बाल कथा
बदले से बदला हृदय
एक बंदर था-नाॅटी। हर समय अपनी शैतानियों से दूसरों को परेशान करना उसको बेहद प्रिय था। एक बार जंगल के राजा शेरसिंह ने यह जानने के लिए मीटिंग बुलाई कि इस बार दीवाली कैसे मनाई जाए।जिस पेड़ के नीचे मीटिंग चल रही थी, उस पर मधुमक्खियों का एक छत्ता था। बस फिर क्या था, नाॅटी केे दिमाग में शरारत करने वाले कीड़े कुलबुलाने लगे। उसने चुपचाप अपनी गुलेल उठाई और छत्ते पर निशाना साध दिया। सारी मधुमक्खियाँ पेड़ के नीचे बैठे जानवरों पर बुरी तरह टूट पड़ीं। शेरसिंह समेत सभी जानवर अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। उसे इस खेल में बड़ा मज़ा आ रहा था। उसकी इस हरकत को आसमान में उड़ते हुए मिट्ठू तोते ने देख लिया था। जब उसने उसकी शिकायत राजा शेरसिंह से करने की धमकी दी, तो उसे भी गुलेल से घायल कर दिया। अगले दिन जब उसने जानवरों के सूजे हुए चेहरे देखे, तो वह अपनी हँसी रोक न पाया। उसे इस तरह हँसते हुए देखकर तथा उसकी पहले भी इस तरह की गई हरकतों के कारण दो-एक जानवरों को उस पर शक तो हुआ, पर वे बिना सबूत के भला क्या कर सकते थे।
आज़ दीपावली थी। सभी जानवर खुशी से उछल-कूद रहे थे। नाॅटी की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था। आज़ उसे शैतानी के भरपूर अवसर जो मिलने वाले थे। उसने पहले ही सोच रखा था कि दीवाली के दिन जानवरों पर जलते हुए पटाके फोड़कर उन्हें परेशान करेगा। वहीं मिट्ठू तोता भी नाॅटी से अपना बदला चुकाने के लिए आज़ ही के दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।
नाॅटी पटाके चलाने में व्यस्त था, तभी मिट्ठू ने पूर्व योजना के अनुसार चुपके से उसकी पूँछ में पटाकों की लड़ी बाँधकर उसमें आग लगा दी। नाॅटी ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई उसके साथ भी यह सब कर सकता है। मिट्ठू उसे डर से चीखता और उछलता देखकर बहुत प्रसन्न था। अचानक उसने देखा कि नाॅटी की पूँछ ने आग पकड़ ली है और वह दर्द से छटपटाता हुआ ज़मीन पर लोट लगा रहा है। मिट्ठू से उसकी परेशानी देखी नहीं गई। उसने ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाना प्रारंभ कर दिया। पर पटाकों के शोर में उसकी आवाज़ दबकर रह गई।
उसने सहायता के लिए नज़रें इधर-उधर घुमाईं, तो देखा सामने के चबूतरे पर बिल्ली मौसी अपने बच्चों के साथ पटाके छुड़ा रही थीं और उसने पहले से ही बच्चों की सुरक्षा के लिए पानी की बाल्टी व कंबल रख रखा था। मिट्ठू ने झट कंबल चोंच में दबाया और नाॅटी की जलती पूँछ पर डाल दिया। कंबल डलते ही आग बुझ गई। मिट्ठू को इस तरह कंबल ले जाते देखकर बिल्ली मौसी तथा अन्य जानवरों का ध्यान भी नाॅटी पर चला गया था। सब उसे अस्पताल ले गए। अस्पताल के डाक्टर भालूदेव भी पटाके चलाना छोड़कर नाॅटी की मरहम-पट्टी में जुट गए। भालूदेव ने नाॅटी को तीन-चार दिन अस्पताल में ही रुकने की सलाह दी। सभी जानवर तीन-चार दिन तक बारी-बारी से अस्पताल जाते और नाॅटी का ध्यान रखते।
आज़ नाॅटी को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी। अतः शेरसिंह समेत सभी जानवर उसे ले जाने के लिए आए थे। नाॅटी किसी से भी नज़रें नहीं मिला पा रहा था। उसे बड़ा पछतावा हो रहा था कि उसने इन जानवरों के साथ इतना ख़राब सलूक किया, फिर भी इन सब ने उसकी कितनी सहायता की। वह बड़ी हिम्मत जुटाकर बस इतना ही कह पाया ‘‘मुझे माफ़ कर दो। अब मुझे यह अहसास हो गया है कि तकलीफ़ क्या होती है। मुझे यह भी पता चल चुका है कि इस चंपकवन में रहने वाले हम सभी लोग एक परिवार के समान हैं। अतः हमें एक-दूसरे के लिए मुसीबत नहीं बनना चाहिए, बल्कि एक-दूसरे की मुसीबत में काम आना चाहिए।’’
शेरसिंह समेत सभी जानवर समझ गए थे कि नाॅटी अब कभी ऐसी शरारत नहीं करेगा, जिससे किसी को तकलीफ़ हो।
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