सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

HINDI CHILD STORY (BHOLU KI SAMAJHADARI)

बाल कथा

भोलू की समझदारी 

सुंदरवन में बहुत खुशहाली थी। सभी जानवर मिल-जुलकर रहते थे। बस परेशानी थी तो यह कि जब सभी जानवर काम पर जाते, तब पीछे से किसी-न-किसी जानवर का खाना चोरी हो जाता। सब परेशान, आखिर खाना खाता कौन है ? थक-हार कर जानवरों ने चोर का पता लगाने के लिए सभा बुलाई। सभा में जितने मुँह, उतनी बातें। तभी भोलू बंदर उठा और बोला-‘‘मुझे तो चुनमुन लोमड़ी पर शक है, क्योंकि सभी जानवर तो सुबह-सुबह अपने काम पर चले जाते हैं, लेकिन चुनमुन लोमड़ी कभी कोई काम नहीं करती, न ही अपने लिए कभी खाना ही बनाती। बस, पूरा दिन इधर से उधर घूमती ही रहती है।" सभी जानवर एक स्वर में बोले-‘‘हाँ, हाँ, भोलू ठीक कह रहा है। हमारे काम पर जाने के बाद चुनमुन ही घर पर रहती है, वह कहीं नहीं जाती।" 
ये सुनते ही चुनमुन बिगड़ उठी-‘‘तुम लोगों ने मुझे बिना बात के चोर ठहरा दिया है। मैं भला चोरी क्यों करूँगी और फिर तुम्हारे पास क्या सबूत है ?’’
चुनमुन की बात सुनकर सभी जानवर चुप हो गए। भला सबूत कहाँ से लाएँ ? लेकिन भोलू जानता था कि हो न हो ये चुनमुन का ही काम है।
     अगले दिन भोलू ने अपने घर पर खीर, पूरी, हलवा आदि व्यंजन बनाए और प्रतिदिन की भाँति काम पर जाने के लिए घर से निकल गया। पर वह काम पर न जाकर पास ही झाड़ियों में छिपकर बैठ गया। इधर चुनमुन लोमड़ी ने जब देखा कि सभी जानवर काम पर चले गए हैं, तो वह भी भोजन की तलाश में निकल पड़ी। जैसे ही वह भोलू बंदर के घर के सामने से गुज़री, पकवानों की सुगंध उसकी नाक से टकराई। वह मुँह में भर आए पानी को बाहर बहने से रोकने का असफल प्रयास करने लगी। पकवानों की महक से वह अपने को रोक नहीं पाई और इधर-उधर देखकर दबे पाँव भोलू के घर में घुस गई। चूल्हे के पास रखी एक हांडी पर उसकी नज़र गई। उसने नज़रें तो दरवाज़े पर टिका दीं, जिससे भोलू या कोई भी आए तो उसे सही समय पर जानकारी हो जाए और फिर अपना एक हाथ हांडी में डाल दिया। पर अगले ही पल वह दर्द से चीख उठी। उसने तुरंत हाथ बाहर निकाला तो देखा कि कालू साँप उसके हाथ से बुरी तरह चिपका हुआ है। इतने में उसकी चीख सुनकर भोलू बंदर और बाकी सभी जानवर, जो कि भोलू के कहने से इधर-उधर छिपे हुए थे, अंदर आ गए।
भोलू की चाल कामयाब रही। आज़ चुनमुन सबूत के साथ उसकी गिरफ़्त में थी। रंगे हाथ पकड़े जाने पर चुनमुन बेहद शर्मिंदा थी। वह नज़रें झुकाए सभी से माफ़ी माँगे जा रही थी। फिर उसने भोलू के कहने पर आइंदा किसी भी जानवर का खाना चुराकर नहीं खाने तथा सभी जानवरों के साथ काम पर जाने का वादा किया, तब कहीं जाकर कालू साँँप ने उसका हाथ छोड़ा।
सभी जानवरों ने भोलू की खूब प्रशंसा की, क्योंकि यह सारा खेल चुनमुन को रंगे हाथों पकड़ने के लिए भोलू ने ही कालू के साथ मिलकर रचा था। 



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदी हास्य कविता स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन

स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन स्वर्ग में से स्वर्गवासी झाँक रहे धरती पर इंद्र से ये बोले कुछ और हमें चाहिए। देव आप कुछ भी तो लाने देते नहीं यहाँ,  कैसे भोगें सारे सुख आप ही बताइए। इंद्र बोले कैसी बातें करते हैं आप लोग, स्वर्ग जैसा सुख भला और कहाँ पाइए।  बोले स्वर्गवासी एक चीज़ है, जो यहाँ नहीं, बिना उसके मेनका और रंभा न जँचाइए। इंद्र बोले, कौन-सी है चीज़ ऐसी भला वहाँ, जिसके बिना स्वर्ग में भी खुश नहीं तुम यहाँ? अभी मँगवाता हूँ मैं बिना किए देर-दार, मेरे स्वर्ग की भी शोभा उससे बढ़ाइए। बोले स्वर्गवासी, वो है मोबाइल कनैक्शन, यदि लग जाए तो फिर दूर होगी टेंशन। जुड़ जाएँगे सब से तार, बेतार के होगी बात, एस0 एम0 एस0 के ज़रिए अपने पैसे भी बचाइए। यह सुन इंद्र बोले, दूतों से ये अपने, धरती पे जाके जल्दी कनैक्शन ले आइए। दूत बोले, किसका लाएँ, ये सोच के हम घबराएँ, कंपनियों की बाढ़ है, टेंशन ही पाइए। स्वर्गवासी बोले भई जाओ तो तुम धरती पर, जाके कोई अच्छा-सा कनैक्शन ले आइए। बी0एस0एन0एल0 का लाओ चाहें आइडिया कनैक्शन जिओ का है मुफ़्त अभी वही ले आइए। धरती

HINDI ARTICLE PAR UPDESH KUSHAL BAHUTERE

‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’-इस पंक्ति का प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ में उस समय किया है, जब मेघनाद वध के समय रावण उसे नीति के उपदेश दे रहा था। रावण ने सीता का हरण करके स्वयं नीति विरुद्ध कार्य किया था, भला ऐसे में उसके मुख से निकले नीति वचन कितने प्रभावी हो सकते थे, यह विचारणीय है।  इस पंक्ति का अर्थ है कि हमें अपने आस-पास ऐसे बहुत-से लोग मिल जाते हैं जो दूसरों को उपदेश देने में कुशल होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग दूसरों को तो बड़ी आसानी से उपदेश दे डालते हैं, पर उन बातों पर स्वयं अमल नहीं करते, क्योंकि-‘‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।’’ हम भी ऐसे लोगों में से एक हो सकते हैं, या तो हम उपदेश देने वालों की श्रेणी में हो सकते हैं या उपदेश सुनने वालों की। अतः लगभग दोनों ही स्थितियों से हम अनभिज्ञ नहीं हैं। हमें सच्चाई पता है कि हमारे उपदेशों का दूसरों पर और किसी दूसरे के उपदेश का हम पर कितना प्रभाव पड़ता है। सच ही कहा गया है,  ‘‘हम उपदेश सुनते हैं मन भर, देते हैं टन भर, ग्रहण करते हैं कण भर।’’ फिर क्या करें? क

महावीर जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