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HINDI STORY (MAMTA KA NAYA CHEHRA)

ममता का नया चेहरा
मैं रोज़ की तरह आज भी सुबह की ठंडी और ताज़ी हवा का आनंद लेने निकल पड़ा हूँ। पार्क के पास पहुँचा तो एक कुतिया ने मुझे देखते ही ज़ोर-ज़ोर से भौंकना शुरू कर दिया। कहीं वो काट न जाए, यह सोचकर मैंने उसे डराने के लिए अपना डंडा आगे किया ही था कि वह भागकर सड़क के किनारे लगे पेड़ के पास जाकर खड़ी हो गई और वहीं से भौंकने लगी। अनायास मेरा हाथ वहीं का वहीं ़रुक गया, क्योंकि मैंने देखा कि वह जिस स्थान पर खड़ी थी, वहाँ उसका एक बच्चा लेटा हुआ था। मैंने उत्सुकतावश कुछ पास जाकर गौर से देखा, तो पाया कि वह उसका नवजात शिशु था, जो शायद सर्दी के कारण मर गया था। वह कुतिया संभवतः उसकी सुरक्षा के कारण ही हर आते-जाते पर भौंक रही थी।
मेरे मन में उस असहाय कुतिया के प्रति हमदर्दी उमड़ पड़ी। मैं पार्क के अंदर न जाकर वहीं पार्क की बाउंड्री पर बैठ गया और उसकी गतिविधि को देखने लगा। वो दूर से ही किसी को देख लेती थी, तो भागी हुई उस तरफ जाती और भौंककर उसे अपने शिशु के पास जाने से रोक देती। अभी पाँच मिनट ही बीते थे कि वहाँ एक कूड़ा भरने वाली गाड़ी आकर रुकी। पहले तो कूड़े वाले ने सड़क के दूसरी ओर का कूड़ा उठाना शुरू किया। उस समय वह कुतिया अपने बच्चे के पास बैठकर उसे कूड़ा उठाते हुए टुकुर-टुकुर देखती रही। पर जैसे ही वह सड़क के इस ओर आया, वैसे ही कुतिया ने अनवरत भौंकना शुरू कर दिया। अब तक उस कूड़े वाले की दृष्टि उसके मरे हुए शिशु पर पड़ चुकी थी। अतः पहले तो उसने कूड़ा उठाने का फावड़ा और तसला दिखा-दिखाकर उसे दूर खदेड़ दिया और फिर चीते की-सी फुर्ती से उस मृत शिशु को गाड़ी में डाल दिया। उसे अन्य स्थानों का कूड़ा उठाने में व्यस्त देख, कुतिया हिम्मत करके पुनः उस स्थान पर लौटी और इधर-उधर चक्कर काटती हुई अपने शिशु को खोजने लगी। इस समय उसका भौंकना एकदम थमा हुआ था। वह बौखलाई हुई कभी ज़मीन को सूँघती, कभी कूड़ा-गाड़ी के नीचे घुसकर तलाश करती, तो कभी कूड़ा-गाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाती।
मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था। मनुष्य को तो तसल्ली दी जा सकती है, पर जानवर को कैसे समझाया जाए? अब तक कूड़े वाले ने कूड़ा बटोर कर चलना शुरू कर दिया था। उसको चलते देख वह कुतिया भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगी। बीच-बीच में कूड़ा-गाड़ी वाला उसे अपने फावड़े से डराता, तो वह ठिठक कर खड़ी हो जाती और फिर दौड़ना शुरू कर देती। कुछ ही देर में वह कूड़ा-गाड़ी और उसके पीछे दौड़ती कुतिया-दोनों ही मेरी आँखों से ओझल हो गए। अब मेरा मन पार्क के अंदर जाने का बिलकुल नहीं था, अतः मैं उदास भाव से उठा और बोझिल कदमों से घर की ओर लौट आया।

घर पहुँचकर भी जब उस कुतिया की बेबसी और बेचैनी भरा चेहरा आँखों के सामने से नहीं हटा, तो अखबार लेकर बैठ गया। सबसे पहले जिस खबर पर दृष्टि गई, वह थी-‘एक माँ ने अपने अवैध संबंधों में बाधक बने अपने सोलह वर्षीय पुत्र को अपने प्रेमी के साथ मिलकर मौत के घाट उतारा।’ इस ख़बर ने मुझे भीतर तक हिला दिया। अब मेरी आँखों के आगे एक नहीं बल्कि दो-दो चेहरे एक साथ नाच रहे थे। एक ओर ममता में डूबी लाचार माँ थी, तो दूसरी ओर थी-वासना में डूबी, ममता को कलंकित करती एक माँ। 

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