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जुलाई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

HINDI STORY, मध्यमवर्गीय सोच

मध्यमवर्गीय सोच ‘‘बहूजी मैं आठ-दस दिन तक काम पर नहीं आ पाऊँगी।’’ घर में काम करने वाली महरी श्यामा ने कहा। ‘‘आठ-दस दिन! क्यों , कल भी तो तूने छुट्टी कर ली थी, अब इतने दिनों  के लिए कहाँ चल दी ? ’’ ‘‘जा कहीं नहीं रही हूँ, गायत्री का रिश्ता दूसरी ज़गह पक्का हो गया है।’’ ‘‘कब ? तूने तो बताया ही नहीं।’’ रागिनी ने आश्चर्य से पूछा। ‘‘बहूजी मैं आप से ये तो कह ही रही थी कि गायत्री के मामा उसका दूसरा ब्याह करने का हल्ला मचा रहे हैं। अब मुझे तो काम से फुरसत मिलती नहीं है। पहला रिश्ता ही बड़ी मुश्किल में ढूँढ़ा था और अब दूसरा...........और फिर पहले तो कुँआरी थी, पर अब ब्याही-ठाही के लिए तो और भी मुश्किल आती।’’ ‘‘फिर अचानक ये लड़का किसने ढूँढ़ा?’’ ‘‘गायत्री के मामा ने। उनके साथ फैक्ट्री में काम करता है। उन्हीं ने बात चलाई थी। कल वो और उसके घरवाले गायत्री को देखने आ गए और हाथों-हाथ पक्का कर गए। अब लड़के वाले और गायत्री के मामा दोनों ही उसका ज़ल्दी ब्याह करना चाहते हैं, क्योंकि कहीं उसके पहले मरद को पता चल गया तो लड़की के ब्याह में रोड़े अटकाने न चला आए’’ श्यामा ने कहा। ‘‘पर तुझे थोड़ा सब्र तो

HINDI KAHANI, आलोचना से न घबराना

आलोचना से न घबराना एक मेधावी युवक बहुत अच्छी कंपनी में नौकरी करता था। उसकी मेहनत एवं लगन से प्रभावित होकर उसके मालिक ने उसे अपनी विदेश स्थित कंपनी में भेज दिया। जाने से पहले युवक बेहद चिंतिंत था। चिंता यह थी कि उसे जिस देश में भेजा जा रहा था, वह वहाँ की कार्यप्रणाली से परिचित नहीं था और उसे वहाँ एक ऊँचे पद पर भेजा जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह वहाँ के लोगों के साथ कैसे तालमेल बिठा पाएगा? उसकी चिंता दूर करते हुए उसकी माँ ने उसे सीख दी और कहा, ‘‘तुम बस एक बात ध्यान रखना कि वहाँ तुमसे कोई कुछ भी कहे, तुम्हें नाराज़ नहीं होना है, बल्कि तुम अपनी हर आलोचना, हर बेइज़्जती को हँसकर सहते जाना, पलट कर किसी से कुछ नहीं कहना।’’ युवक अपनी माँ की कही हुई बात को गाँठ बाँधकर दूसरे देश चला गया। वहाँ के कर्मचारी मौका ढूँढ़-ढूँढ़ कर उसकी पोशाक, भाषा और कार्य करने के ढंग आदि पर व्यंग्य किया करते। किसी-न-किसी बहाने उसे नीचा दिखाने का कार्य किया करते। क्योंकि उन्हें यह बात नागवार गुज़र रही थी कि किसी और देश का व्यक्ति उनका बाॅस बनकर आ गया था। पर वह बिना नाराज़ हुए प्रसन्न मन से कार्य किया करता। प्रा

