन और ईंधन। पेड़ों से ही शोभा पाते    सारे जंगल और उपवन, यदि बचाया नहीं इन्हें तो     नष्ट हो जाएगा जन-जीवन।

हिंदी कविता 'गौरैया की पुकार'

इस बार की गर्मी में बच्चो खूब मस्ती, होमवर्क करना है जूस शरबत पीने के संग  तुमको एक काम ये करना है इन छोटी-छोटी गौरैयों का, चीं-चीं स्वर भी सुनना है। तपती गर्मी में चलती है लू से भरी हुई जब आँधी पानी मिलता नहीं दूर तक दिखती छाया न दाना है  कटोरे में दाना-पानी भरकर, आँगन-छत पर रखना है। चीं-चीं करतीं ये गौरैयाँ  जब पानी पीने आएँगी नहीं डराना नहीं भगाना अपनत्व उनसे जताना है इस बार तुम ठान लो मन में, ये कि उन्हें बचाना है। दो बूँद पानी के अभाव में न तोड़े दम कोई भी पक्षी इन निरीह प्राणियों के जीवन में  आस-विश्वास तुम्हें जगाना है मिट्टी के बरतन में पानी रख, तुमको वचन निभाना है।

हिंदी लेख 'नकल पर कैसे लगेगी नकेल'

नकल पर कैसे लगेगी नकेल उत्तर प्रदेश में नकल पर रोक लगाने की बात बड़े ज़ोरों पर चल रही है। उत्तर प्रदेश या बिहार में ही नहीं, कमोवेश देखा जाए तो यह अनेक प्रदेशों की समस्या है। सरकारें नकल पर नकेल कसने में अपने को असहाय पाती हैं। अनेक केंद्रों पर धड़ल्ले से सामूहिक नकल होती रहती है और प्रशासन विवश एवं मूक बना देखता रहता है।   अब सवाल यह आता है कि ऐसा नज़ारा आमतौर पर सरकारी स्कूलों में ही देखने को क्यों मिलता है? इसका सीधा-सा उत्तर है कि उन्हें नकल की सहूलियतें प्राप्त हैं, जबकि प्राइवेट स्कूलों में तो छात्रों को गरदन घुमाने की भी अनुमति नहीं मिलती। इसी से जुड़ा एक अन्य अहम् सवाल ये भी है कि आखिर सरकारी स्कूलों के छात्रों को ही नकल करने की ज़रूरत क्यों पड़ती है?  ऊपरी तौर पर इसका उत्तर यह कहकर दिया जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षारत छात्र पढ़ता नहीं है। कारण अनेक गिनाए जा सकते हैं, जैसे-घर का माहौल शिक्षा के लिए उपयुक्त न होना, माता-पिता का पढ़ा-लिखा न होना, पढ़ाई के साधनों का पर्याप्त अभाव आदि, जिनकी वज़ह से वह पढ़ाई की बजाय नकल के भरोसे बैठा रहता है।  पर बुनियादी तौर पर देखा जाए तो

हिंदी लेख ‘शिक्षा का उद्देश्य’

शिक्षा का उद्देश्य महात्मा गांधी ने कहा था-‘‘चरित्र निर्माण ही शिक्षा का अंतिम लक्ष्य है।’’ यह सच है कि शिक्षा मनुष्य के अंदर छिपी शक्तियों को बाहर लाती है, उसे व्यावहारिकता सिखाती है, समझदार बनाती है, दुनियादारी, धर्म, नैतिकता की शिक्षा देती है। क्रोध, हिंसा, ईष्र्या, घृणा आदि नकारात्मक भावों को हटाकर उसके अंदर निहित दया, करुणा, सहिष्णुता, क्षमा आदि सकारात्मक भावों को बढ़ावा देती है, मानसिक शक्ति में वृद्धि करके उसके चरित्र-निर्माण में सहायक बनती है। और इससे भी बड़ा है कि वह उसके अंदर अच्छे विचारों को जाग्रत करके, उसे पशु से ऊपर उठाती है, उसमें मनुष्यता के भावों का संचार करके उसे सही अर्थों में मानव बनाती है।  पर, आज हम देखें तो शिक्षा अपने इस महान उद्देश्य से भटकी हुई नज़र आती है। पुस्तकीय ज्ञान देना ही इसका चरम लक्ष्य बनता जा रहा है। आज की शिक्षा मात्र सूचनाएँ प्रदान करने का साधन भर रह गई है। वह बालक को पढ़ना, लिखना, बोलना तो सिखा रही है, पर उसे जीने का सही तरीका नहीं सिखा पा रही है, उसे जीवन की परिस्थितियों का सामना करने योग्य नहीं बना पा रही है। वह उसे अभियंता, चिकित्सक, वकील, व

