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दिसंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

KAREENA +SAIF =TAIMUR (NAAM ME KYA RAKHA HAI)

तैमूर अली खान  सबसे पहले तो करीना और सैफ को पुत्र-रत्न की बधाई! आमतौर पर जब बच्चे का जन्म होता है तब नाते-रिश्तेदार, बड़े-बुज़ुर्ग, पंडित आदि नवजात शिशु के लिए बहुत-से नाम सुझाते हैं। अनेक बार शिशु के माता-पिता स्वयं भी पहले से ही नाम चुनकर रखते हैं। शायद करीना-सैफ के शिशु के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो, तभी तो उन्होंने पुत्र-रत्न की प्राप्ति होने के बाद उसके नाम की घोषणा करने में ज़्यादा वक्त नहीं लिया। और नाम भी कुछ साधारण नहीं, बल्कि ऐसा जिसने सोशल मीडिया में हलचल पैदा पैदा कर दी। नाम अप्रचलित या सर्वथा नया नहीं है, बल्कि चौदहवीं शताब्दी में उज्बेगिस्तान में जन्मे एक शासक के नाम पर है। पर इस शासक की गणना संसार के सबसे क्रूर और निष्ठुर शासकों में की जाती है, नाम है-तैमूर। फिर भला सैफ-करीना को अपने पुत्र के लिए यही नाम क्यों सूझा? इसका उत्तर तो वही दे सकते हैं। अपने बच्चे के नाम का चुनाव करना प्रत्येक माँ-बाप का अधिकार है। पर हम तो इतना ही कहेंगे कि या तो इतिहास के पन्नों में स्याह अक्षरों में दर्ज़ इस शासक के विषय में इन्हें कोई जानकारी नहीं है या फिर अति उत्साह में कुछ नयापन करने

HINDI STORY (MAMTA KA NAYA CHEHRA)

ममता का नया चेहरा मैं रोज़ की तरह आज भी सुबह की ठंडी और ताज़ी हवा का आनंद लेने निकल पड़ा हूँ। पार्क के पास पहुँचा तो एक कुतिया ने मुझे देखते ही ज़ोर-ज़ोर से भौंकना शुरू कर दिया। कहीं वो काट न जाए, यह सोचकर मैंने उसे डराने के लिए अपना डंडा आगे किया ही था कि वह भागकर सड़क के किनारे लगे पेड़ के पास जाकर खड़ी हो गई और वहीं से भौंकने लगी। अनायास मेरा हाथ वहीं का वहीं ़रुक गया, क्योंकि मैंने देखा कि वह जिस स्थान पर खड़ी थी, वहाँ उसका एक बच्चा लेटा हुआ था। मैंने उत्सुकतावश कुछ पास जाकर गौर से देखा, तो पाया कि वह उसका नवजात शिशु था, जो शायद सर्दी के कारण मर गया था। वह कुतिया संभवतः उसकी सुरक्षा के कारण ही हर आते-जाते पर भौंक रही थी। मेरे मन में उस असहाय कुतिया के प्रति हमदर्दी उमड़ पड़ी। मैं पार्क के अंदर न जाकर वहीं पार्क की बाउंड्री पर बैठ गया और उसकी गतिविधि को देखने लगा। वो दूर से ही किसी को देख लेती थी, तो भागी हुई उस तरफ जाती और भौंककर उसे अपने शिशु के पास जाने से रोक देती। अभी पाँच मिनट ही बीते थे कि वहाँ एक कूड़ा भरने वाली गाड़ी आकर रुकी। पहले तो कूड़े वाले ने सड़क के दूसरी ओर का कूड़ा उठाना शुरू

HINDI SANSMARAN बदलता बचपन (BADALTA BACHPAN)

संस्मरण बदलता बचपन एक बार कृष्णा सोबती जी की रचना पढ़ी-‘मेरा बचपन’। पढ़कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि लेखिका के बचपन में हर चीज़ कितनी सस्ती मिलती थी, सच, कितना अच्छा होगा उनका बचपन। पर आज़ जब मैं अपने अतीत की ओर झाँकती हूँ, तो देखती हूँ कि मेरा बचपन भी तो आज के बच्चों के बचपन से कितना अलग, कितना अच्छा था। भले ही मेरे बचपन में चीजें उतनी सस्ती तो न थीं, जितनी कृष्णा सोबती जी के बचपन में थीं, पर ऐसा बहुत कुछ था, जिसे याद करके खुश...... नहीं, बल्कि बहुत खुश हुआ जा सकता है। तब भी चीज़ें आज के जितनी महँगी तो न थीं। मुझे आज भी याद है, तब मात्र चालीस-पचास हज़ार में नया बना-बनाया घर मिल जाया करता था। यह बात अलग थी कि तब उसे भी महँगा ही समझा जाता था। पर आज फ्लैट कहे जाने वाले ये दड़बेनुमा घर (जो उस समय कम-से-कम छोटे शहरों में तो बिल्कुल न थे) बीस-पच्चीस लाख में मिलते हैं। तब हम बच्चों के खेल भी बिल्कुल अलग हुआ करते थे। बादलों को देखकर उनमें दादी माँ, ऐरावत हाथी या फूल-पक्षी की कल्पना करने के अलावा गिट्टी फोड़, ऊँच-माँगी नीच, किल-किल काँटे, पोसमपा, विष-अमृत, लुका-छिपी, लँगड़ी टाँग.............और भी न जाने

