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कहानी वही, सोच नई

अंगूर तो मीठे हैं आपने अपने बचपन में वह कहानी अवश्य सुनी होगी, जिसमें एक लोमड़ी भोजन की तलाश में भटक रही होती है, तभी उसे एक अंगूर की बेल दिखाई देती है। उस बेल में पके हुए अंगूर के गुच्छे लटक रहे होते हैं। देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी आ जाता है। वह उन गुच्छों को पकड़ने के लिए बहुत उछलती है। मगर लाख कोशिशों के बाद भी एक भी गुच्छा उसके हाथ नहीं लगता, क्योंकि अंगूर के गुच्छे ऊपर की तरफ लटक रहे होते हैं। अतः वे लोमड़ी की पहुँच से दूर होते हैं।   बहुत प्रयत्न के बाद जब वह थक जाती है, तो अंत में अपनी झेंप मिटाते हुए कहती है, 'अंगूर तो खट्टे हैं'। और ऐसा कहकर वह मुँह बनाती हुई, निराश हो वहाँ से चली जाती है। अब आप एक अन्य कहानी सुनिए। उस कहानी में भी एक भूखी-प्यासी लोमड़ी अंगूर की बेल के पास पहुँचती है और बहुत प्रयास करने पर भी एक भी अंगूर उसके हाथ नहीं लगता। उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है। तभी उसे अपनी परनानी की याद आती है और वह अपनी झेंप मिटाने के लिए परनानी की तरह ही कहती है कि 'अंगूर तो खट्टे हैं'।  मगर उसकी यह बात वहाँ से गुजर रही एक अन्य लोमड़ी सुन लेती है। वह उस लोमड़

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