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अक्तूबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Hindi Story सच्चा पाठक

सच्चा पाठक एक बार एक बहुत बड़े लेखक थे। उनकी लिखी रचनाएँ लोगों को बहुत पसंद आतीं। उनके हजारों प्रशंसक बन गए थे, जो उन्हें प्रतिदिन प्रशंसा भरे ढेरों खत लिखते। एक बार लेखक ने एक उपन्यास लिखा। हमेशा की तरह इस बार भी उनकी इस रचना को सभी लोगों ने बहुत पसंद किया और उन्हें शुभकामना भरे पत्र लिखे। पत्र पढ़ते समय एक पत्र पर उनकी निगाह अटक गई। उस पत्र में एक प्रशंसक ने उनके उपन्यास की आलोचना की थी, जिसमें उसने उस उपन्यास की कुछ कमियों की ओर लेखक का ध्यान आकर्षित किया था। इस पत्र को पढ़कर लेखक को बहुत क्रोध आया। उसने सोचा, बड़े-बड़े विद्वान तक तो मेरे इस उपन्यास की प्रशंसा कर रहे हैं, फिर भला यह कौन है जो इस तरह मेरे लेखन में कमियाँ निकाल रहा है? लेखक उसी क्षण अपने उस आलोचक बनाम प्रशंसक के लिए पत्र लिखने बैठ गए। उन्होंने इस पत्र में उस आलोचक के लिए बहुत गुस्से भरे शब्दों का प्रयोग करते हुए यहाँ तक लिख दिया कि तुम न तो एक अच्छे पाठक हो और न ही तुम्हें रचनाओं की समझ तक है। मैं एक उत्कृष्ट लेखक हूँ, सभी मेरी प्रशंसा करते हैं, यदि मेरे लेखन में कमी होती तो क्या वह अन्य रचनाकारों को नहीं दिखाई देती?

कहानी वही, सोच नई

अंगूर तो मीठे हैं आपने अपने बचपन में वह कहानी अवश्य सुनी होगी, जिसमें एक लोमड़ी भोजन की तलाश में भटक रही होती है, तभी उसे एक अंगूर की बेल दिखाई देती है। उस बेल में पके हुए अंगूर के गुच्छे लटक रहे होते हैं। देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी आ जाता है। वह उन गुच्छों को पकड़ने के लिए बहुत उछलती है। मगर लाख कोशिशों के बाद भी एक भी गुच्छा उसके हाथ नहीं लगता, क्योंकि अंगूर के गुच्छे ऊपर की तरफ लटक रहे होते हैं। अतः वे लोमड़ी की पहुँच से दूर होते हैं।   बहुत प्रयत्न के बाद जब वह थक जाती है, तो अंत में अपनी झेंप मिटाते हुए कहती है, 'अंगूर तो खट्टे हैं'। और ऐसा कहकर वह मुँह बनाती हुई, निराश हो वहाँ से चली जाती है। अब आप एक अन्य कहानी सुनिए। उस कहानी में भी एक भूखी-प्यासी लोमड़ी अंगूर की बेल के पास पहुँचती है और बहुत प्रयास करने पर भी एक भी अंगूर उसके हाथ नहीं लगता। उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है। तभी उसे अपनी परनानी की याद आती है और वह अपनी झेंप मिटाने के लिए परनानी की तरह ही कहती है कि 'अंगूर तो खट्टे हैं'।  मगर उसकी यह बात वहाँ से गुजर रही एक अन्य लोमड़ी सुन लेती है। वह उस लोमड़

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Quote धनतेरस

 