HINDI EKANKI (TIME PASS)

,dkadh टाइम पास पात्र- पोपटलाल जी-उम्र (लगभग पैंतालीस साल), रंग साफ़, हल्की मूँछें। सुमित्रा-पोपटलाल जी की पत्नी (उम्र लगभग चालीस साल) रामप्रसाद जी (पोपटलाल जी के मित्र) रंग साँवला, पैंट-शर्ट पहने हुए हैं। (कुर्ता पायज़ामा पहने तथा आँखों पर चश्मा चढ़ाए पोपटलाल जी, कमरे में एक कुर्सी पर बैठे अखबार के पन्ने पलट रहे हैं।) पोपटलाल जी (ऊँचे स्वर में पढ़ते हुए )-महँगाई के कारण एक परिवार ने की सामूहिक आत्महत्या, कर्ज़ में डूबे किसान फसल चैपट होने से भुखमरी के कगार पर, प्याज और आलू की कीमतों में उछाल। (अखबार को मेज़ पर लगभग फेंककर, झुँझलाते हुए)-समझ में नहीं आता, आखिर आम आदमी इस महँगाई में करे तो क्या करे? रामप्रसाद जी (कमरे में प्रवेश करते हुए, हँसकर)-पोपटलाल जी, लगता है भाभीजी बोलने का वक्त नहीं देतीं, इसलिए अकेले-अकेले ही बड़बड़ाए जा रहे हो। पोपटलाल जी (सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हैं, उनके स्वर में अभी भी झुँझलाहट है)-आइए!आइए! बैठिए रामप्रसाद जी! क्या बताऊँ, इस महँगाई ने तो नाक में दम कर रखा है। रामप्रसाद जी-तो, ये बात है। (चुटकी लेते हुए) लगता है, आज़ इतवार होन

HINDI EKANKI (BIKHARTA SAPNA)

एकांकी बिखरता सपना पात्र- धीरजकुमार जी -उम्र-लगभग पैंतालीस साल रामलाल जी -इनकी उम्र भी लगभग पैंतालीस साल चित्रा- धीरजकुमार जी की बेटी-उम्र चैबीस साल दृश्य- धीरजकुमार जी एक कुर्सी पर बैठे समाचारपत्र पढ़ रहे हैं। थोड़ी दूर पर मेज़ कुर्सी रखी हुई है,जहाँ बैठी उनकी बेटी अपनी पढ़ाई में व्यस्त है। (बाहर से रामलाल जी का प्रवेश) रामलाल जी-क्या मैं अंदर आ सकता हूँ? धीरजकुमार जी (बाहर की ओर झाँकते हुए)-कौन! रामलाल जी आप! आइए!आइए! (रामलाल जी को देखकर धीरजकुमार जी और उनकी बेटी चित्रा दोनों ही उठ खड़े होते हैं।) धीरजकुमार जी-बैठिए, बैठिए रामलाल जी।( बेटी की ओर मुखातिब होकर) बेटी, इन्हें प्रणाम करो। चित्रा-नमस्ते चाचाजी! रामलाल जी-खुश रहो बेटी! धीरजकुमार जी-चित्रा, तुमने तो इन्हें पहचाना नहीं होगा? (चित्रा ‘नहीं’ में सिर हिलाती है।) धीरजकुमार जी-अभी पिछले वर्ष जब मैं एक महीने के लिए दफ़्तर की तरफ़ से ट्रेनिंग पर गया था, तभी आपसे मेरी मुलाकात हुई थी, उस समय रामलाल जी भी अपने दफ़्तर की ओर से ट्रेनिंग पर आए हुए थे। चित्रा (याद करती हुई सी)-हाँ, हाँ,

HINDI CHILD STORY (BADLE SE BADLA HIRDAY)

