लघु कथा
असलियत
‘‘ओह रवि! तुम कितने अच्छे हो। तुमने मेरी बर्थ-डे पर ए0 सी0 का तोहफ़ा देकर वाकई मुझे सरप्राइज़ कर दिया है।’’ शेफाली नए एयरकंडीशनर की ठंडक को भीतर तक महसूस करके रोमांचित हो रही थी।
शेफाली को इस तरह चहकते देख रवि अपने तोहफ़े के प्रति मन-ही-मन आह्लादित हो ही रहा था कि फोन की घंटी घनघना उठी। रवि ने रिसीवर कान से लगाया तो दूसरी ओर से माँ का स्वर सुनाई पड़ा-‘‘रवि बेटे, बड़ी देर से मैं और तेरे पिताजी कोशिश कर रहे हैं, पूरे एक घंटे बाद तेरा फोन मिला है।’’
माँ के इस कथन से द्रवीभूत हुए बिना रवि ने शेफाली की ओर कनखियों से देखते हुए पूछा-‘‘अच्छा माँ, ये बताओ कैसे फोन किया ?’’
‘‘अरे बेटा, क्या बताऊँ ? इस बार बारिश न होने से पूरा गाँव सूखे की मार झेल रहा है। तिस पर गर्मी.......बिजली तो पूरे-पूरे दिन गायब रहती है। अभी थोड़े दिन पहले ही तो तेरे पिताजी की तबियत खराब होकर चुकी है। कहीं गर्मी के कारण फिर कोई मुसीबत न खड़ी हो जाए, इसलिए हम दोनों दो-एक दिन में तेरे पास पहुँच रहे हैं। बहुत दिन भी हो गए हैं, तुम सबसे मिले। सो सोचते हैं कि इस बार गर्मियों में थोड़े दिन वहीं काट लें, वैसे भी यहाँ खेती तो.............’’
‘‘क्या! यहाँ आ रही हो माँ’’ रवि ने माँ के वाक्य पूरा करने से पहले ही चौंकते हुए पूछा।
माँ के आने की बात रवि के मुख से सुनते ही शेफाली के कान खड़े हो गए। ए0 सी0 की ठंडक के उमस में बदलने से पहले ही उसने झट अपने हाथ और गर्दन को नकारात्मक स्थिति में हिलाते हुए रवि को उन्हें न आने देने का स्पष्ट संकेत दिया।
पर रवि से साफ़ मना करते नहीं बना। उसने पहले ए0 सी0 को निहारा, फिर नए फिट किए गए ए0 सी0 से शरमाए कमरे के पुराने पंखे की ओर उपेक्षा भरी नज़र फेंकी और फिर एक-एक शब्द चबाते हुए बोला-‘‘माँ, गर्मी तो यहाँ भी विकट है और फिर पिताजी की तबियत अभी पूरी तरह से सँभली भी नहीं होगी। ऐसी हालत में उनका सफ़र करना ठीक नहीं होगा। इसलिए बेहतर है कि आप लोग कुछ दिन और वहीं ठहर जाएँ। हाँ, मैं आपकी गर्मी का वहीं इंतज़ाम किए देता हूँ। छोटे को भेज देना, मेरे पास एक पंखा है, वो आकर ले जाएगा।’’
‘‘पर बेटे पंखा भी तो बिजली से ही चलेगा। यहाँ तो बिजली पूरे-पूरे दिन गायब रहती है। ऐसे में तेरे पिताजी को..................’’
रवि ने इस बार माँ का पूरा वाक्य सुने बिना ही रिसीवर नीचे पटक दिया और झल्लाते हुए बोला-‘‘गाँव में फोन की सुविधा अच्छी पहुँची है कि छोटी-छोटी सी बात पर बेवज़ह फोन करके परेशान ही करते रहते हैं।’’
‘‘ला, मुझे बात करने दे! माँ के पास खड़े रवि के पिताजी ने कहा, तो माँ ने आँखों में छलक आए आँसुओं को बड़ी ही चतुराई से पोंछते हुए कहा-‘‘कमबख्त, एक घंटे में जाकर तो यह फोन मिला था, वो भी बात पूरी होने से पहले ही कट गया।’’
लेकिन रवि के पिताजी फोन कटने की असलियत को जान चुके थे, क्योंकि चतुराई बरतने के बाद भी पत्नी के आँसू उनसे छिपे न रह सके।
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