Hindi Story कहानी वही, सोच नई

पहले मैं, पहले मैं नहीं, दोनों साथ  आपने बचपन में एक कहानी पढ़ी अथवा सुनी होगी, जिसमें एक नदी पर एक सँकरा पुल होता है। वह पुल इतना छोटा होता है कि उसके ऊपर से एक बार में एक ही प्राणी गुज़र सकता है।  एक बार एक बकरी उस पुल को पार कर रही होती है, तभी वह देखती है कि पुल के दूसरी ओर से एक और बकरी आ रही है। दोनों ही बकरियाँ पुल के बीचों-बीच आकर खड़ी हो जाती हैं। दोनों एक-दूसरे को गुस्से से देखती हैं। दोनों ही बकरियाँ पहले पुल पार करना चाहती हैं, लेकिन सँकरा पुल होने के कारण यह संभव नहीं है। उनमें से किसी एक को तो पीछे लौटना ही होगा, लेकिन कोई भी बकरी वापस लौटने को तैयार नहीं है। दोनों बकरियाँ 'पहले मैं' 'पहले मैं' करती हुई आपस में लड़ने लगती हैं। एक-दूसरे पर सींगों से प्रहार करने लगती हैं। लड़ते-लड़ते दोनों ही नदी में गिर जाती हैं और डूब कर मर जाती हैं। अब एक और कहानी सुनिए। इस कहानी में भी बिल्कुल वही दृश्य है, वही परिस्थिति है। यानी कि एक सँकरे पुल पर दो बकरियाँ आमने-सामने से आ रही हैं। दोनों पुल के बीचों-बीच पहुँचती हैं। एक-दूसरे को देखती हैं। कुछ पल सोच-विचार करती हैं, फि

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Hindi Story सब लोग बिखर जाओ

एक बार गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ घूमते हुए एक नगर में पहुँचे। वह लोगों के अनुरोध पर कुछ दिन वहाँ रुक गए। उन्होंने देखा कि उस नगर के लोग आपस में एक-दूसरे से लड़ते हैं, उनमें प्यार नहीं है और वे स्वार्थी हैं, बस अपने विषय में ही सोचते हैं। और तो और वे गुरु नानक जी एवं उनके शिष्यों का भी अपमान करते, उन्हें अपशब्द बोलते। चलते समय गुरु नानक देव ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, "सब लोग इस नगर में ही इकट्ठे होकर रहो, आबाद रहो।"  वहाँ से वह आगे चले और एक अन्य नगर में पहुँचे। वहाँ के लोगों ने उनकी खूब आवभगत की और उनसे थोड़े दिन उस नगर में रुकने का अनुरोध किया। वे कुछ दिन रुककर वहाँ प्रवचन देने लगे। उन्होंने अनुभव किया कि यहाँ के लोग बहुत मिलनसार हैं। सभी आपस में मिल-जुलकर प्रेम पूर्वक रहते हैं। सब एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। यह देखकर उन्हें अत्यंत प्रसन्नता हुई। चलते समय गुरु नानक देव ने नगर वासियों को आशीर्वाद देते हुए कहा, "सब लोग बिखर जाओ, उजड़ जाओ।"  उनके शिष्य यह सब देख-सुन रहे थे। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। एक शिष्य से रहा न गया। उसने पूछा, "गुरुजी, जो लो

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  सुविचार  जीवन पथ है संघर्ष पथ, निरंतर आगे बढ़ते जाना है।  इस उपलब्धि को मंजिल समझ, यहीं नहीं रुक जाना है। चित्र Shutterstock से साभार

Hindi Story कल लेना बदला

कल लेना बदला एक बार एक युवक की अपने मित्र से किसी बात पर बहुत बहस हुई। दोनों ने एक-दूसरे को बहुत बुरा-भला सुनाया। युवक गुस्से में घर आया और उसने अपने घर में रखी हुई बंदूक को निकाला। उसे गुस्से में देख उसकी माँ ने पूछा, "क्या हुआ बेटा! बंदूक लेकर कहाँ जा रहे हो?" युवक ने कहा, "माँ, मुझे अपने एक मित्र से बदला लेना है। आज उसने वर्षों की दोस्ती को एक ही दिन में भुला दिया। आज उसने मुझसे बहुत ही अपशब्द कहे हैं, इसलिए मैं उसे जिंदा छोड़ने वाला नहीं हूँ।" माँ ने स्थिति को भाँपते हुए बड़ी ही शांति से कहा, "ठीक है बेटा! यदि तुम्हें बदला लेना ही है, तो कल ले लेना।" युवक ने उत्तेजना में भरकर कहा, "नहीं माँ, कल क्यों? आज क्यों नहीं? मैं तो आज ही उसे भगवान के पास पहुँचाकर रहूँगा।" माँ ने पुन: बड़े ही संयत स्वर में कहा, "ठीक है, मैं तुम्हें मना नहीं कर रही, बस सिर्फ एक दिन रुकने के लिए कह रही हूँ। मेरी बात मानो और एक दिन रुक जाओ। मैं कल तुम्हें रोकूँगी नहीं।" बेटे ने कहा, "ठीक है, लेकिन आप मुझे आज बदला न लेने के लिए क्यों कह रही हैं?" माँ ने