बाल कथा बदले से बदला हृदय एक बंदर था-नाॅटी। हर समय अपनी शैतानियों से दूसरों को परेशान करना उसको बेहद प्रिय था।  एक बार जंगल के राजा शेरसिंह ने यह जानने के लिए मीटिंग बुलाई कि इस बार दीवाली कैसे मनाई जाए।जिस पेड़ के नीचे मीटिंग चल रही थी, उस पर मधुमक्खियों का एक छत्ता था। बस फिर क्या था, नाॅटी केे दिमाग में शरारत करने वाले कीड़े कुलबुलाने लगे। उसने चुपचाप अपनी गुलेल उठाई और छत्ते पर निशाना साध दिया। सारी मधुमक्खियाँ पेड़ के नीचे बैठे जानवरों पर बुरी तरह टूट पड़ीं। शेरसिंह समेत सभी जानवर अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। उसे इस खेल में बड़ा मज़ा आ रहा था। उसकी इस हरकत को आसमान में उड़ते हुए मिट्ठू तोते ने देख लिया था। जब उसने उसकी शिकायत राजा शेरसिंह से करने की धमकी दी, तो उसे भी गुलेल से घायल कर दिया। अगले दिन जब उसने जानवरों के सूजे हुए चेहरे देखे, तो वह अपनी हँसी रोक न पाया। उसे इस तरह हँसते हुए देखकर तथा उसकी पहले भी इस तरह की गई हरकतों के कारण दो-एक जानवरों को उस पर शक तो हुआ, पर वे बिना सबूत के भला क्या कर सकते थे। आज़ दीपावली थी। सभी जानवर खुशी से उछल-कूद रहे थे। नाॅट

HINDI POEM (MAA)

माँ  माँ तो होती है त्याग और ममता                       की मूरत दया, क्षमा, करुणा और प्रेम की सूरत। जग भर का प्रेम रखती अपने में समाए मनाती कि दुःख बच्चे को न स्वप्न में भी सताए।।   अपनी नींद भुलाकर बच्चे की नींद सोए हर पल करे यत्न कि बच्चा तनिक न रोए। छोटे से कष्ट में भी बच्चा गर पड़ जाए तो सारी रात फिर करवटों में दे बिताए।।   बच्चे के स्वप्नों को लेती अपनी आँखों में बसाए फिर उन्हें पूरा करने में, भले उम्र निकल जाए। खुश होती है बहुत, जब बच्चा मंज़िल को पा जाए दिल से निकलती हैं दुआएँ, आँखें खुशी से छलछलाए।।   वेद, पुराण, इतिहास बिना उसके पूरे न कहलाए त्रिलोक की संपत्ति भी उसका कर्ज़ चुका न पाए। उसकी महिमा के आगे खड़े कोटि देव सर झुकाए माँ की महानता के ब्रह्मा भी गुण गाए।। ब्रह्मा भी गुण गाए।।

HINDI POEM (BAADAL)

बादल   बादल गरजे घनन घनन घन बूँदे टपकीं  छनन छनन छन चली हवा है सनन सनन सन बिजली चमकी चपल चपल    मोर नाचते हो के मगन लहलहा उठी चहुँ दिश फसल किसानों के मुख पर छाई उमंग नदियों में उठ-उठ गिरती तरंग बच्चे देख-देख इंद्रधनुषी रंग मिल के बजाते सब करतल धरती झूमे नाचे अंबर देख प्रकृति के नए-नए रंग।  

HINDI POEM (SAPNA AUR SACH)

सपना और सच सपने में देखा मैंने एक सपना वर्ष 2020 का जश्न मना रहा है देश अपना। रामधुन पर लोग खुशी से झूम रहे हैं, आज़ाद, सुभाष, भगतसिंह के चित्रों से घर सज रहे हैं चारों तरफ़ हरे-भरे खेत लहलहा रहे हैं, गाय-भैंसों के संग ग्वाले नज़र आ रहे हैं, हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख मिल, प्रेम का राग गा रहे हैं   हर घर में खीर-पूरी-कचैड़ी खाए जा रहे हैं। पर अचानक खुल गई आँख, सपना टूट गया सोचा 2020 की तस्वीर तो कुछ और ही होगी तब लोग कोल्डड्रिंक और बर्गर लिए हाथों में, मैडोना, जैक्सन बन, सिगरेट के धुएँ उड़ाएँगे, जाम में फँस, धुएँ को पीते, रोगों का घर बन जाएँगे, दमघोंटू फ्लैटों में जीते, खुद के साये से डरते नज़र आएँगे, पत्थर की दुनिया से ऊबे, हरियाली की चाह में       हरे रंग से दीवारें पुतवाएँगे!      हरे रंग से दीवारें पुतवाएँगे!

