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जनवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Hindi Article बिन पानी सब सून (Save Water)

‘बिन पानी सब सून’ आप दो स्थितियों पर कल्पना करें-पहली, आपके नल में यकायक पानी चला जाए और आपने पहले से समुचित पानी का भंडारण भी न किया हो और जल-निगम की ओर से सूचना आ जाए कि किसी गड़बड़ी के कारण दो दिनों तक पानी की आपूर्ति नहीं हो सकेगी। सोचिए, उस समय आप क्या करेंगे? पहले से जो पानी घर में है, उसे बहुत सोच-समझकर उपयोग में लाएँगे। साथ ही इधर-उधर से पानी जुटाने में अपना महत्त्वपूर्ण समय और शक्ति खर्च करेंगे।  दूसरी स्थिति, यदि पर्याप्त बारिश न होने के कारण जल का स्तर काफ़ी नीचे चला जाए और सरकार आपको पीने लायक पानी उपलब्ध कराने में भी असमर्थ हो रही हो, तो?............। शायद आप महँगे से महँगे दाम में भी पानी खरीदने पर विवश होंगे और जो जल घर में है, उसकी एक-एक बूँद को अमृत की तरह सहेजकर रखेंगे। दोस्तो! ये सिर्फ़ काल्पनिक किस्से नहीं हैं। यदि हमने पानी की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया और हम समय पर नहीं चेते तो ये किस्से हकीकत में बदलते समय नहीं लगेगा।  अब हम ज़रा कल्पना से निकलकर सच्चाई की ओर रुख करें तो देखते हैं कि जब हमारे घरों में समुचित जल आपूर्ति हो रही है, ऐसे में हम हज़ारों लीटर

HINDI ARTICLE PAR UPDESH KUSHAL BAHUTERE

‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’-इस पंक्ति का प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ में उस समय किया है, जब मेघनाद वध के समय रावण उसे नीति के उपदेश दे रहा था। रावण ने सीता का हरण करके स्वयं नीति विरुद्ध कार्य किया था, भला ऐसे में उसके मुख से निकले नीति वचन कितने प्रभावी हो सकते थे, यह विचारणीय है।  इस पंक्ति का अर्थ है कि हमें अपने आस-पास ऐसे बहुत-से लोग मिल जाते हैं जो दूसरों को उपदेश देने में कुशल होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग दूसरों को तो बड़ी आसानी से उपदेश दे डालते हैं, पर उन बातों पर स्वयं अमल नहीं करते, क्योंकि-‘‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।’’ हम भी ऐसे लोगों में से एक हो सकते हैं, या तो हम उपदेश देने वालों की श्रेणी में हो सकते हैं या उपदेश सुनने वालों की। अतः लगभग दोनों ही स्थितियों से हम अनभिज्ञ नहीं हैं। हमें सच्चाई पता है कि हमारे उपदेशों का दूसरों पर और किसी दूसरे के उपदेश का हम पर कितना प्रभाव पड़ता है। सच ही कहा गया है,  ‘‘हम उपदेश सुनते हैं मन भर, देते हैं टन भर, ग्रहण करते हैं कण भर।’’ फिर क्या करें? क

HINDI STORY (MIRTYU KA SACH)

मृत्यु का सच रोहन और अनिल दोनों एक ही मुहल्ले में रहते थे और बचपन से ही साथ-साथ एक ही स्कूल में पढ़े थे। दोनों का जन्म भी लगभग साथ ही हुआ था और मृत्यु भी.................पर दोनों की मृत्यु में कितना अंतर था। ‘अनिल की इस तरह की मृत्यु का मैं ही ज़िम्मेदार हूँ। वर्ना आज मेरा बेटा भी शहीद कहलाने का हकदार होता।’ सोचते हुए शर्माजी ने आँसू छलक पड़े। ‘‘शर्माजी रोओ नहीं, रोहन जैसी मौत खुशकिस्मतों को ही नसीब होती है। मेरा बेटा मरा नहीं है, बल्कि देश के लिए शहीद हुआ है। उसकी शहादत पर तो हमें गर्व होना चाहिए।’’रोहन के पिता ने शर्माजी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।’’ ‘‘हाँ, आप ठीक कह रहे हैं।’’ कहते हुए उन्होंने अपने बहते आँसुओं को रोकने की कोशिश की। पर उन आँसुओं का रहस्य वे ही जानते थे । ये देखने वालों के लिए सिर्फ़ आँसू थे, पर सच्चाई तो यह थी कि उनके इन आँसुओं में उनका दिल बह-बहकर निकल रहा था। मातम के उस माहौल में बैठे शर्माजी के अशांत हृदय और बेबस आँखों के आगे अनिल का चेहरा घूम गया।  ‘‘बेटा, अब तुम आगे क्या करना चाहते हो, मैं सोचता हूँ कि अपनी काॅलेज़ की पढ़ाई के साथ-साथ कंपटीशन की तैयारी भी शु