हास्य कथा ‘मुफ़्तखोर मित्र की दावत’

मुफ़्तखोर मित्र की दावत हम चार मित्र हैं। हममें से एक मित्र को मुफ़्त में दावतें उड़ाने का बहुत शौक था। जहाँ भी दावत होती देखता, वहीं बिन बुलाए पहुँच जाता और मज़े से दावतें उड़ाता। हम तीनों उसकी मुफ़्तखोरी की इस आदत से बहुत परेशान थे, क्योंकि वह हमें भी कई बार चूना लगा चुका था। होटल में खाना खाकर जब भी बिल चुकाने का नंबर आता तो वह कोई-न-कोई बहाना बनाकर वहाँ से खिसक जाता। एक दिन हम तीनों ने उसे सबक सिखाने की ठानी। मैंने उससे कहा कि मेरे पड़ोस में जो शर्माजी रहते हैं, कल ईडन गार्डन होटल में उनके बेटे की शादी है। सुना है, बहुत शानदार दावत का इंतज़ाम है। शहर के सुप्रसिद्ध होटल में शादी की दावत सोचकर ही उसके मुँह में पानी आ गया। मैंने कहा, चाहो तो तुम तीनों भी मेरे साथ चल सकते हो। बाकी दोनों मित्र तो मेरी योजना से परिचित थे ही, सो उन्होंने तुरंत हामी भर दी और मुफ़्तखोर मित्र को तो जैसे मुँह माँगी मुराद ही मिल गई। अगले दिन दावत में पहुँचकर मुफ़्तखोर मित्र ठूँस  ठूँस कर खाने लगा। जैसे ही वह भीड़ में मिठाई लेने घुसा, वैसे ही हम सभी मित्र वहाँ से खिसक लिए। वहाँ एक रोबीले, लंबे-चैड़े सज्जन थे, जो सब

हिंदी कविता 'काले बादल'

काले बादल  उमड़ घुमड़ आए काले बादल, संग अपने जल लाए बादल। मेघों ने नभ में डेरा डाला, चहुँ दिशि गहराया तम काला। नहीं मानेंगे बरसे बिन बादल, संग अपने जल लाए बादल। बच्चा, बूढ़ा नहीं कोई उदास, तपती धरती की बुझ गई प्यास। सुदूर से चलकर आए बादल, संग अपने जल लाए बादल। गली-कूचा या ताल-बाबड़ी, सब में बूँदों की लगी झड़ी। नहर-कुएँ भी भर देंगे बादल, संग अपने जल लाए बादल। बादलों की यही सुखद है गाथा,  मानवता का समझें बस नाता। स्वयं मिट, पर को रखते शीतल, संग अपने जल लाए बादल। उमड़ घुमड़ आए काले बादल, संग अपने जल लाए बादल।

हिंदी कविता ''परीक्षा हाॅल में गोलू जी''

