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हिंदी कविता ''परीक्षा हाॅल में गोलू जी''

परीक्षा हाॅल में गोलू जी

परीक्षा हाॅल में बैठे गोलू जी
दिमाग पर डाल रहे थे ज़ोर,
हाय, कहाँ गई सारी पढ़ाई
मेहनत तो की थी जी-तोड़।

हो गया था सब सफाचट
नहीं आ रहा कुछ भी याद,
लग रहा था पेपर सारा ही
हो जैसे आउट ऑफ कोर्स।

नज़रें दौड़ाईं इधर-उधर
शांति छाई थी चहुँ ओर,
लिखने में व्यस्त थे संगी-संगी
नकल की दिखी न कोई सोर्स

जब अध्यापक ने पाठ पढ़ाए
तब क्यों मचाते थे हम शोर,
हाय! शैतानी कुछ काम न आई
ये सोच खुद को रहे अब कोस।

अपने इष्ट को याद किया फिर
की प्रार्थना दोनों कर जोड़,
मेरी नैया को अब तुम ही तारो
भँवर में न देना मुझको छोड़।

बालक अज्ञानी जान के मुझसे
मत लेना भगवन् मुख तुम मोड़,
इस बार बन जाओ मेरा सहारा 
करूँगा पढ़ाई अब निशि भोर । 

पर जबाव में मिला न उत्तर 
सिर धुन-धुन अब रहे थे सोच,
अब न करूँगा कोई नादानी
पढ़ाई पर न आने दूँगा लोच।

पर अभी जो पेपर पड़ा सामने
उसका न मिलता था कोई छोर,
दुःखी मन से गोलू जी ने फिर
काॅपी को क्लीन ही दिया छोड़।










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