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दोहे

धरती का श्रृंगार वृक्ष, इन्हें न काटो कोय। 
लकड़ी औषधि फूल फल, सब इनसे ही होय।।1।।

खग नदी पादप पहाड़, प्रकृति के उपहार।

रे मानव क्यों कर रहा, इनसे तू खिलवाड़।।2।।


धर्म जाति निज लोभ को, तज दो मेरे यार। 

हाथ जोड़ विनती यही, चुनो सही सरकार।।3।।


राजनीति बन गई है, आज एक व्यापार।

सब अपना घर भर रहे, फैला भ्रष्टाचार।।4।।


राष्ट्र हित सर्वोपरि है, यह तू मन में ठान।

इसी सोच में है निहित, हम सब का कल्याण।।5।


नारी का सम्मान करो, श्रद्धा रखो अपार।

जहाँ नारी को पूजते, वहाँ देव का वास।।6।‌।


नेता ऐसा चाहिए, जिसका मन हो साफ़।

जनता का हित ही करे, जिसके मन में वास।।7।।


'युद्ध' शांति का हल नहीं, ना हथियार निदान।

'मानवता' में हित निहित, बस यही समाधान।।‌8।।


सीमा पर हैं जो डटे, ले हाथों में प्राण।

वे भी तो हैं किसी के, पति भाई संतान।।9।।


मनुज जनम मिलता नहीं, बिना किए उपकार।

परहित ही परमोधरम, कर ले अंगीकार।।10।‌।


चिंता में डूबा रहा, धरे हाथ पर हाथ।

चिंता तज कर ले करम, हों सपने साकार।।11।।


मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

मन की शक्ति कर बुलंद, नभ को छू ले मीत।।12।।


मित्र तु ऐसा चाहिए, जैसे कड़वी कुनैन।

भले लगे ना स्वादकर, पर देगा सुख चैन।।13।।


देख पराई संपदा, मत खो अपना चैन।

वो है उसके भाग का, न तू गड़ा रे नैन।।14।।


झूठ कभी ना बोलिए, बोलो सांचे बैन।

नींद आय चिंता रहित, मन में आए चैन।।15।।


बिटिया जब पढ़ जात है, आगे बढ़े समाज।

दोनों घर चमकात है, नैहर और ससुराल।।16।।


माँ को पूजो तुम सदा, करो उसका सम्मान 

माँ का मोल बस जाने, माँ विहीन संतान।।17।।


कलयुग के इस दौर में, किस पर विश्वास होय। 

अपनी ही परछाई से, डर लागे अब मोय।।18।।


गुरु तो ऐसा चाहिए, जो शिष्य को बढ़ाय।

उस की बढ़ती देख के, वो फूला न समाय।।19।।



परोपकार कर ले नर, मिला है मानव तन।

कर्म साथ में जाएगा संग, नहीं जाएगा धन।।20।।



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