HINDI POEM तरक्की का सूरज निकला, अँधेरा फिर भी न पिघला

तरक्की का सूरज निकला, अँधेरा फिर भी न पिघला तरक्की का सूरज निकला, पर अँधकार फिर भी न पिघला। कंप्यूटर, मोबाइल, राॅकेट, यानों ने, मानव की गति को बदला। पर अशिक्षा, महँगाई, प्रदूषण ने, सूरज की किरणों को निगला।। ज्यों-ज्यों विज्ञान का उत्कर्ष हुआ, मानवता हो गई किनारे । आदमी पहुँचा चाँद और  मंगल पर, संस्कार हो गए बेचारे ।।  पर बहुत हो चुका समय व्यर्थ अब, दोषारोपण से बचना होगा ।  हम सब युवाओं को मिलकर अब, कुछ न कुछ तो करना होगा।। अब नरेंद्र मोदी की छिड़ी मुहिम, जल्द भ्रष्टाचार भगा देगी। इस युग पुरुष की ताकत, राम-राज्य को फिर ला देगी।। तरक्की के सूरज की तपिश, असभ्य-अँधेरे को पिघला देगी। तरक्की का फिर से प्रकाश फैलेगा, अँधेरे की न छाया होगी।। मेरे मन तू निराश न हो, ये काली घटाएँ भी छँट जाएँगी। दिन में शुक्ल पक्ष का सूरज, रात में पूनम की चाँदनी होगी।। तरक्की के सूरज को देख अँधेरा पिघल-पिघल भागेगा। उन्नति के जय घोष के संग, मानवता का पोषण होगा।।

HINDI ARTICLE महिला सुरक्षा हेतु मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता

महिला सुरक्षा हेतु मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता   इस लेख में हमने यह देखने का प्रयत्न किया है कि महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए चारित्र्य एवं जीवन-मूल्य परक शिक्षा कितनी ज़रूरी है।  दामिनी के साथ हुए वहशी कांड के साथ ही अचानक महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अनेक सवाल उठ खड़े हुए थे। लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ और बयानबाजियाँ सामने आई थीं। सभी महिलाओं को ही सीख देने में लगे थे। मसलन, महिलाओं को रात में घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए, महिलाओं को अनजान व्यक्ति के साथ नहीं जाना चाहिए, महिलाओं को अकेले नहीं जाना चाहिए, इत्यादि...इत्यादि। पर इस सब में एक बात तो स्पष्ट है कि समाज के माहौल को बिगाड़ने वाले दूषित और विकृत मानसिकता वाले पुरुष जाति को सीख देने वाला एक भी स्टेटमेंट सामने नहीं आया। तो, क्या सब एहतियात रखने की आवश्यकता सिर्फ़ महिलाओं को ही है? जब किसी महिला की अस्मत को लूटा जाता है, तो वह कलंकित मानी जाती है, पर अस्मत लूटने वाला पुरुष कलंकित क्यों नहीं होता ? क्या ऋषि-मुनियों ने 25 वर्ष की आयु तक जिस ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक बताया था, वह पुरुषों के लिए नहीं था, यदि था तो पुरुष को

HINDI NIBANDH ON प्रदूषण

प्रदूषण आज़ादी के बाद से हमारे देश ने अनेक क्षेत्रों में बहुत सफलता प्राप्त की है, अनेक समस्याओं से देश को आज़ाद कराया है। परंतु यह भी सत्य है कि जिस प्रकार उद्योग, विज्ञान, तकनीक आदि के क्षेत्रों में उन्नति हुई है, उसी अनुपात में प्रदूषण में भी वृद्धि हुई है। आज प्रदूषण न सिर्फ भारत, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए एक खतरा बन गया है। इसीलिए हर ओर से यही आवाज़ उठ रही है- ‘‘आओ, मिलकर प्रदूषण को दूर भगाएँ।। चलो, धरती को फिर से स्वर्ग बनाएँ।’’ प्रदूषण का अर्थ- प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है-गंदगी। प्रदूषण शब्द ‘दूषण’ शब्द में ‘प्र’ उपसर्ग लगाने से बना है। दूषण का अर्थ होता है-खराब, गंदा, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक। यही कारण है कि सभी प्रकार का प्रदूषण मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। प्रदूषण के प्रकार- प्रदूषण कई प्रकार का होता है, जैसे-ध्वनि प्रदूषण, जो कि बहुत शोर-शराबे से फैलता है, भूमि प्रदूषण, यह खेती करते समय रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग तथा प्लास्टिक, पाॅलीथिन, कचरे आदि से फैलता है, जल प्रदूषण, यह फैक्ट्री आदि के अवशिष्ट पदार्थों को नदी में डालने, कूड़ा-कचरा नदी-नालों में फेंकने