करवा चौथ के व्रत की कथा

 करवा चौथ के व्रत की कथा करवाचौथ को सारे भारतवर्ष में धार्मिक पर्व की तरह धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूर्णमासी के चौथे दिन होता है। इस दिन आमतौर पर विवाहित महिलाएँ व्रत रखती  हैं । कुछ परिवारों में वे युवतियाँ भी इस व्रत को रखती हैं, जिनका विवाह तय हो गया है। शाम के समय महिलाएँ सोलह शृंगार कर समूह में पूजा करती हैं। पूजा के समय सोने, चाँदी, मिट्टी अथवा चीनी के करवे (एक लोटानुमा पात्र) का आपस में आदान-प्रदान करती हैं। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर, जेठानी आदि को श्रद्धापूर्वक विभिन्न उपहार प्रदान करती हैं तथा उन्हें प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेती हैं। इस व्रत में महिलाएँ पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और रात को चंद्रमा निकलने पर उसे अर्घ्य देती हैं। तत्पश्चात पति के हाथों पानी पीकर व्रत खोलती हैं। इसके बाद विभिन्न प्रकार के तैयार किए गए व्यंजनों को अपने पति तथा परिवार के साथ मिल-बैठकर प्रेमपूर्वक खाती-खिलाती हैं। हर त्योहार अथवा व्रतादि के पीछे कोई-न-कोई कहानी, घटना, वैज्ञानिक तथ्य या मान्यता जुड़ी होती है। इस व्रत के साथ एक नहीं वरन् कई कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। यहाँ सबसे प्रचलित

Hindi Story लकड़ी का कटोरा

लकड़ी का कटोरा एक शहर में अर्चित नाम का युवक अपनी पत्नी, अपने आठ वर्षीय बेटे तथा अपने पिता के संग रहता था। पिता बुजुर्ग हो चले थे। अब काम करते समय उनके हाथ भी काँपने लगे थे। चारों लोग एक साथ एक ही मेज के इर्दगिर्द बैठकर खाना खाते। पहले तो सब ठीक था, पर अब बुजुर्ग पिता के हाथ काँपने के कारण खाना खाते समय उनके हाथ से कभी खाना नीचे गिर जाता, तो कभी बर्तन नीचे गिर जाते। गिरने के कारण कई बार बर्तन टूट जाते। अर्चित की पत्नी कुछ समय तक तो यह सब सहन करती रही, लेकिन फिर आए दिन अपने महँगे बर्तनों का टूटना तथा खाना खाते में पिता द्वारा गंदगी फैलाना उसे सहन नहीं हुआ। आखिर एक दिन उसने अपने पति से कह ही दिया, "अब मैं पिताजी के साथ खाना नहीं खा सकती, अब से इनकी मेज अलग लगेगी।" पत्नी के कहे अनुसार अर्चित एक छोटी मेज खरीदकर ले आया और उसे कमरे के एक कोने में रख दिया। अब अर्चित, उसकी पत्नी तथा उसका बेटा एक साथ बैठकर बड़ी मेज पर खाना खाते और बुजुर्ग पिता कोने में रखी एक छोटी मेज पर अलग बैठकर खाना खाते। पति-पत्नी दोनों प्रसन्न थे, क्योंकि अब खाना खाते में उन्हें पिता द्वारा की जा रही गंदगी नहीं झ

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हिंदी कहानी (लालच का भूत)