HINDI POEM (SIRF HINDUSTANI KAHLAYENGE)

    सिर्फ़ हिंदुस्तानी कहलाएँगे जब हम 2020 में जाएँगे, संग विज्ञान ही नहीं , मानवता को ले जाएँगे।   बम और मिसाइलें बहुत चल चुकीं ,अब सबको प्रेम की भाषा हम सिखलाएँगे। रावण, कंस तो पैदा हुए हैं हर युग में, पर साथ में राम और कृष्ण को भी बुलाएँगे। उन्नति की डगर में, संस्कृति को पीछे छोड़ चुके, अब फिर वही गंगा-जमुनी संस्कृति को बहाएँगे। सीमा पर तो पहरे बहुत देते रहे हैं, पर अब आंतरिक समस्या को भी निबटाएँगे। सभ्यता के नाम पर, पश्चिम का करते रहे अनुकरण, अब पूरब की सभ्यता के आगे, दुनिया को झुकाएँगे। जाति-धर्म के नाम पर, देश बँट चुका बहुत, 2020 में हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख नहीं, सिर्फ़ हिंदुस्तानी कहलाएँगे।                               सिर्फ़ हिंदुस्तानी कहलाएँगे।

HINDI SHORT STORY (ASLIYAT)

लघु कथा   असलियत  ‘ ‘ओह रवि! तुम कितने अच्छे हो। तुमने मेरी बर्थ-डे पर ए0 सी0 का तोहफ़ा देकर वाकई मुझे सरप्राइज़ कर दिया है।’’ शेफाली नए एयरकंडीशनर की ठंडक को भीतर तक महसूस करके रोमांचित हो रही थी। शेफाली को इस तरह चहकते देख रवि अपने तोहफ़े के प्रति मन-ही-मन आह्लादित हो ही रहा था कि फोन की घंटी घनघना उठी। रवि ने रिसीवर कान से लगाया तो दूसरी ओर से माँ का स्वर सुनाई पड़ा-‘‘रवि बेटे, बड़ी देर से मैं और तेरे पिताजी कोशिश कर रहे हैं, पूरे एक घंटे बाद तेरा फोन मिला है।’’ माँ के इस कथन से द्रवीभूत हुए बिना रवि ने शेफाली की ओर कनखियों से देखते हुए पूछा-‘‘अच्छा माँ, ये बताओ कैसे फोन किया ?’’ ‘‘अरे बेटा, क्या बताऊँ ? इस बार बारिश न होने से पूरा गाँव सूखे की मार झेल रहा है। तिस पर गर्मी.......बिजली तो पूरे-पूरे दिन गायब रहती है। अभी थोड़े दिन पहले ही तो तेरे पिताजी की तबियत खराब होकर चुकी है। कहीं गर्मी के कारण फिर कोई मुसीबत न खड़ी हो जाए, इसलिए हम दोनों दो-एक दिन में तेरे पास पहुँच रहे हैं। बहुत दिन भी हो गए हैं, तुम सबसे मिले। सो सोचते हैं कि इस बार गर्मियों में थोड़े दिन वहीं काट लें,

HINDI CHILD STORY (BHOLU KI SAMAJHADARI)

बाल कथा भोलू की समझदारी  सुंदरवन में बहुत खुशहाली थी। सभी जानवर मिल-जुलकर रहते थे। बस परेशानी थी तो यह कि जब सभी जानवर काम पर जाते, तब पीछे से किसी-न-किसी जानवर का खाना चोरी हो जाता। सब परेशान, आखिर खाना खाता कौन है ? थक-हार कर जानवरों ने चोर का पता लगाने के लिए सभा बुलाई। सभा में जितने मुँह, उतनी बातें। तभी भोलू बंदर उठा और बोला-‘‘मुझे तो चुनमुन लोमड़ी पर शक है, क्योंकि सभी जानवर तो सुबह-सुबह अपने काम पर चले जाते हैं, लेकिन चुनमुन लोमड़ी कभी कोई काम नहीं करती, न ही अपने लिए कभी खाना ही बनाती। बस, पूरा दिन इधर से उधर घूमती ही रहती है।" सभी जानवर एक स्वर में बोले-‘‘हाँ, हाँ, भोलू ठीक कह रहा है। हमारे काम पर जाने के बाद चुनमुन ही घर पर रहती है, वह कहीं नहीं जाती।"  ये सुनते ही चुनमुन बिगड़ उठी-‘‘तुम लोगों ने मुझे बिना बात के चोर ठहरा दिया है। मैं भला चोरी क्यों करूँगी और फिर तुम्हारे पास क्या सबूत है ?’’ चुनमुन की बात सुनकर सभी जानवर चुप हो गए। भला सबूत कहाँ से लाएँ ? लेकिन भोलू जानता था कि हो न हो ये चुनमुन का ही काम है।      अगले दिन भोलू ने अपने घर पर खीर, पूरी,