HINDI ARTICLE, प्रकृति : परम उपकारी

प्रकृति : परम उपकारी   ‘परोपकार’ शब्द दो पदों से मिलकर बना है-पर+उपकार। ‘पर’ का अर्थ है ‘दूसरा’ और ‘उपकार’ का अर्थ है ‘भलाई’। अर्थात् दूसरों की भलाई करना ही परोपकार है। प्रायः हम ‘परोपकार’ का संबंध सीधे मनुष्य-मात्र से जोड़कर देखते हैं। इसका कारण यह है कि हम ‘परोपकार’ को मानव का एक अमूल्य गुण मानते हैं। हमारी दृष्टि में प्रत्येक मनुष्य के भीतर परोपकार की भावना अवश्य होनी चाहिए। हमारे देश के इतिहास में कर्ण, दधीचि आदि अनेक महापुरुष हुए हैं, जो अपने परोपकारी स्वभाव के कारण अमर हो गए। पर, यहाँ हम बात कर रहे हैं-प्रकृति में परोपकार की भावना की। हमारे विचार से परोपकार के मामले में प्रकृति की बराबरी कोई नहीं कर सकता। चाहे हम जीवनदायिनी हवा की बात करें, चाहे क्षुधा शांत करने वाले वृक्षों की, चाहे प्यास बुझाकर संतुष्टि प्रदान करने वाले अमृत तुल्य जल की। चाहे बात की जाए सूरज की ऊर्जादायिनी किरणों की, चाहे धरती की प्यास बुझाने वाले काले मेघों की। प्रकृति का प्रत्येक उपादान संपूर्ण मानव समाज पर परोपकार ही तो कर रहा है। सोच कर देखिए, पेड़-पौधे अपने फल किसे प्रदान करते हैं? फल ही नहीं, वरन् फूल,

HINDI POEM, सूखी धरती कर रही पुकार

सूखी धरती कर रही पुकार सूखी धरती कर रही पुकार, मुझ पर करो रहम-उपकार। पेड़ लगाकर मुझे हरसाओ जल के लिए न तुम तरसाओ रत्न-गर्भा पर कुछ तरस खाओ माँ कहकर छला है मुझे बेहिसाब  मुझ पर करो रहम-उपकार। पर्वत, वन, बादल मेरा गहना खेत है हँसी, खिलखिलाहट झरना अल्हड़ चाल से नदियों का बहना मेरा ये सौंदर्य क्यूँ दिया उजाड़ मुझ पर करो रहम-उपकार।       रंग-बिरंगे पक्षी गाते थे गाना पशु स्वच्छंद हो घूमते मेरे अँगना खुशी से चहकता था घर-द्वार उजाड़ दिया क्यूँ मेरा परिवार मुझ पर करो रहम-उपकार। मैं माँ हूँ अतः कोई शाप नहीं दूँगी शालीन हूँ, सो अपशब्द भी न कहूँगी रक्षक हूँ, पालक हूँ, सब कुछ सहूँगी पर मेरा रोम-रोम कर रहा चीत्कार मुझ पर करो रहम-उपकार।

HINDI ARTICLE वर्तमान परिप्रेक्ष्य में धर्म की उपयोगिता

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में धर्म की उपयोगिता इस विषय की गहराई में जाने तथा धर्म की उपयोगिता के विषय में बात करने से पूर्व हमें यह जान लेना चाहिए कि आखिर धर्म है क्या? साधारण रूप में प्रतिदिन मंदिर जाना, पूजा-पाठ करना, व्रत-उपवास रखना तथा तीर्थ-स्थलों की यात्रा करना आदि को ही धर्म मान लिया जाता है और इनका पालन करने वाले को धार्मिक। लेकिन यह धर्म का उथलापन है। धर्म मात्र इस दिखावे का नाम नहीं है, वरन् ‘धर्म’ शब्द अपने में बहुत गहराई समेटे हुए है। ‘धर्म’ का शाब्दिक अर्थ है-धारण करना। जीवन को उत्कृष्ट ढंग से जीने के लिए हमें जो गुण धारण करने चाहिए, वही धर्म है। धर्म मानव को मानव से जोड़ता है, धर्म अहिंसा, सत्य, प्रेम, मानवीयता जगाता है, धर्म हमारी आत्मा को, हमारी चेतना को पवित्र, शुद्ध एवं उदात्त बनाता है। यही कारण है कि जैन धर्म कहता है कि यदि व्यक्ति अपनी आत्मा को शुद्ध और पवित्र कर ले, तो वह स्वयं भगवान बन सकता है। जैन धर्म में भगवान को नहीं अपितु उनके गुणों को नमस्कार है। अब प्रश्न उठता है कि वर्तमान प्ररिप्रेक्ष्य में धर्म की उपयोगिता है या नहीं, यदि है तो कितनी है? इस प्रश्न का उत