लालच का भूत एक बार एक बंदर खाने की तलाश करते हुए एक किसान के घर में घुस गया। वहाँ उसने देखा कि एक सुराहीनुमा बर्तन में चने रखे हुए हैं। उसने चने निकालने के लिए उस बर्तन में हाथ डाला और चनों को मुट्ठी में भर लिया। अब जब उसने हाथ बाहर निकालना चाहा, तो हाथ बाहर ही नहीं निकला। मुट्ठी बंद होने के कारण हाथ उस बर्तन के मुँह में फँस गया। बंदर बुरी तरह घबरा गया। उसने सोचा कि बर्तन के अंदर अवश्य ही कोई भूत बैठा है, उसी ने उसका हाथ पकड़ रखा है। वह बहुत देर तक हाथ बाहर निकालने की कोशिश करता रहा, परंतु उसके सारे प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए। उसने सोचा यह भूत अब उसे छोड़ने वाला नहीं है। मारे डर और घबराहट के वह जोर-जोर से रोने लगा। उसका रोना सुनकर किसान वहाँ पहुँचा। पहले तो बंदर को चने चुराते देख उसे बहुत क्रोध आया, परंतु फिर बंदर को जोर-जोर से रोता देख उसका क्रोध तरस में बदल गया। उसने बंदर से कहा, "एक तो तुम चने चुरा रहे हो, ऊपर से इतनी तेज़ रो भी रहे हो। आखिर क्यों?" बंदर रोते हुए बोला, "आइंदा मैं कभी आपके घर में नहीं आऊँगा, बस अभी मेहरबानी करके आप मेरा हाथ बर्तन के अंदर बैठे हुए भूत से छ

हिंदी कहानी "सबसे बड़ा भक्त कौन?"

  सबसे बड़ा भक्त कौन? नारद जी हर समय 'नारायण-नारायण' का जाप करते रहते थे। अतः वह समझते थे कि तीनों लोकों में भगवान विष्णु का मुझसे बड़ा भक्त और कोई नहीं है। इस बात का उन्हें बहुत अहंकार भी था। एक बार अहंकार में भरकर उन्होंने भगवान विष्णु से पूछ ही लिया, "हे भगवन्! आप यह बताइए कि त्रिलोक में आप का सबसे बड़ा भक्त कौन है?"  नारद जी को पूर्ण विश्वास था कि भगवान विष्णु उसे ही अपना सबसे बड़ा भक्त बताएँगे। भगवान विष्णु ने बहुत ही शांत भाव से उत्तर दिया, "हे नारद! मेरा सबसे बड़ा भक्त धरती पर रहने वाला एक किसान है।"  यह सुनकर नारद जी को बड़ा दुख हुआ और आश्चर्य भी। उन्होंने कहा, "भगवन्! क्या कोई किसान मुझसे भी बड़ा भक्त हो सकता है? मुझे तो विश्वास नहीं होता।" भगवान विष्णु ने कहा, "नारद! मेरे वचनों की सत्यता जानने के लिए तो तुम्हें मृत्यु लोक में जाना होगा। तभी तुम्हें पता चलेगा कि वह मेरा सबसे बड़ा भक्त कैसे है?" नारद जी भगवान विष्णु से आज्ञा लेकर रात को ही मृत्यु लोक की ओर चल दिए। सुबह होने पर वह छिपकर उस किसान की गतिविधियों को देखने लगे। उन्होंने

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हिंदी कहानी 'मित्र की समझदारी'

मित्र की समझदारी  एक नगर में एक सेठजी रहते थे। उनके यहाँ बहुत से नौकर-चाकर काम करते थे। एक दिन सेठजी के घर से एक सोने का हार चोरी हो गया। सेठजी ने सब नौकरों को बुलाया और उनसे बारी-बारी से पूछा, लेकिन किसी ने भी चोरी की बात नहीं कबूली। सेठजी ने बहुत डराया-धमकाया, लेकिन फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ। अंततः परेशान सेठजी ने अपने एक विद्वान मित्र को सारी घटना सुनाई और इस समस्या का समाधान निकालने को कहा। मित्र बोला, "घबराओ नहीं, मैं शाम को तुम्हारे घर आता हूँ। तुम अपने सारे नौकरों को बुलाकर रखना।" सेठ जी ने कहा, "उनसे पूछने का कोई फायदा नहीं है। मैं यह कार्य पहले ही कर चुका हूँ। कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं है। मित्र ने कहा, "यह सब शाम को देखेंगे। बस, तुमसे जितना कहा है, उतना करो।"   सेठ जी ने कहा, "ठीक है।"  लेकिन सेठ जी मित्र की बातों से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें  समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उनका मित्र करना क्या चाहता है?  खैर, शाम को मित्र सेठ जी के घर पहुँचा। वहाँ पर सेठ जी ने सभी नौकरों को बुलाया। मित्र ने सभी नौकरों को एक बराबर की पतली सींकें (लकड़ी की पतली