परीक्षा हाॅल में गोलू जी परीक्षा हाॅल में बैठे गोलू जी दिमाग पर डाल रहे थे ज़ोर, हाय, कहाँ गई सारी पढ़ाई मेहनत तो की थी जी-तोड़। हो गया था सब सफाचट नहीं आ रहा कुछ भी याद, लग रहा था पेपर सारा ही हो जैसे आउट ऑफ   कोर्स। नज़रें दौड़ाईं इधर-उधर शांति छाई थी चहुँ ओर, लिखने में व्यस्त थे संगी-संगी नकल की दिखी न कोई सोर्स । जब अध्यापक ने पाठ पढ़ाए तब क्यों मचाते थे हम शोर, हाय! शैतानी कुछ काम न आई ये सोच खुद को रहे अब कोस। अपने इष्ट को याद किया फिर की प्रार्थना दोनों कर जोड़, मेरी नैया को अब तुम ही तारो भँवर में न देना मुझको छोड़। बालक अज्ञानी जान के मुझसे मत लेना भगवन् मुख तुम मोड़, इस बार बन जाओ मेरा सहारा  करूँगा पढ़ाई  अब  निशि भोर  ।  पर जबाव में मिला न उत्तर  सिर धुन-धुन अब रहे थे सोच, अब न करूँगा कोई नादानी पढ़ाई पर न आने दूँगा लोच। पर अभी जो पेपर पड़ा सामने उसका न मिलता था कोई छोर, दुःखी मन से गोलू जी ने फिर काॅपी को क्लीन ही दिया छोड़।

हास्य कविता on politics ‘जोगीरा सारारारा’.................

हास्य कविता on politics  ‘जोगीरा सारारारा’.. . मोदी के दरबार में, भई विधायकों की भीड़। राहुल अखिलेश गुमसुम हुए,  उठी मन में टीस।। जोगीरा सारारारा............................................. गठबंधन कुछ काम न आया,  वोटों से हुए फकीर। औंधे मुँह अब गिरे.पड़े,  लिपटाए कमल की कीच।। जोगीरा सारारारा............................................ डिंपल भाभी दे रहीं  तसल्ली,  भर.भर नैनों में नीर। पर नमो का हँसता चेहरा,  अखिलेश की बढ़ा रहा पीर।। जोगीरा सारारारा............................................ अखिलेश भैया हैरत में सोचें,  रैलियों में तो थी भारी भीड़। जनता हँसकर बोली हम तो थे,  पप्पू को देखने को अधीर।।   जोगीरा सारारारा........................................... लैपटाप बाँटना काम न आया,  एक्सप्रेस वे ने भी नहीं लुभाया। यू0 पी0 की जनता को बूझने का,  भैया कर रहे प्रयास गंभीर।। जोगीरा सारारारा............................................ मणिपुर में नारियल का पेड़ खड़ा,  हो रहा बहुत उदास। मेरे जूस को राहुल बाबा,  अब कैसे करेंगे निर्यात।। जोगीरा सारारारा..............................

होली पर विशेष, घर पर बनाएँ होली के लिए प्राकृतिक रंग

घर पर बनाएँ होली के लिए प्राकृतिक रंग आप जानते ही हैं कि बाज़ार में होली के जो रंग मिलते हैं , वे अधिकतर कैमीकल युक्त होते हैं। इनके प्रयोग से त्वचा , आँख तथा श्वांस संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। अतः हम आपको घर पर ही कुछ प्राकृतिक रंग बनाने की जानकारी प्रदान कर रहे हैं , ताकि आपकी होली सुरक्षित , यादगार एवं खुशनुमा बन सके। तो आइए , जानते हैं इन प्राकृतिक रंगों के विषय में , जिन्हें आप आसानी से तथा कम लागत में तैयार कर सकते हैं - फल , सब्ज़ी , मसालों आदि से बनाएँ - लाल (रेड) रंग- चुकंदर को छीलकर छोटे - छोटे टुकड़ों में काट लें। मिक्सी   में पीसकर मोटी छलनी में छान लें और पानी की बाल्टी में मिला लें। लाल रंग तैयार है। लाल अनार के छिलकों को पानी में उबाल लें। उसमें टमाटर एवं गाजर का जूस मिलाएँ। तैयार होने पर बाल्टी के पानी में मिला लें। हरा   ( ग्रीन )   रंग - बाज़ार से मेंहदी का सूखा पाउडर लें आएँ। उसे पानी में मिला