नकल पर कैसे लगेगी नकेल
उत्तर प्रदेश में नकल पर रोक लगाने की बात बड़े ज़ोरों पर चल रही है। उत्तर प्रदेश या बिहार में ही नहीं, कमोवेश देखा जाए तो यह अनेक प्रदेशों की समस्या है। सरकारें नकल पर नकेल कसने में अपने को असहाय पाती हैं। अनेक केंद्रों पर धड़ल्ले से सामूहिक नकल होती रहती है और प्रशासन विवश एवं मूक बना देखता रहता है।
अब सवाल यह आता है कि ऐसा नज़ारा आमतौर पर सरकारी स्कूलों में ही देखने को क्यों मिलता है? इसका सीधा-सा उत्तर है कि उन्हें नकल की सहूलियतें प्राप्त हैं, जबकि प्राइवेट स्कूलों में तो छात्रों को गरदन घुमाने की भी अनुमति नहीं मिलती। इसी से जुड़ा एक अन्य अहम् सवाल ये भी है कि आखिर सरकारी स्कूलों के छात्रों को ही नकल करने की ज़रूरत क्यों पड़ती है?
ऊपरी तौर पर इसका उत्तर यह कहकर दिया जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षारत छात्र पढ़ता नहीं है। कारण अनेक गिनाए जा सकते हैं, जैसे-घर का माहौल शिक्षा के लिए उपयुक्त न होना, माता-पिता का पढ़ा-लिखा न होना, पढ़ाई के साधनों का पर्याप्त अभाव आदि, जिनकी वज़ह से वह पढ़ाई की बजाय नकल के भरोसे बैठा रहता है।
पर बुनियादी तौर पर देखा जाए तो वज़ह दूसरी ही नज़र आती हैं। दरअसल सरकारी स्कूलों में अधिकांश ऐसे हैं, जिनमें पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लिया जाता। या तो उनमें पर्याप्त अध्यापक ही नहीं होते, यदि होते भी हैं तो वे अपने विषय में पारंगत नहीं होते या फिर वे स्कूलों में पढ़ाने की बजाय घर पर ट्यूशन पढ़ाने में ज़्यादा रुचि लेते हैं।
अभी उत्तर प्रदेश में सरकार के बदलते ही लाखों छात्र-छात्राओं ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा छोड़ दी। कारण सीधा है-इनमें से अधिकतर नकल के भरोसे परीक्षा देने का इरादा रखने वाले होंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि नकल के ज़रिए उन जैसे न जाने कितने ही छात्र-छात्राएँ पास होते रहे हैं।
शिक्षा और शिक्षित युवक किसी भी देश की रीढ़ होते हैं। काश! हमारे स्कूल, अध्यापक और प्रशासन भी इस हकीकत को समझें और अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियों से बचने की बजाय एकजुट होकर सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारने का प्रयास करें। इसके लिए उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक स्कूल में छात्र-छात्राओं को बुनियादी सुविधाएँ प्राप्त हों, विद्यालय में छात्र-छात्राओं के साथ-साथ समस्त स्टॉफ की उपस्थिति नियमित तौर पर हो, छा-छात्राओं को सही अध्यापकों से, सही रूप में शिक्षा प्राप्त हो।
क्या हम अपने स्कूलों को इस तरह का नहीं बना सकते कि जब छात्रों से नकल करने की बात कही जाए तो वे स्वयं आगे बढ़कर यह कहने का साहस करें कि हमें सारा प्रश्नपत्र आता है, हमने विद्यालय और घर में समुचित शिक्षा हासिल की है, हमें नकल की आवश्यकता ही नहीं है। क्या हमारे स्कूल ऐसे छात्र-छात्रा तैयार नहीं कर सकते? यदि नहीं, तो आखिर क्यों नहीं? इस क्यों नहीं का उत्तर ढ़ूँढ़ने की आवश्यकता है। यदि हाँ, तो नकल माफ़िया की गतिविधियों पर तो स्वतः ही विराम लग जाएगा। उन्हें भला कौन पूछेगा?
लेकिन दुःखद बात यह है कि सत्य इससे उलट है। वर्तमान में तो ऐसा माहौल है कि छात्र-छात्रा और उनके अभिभावक सबसे पहले ऐसे स्कूल खोजते हैं, जिनका परीक्षा केंद्र वे स्कूल होते हैं, जिनमें नकल की गारंटी दी जाती है। फिर वे नकल माफ़िया को तलाशते हैं। जितनी मेहनत वे इस काम में करते हैं, काश! उतना परिश्रम वे परीक्षा की तैयारी में लगा देते। लेकिन उन्हें अपने से अधिक दूसरे पर विश्वास है। उनके इस तरह आत्मविश्वास खोने का आखिर कौन ज़िम्मेदार है?
इस तरह नकल कराकर हम उन्हें डिग्रियाँ तो बाँट रहे हैं, शिक्षित नौजवानों की फौज़ तो खड़ी कर रहे हैं, पर उनके ज्ञान में वृद्धि नहीं कर रहे, जो शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य है। हम ऐसा करके उनका आत्मविश्वास हर रहे हैं, उन्हें जीवन की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयाँ दूसरों के भरोसे लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, उन्हें चुनौतियाँ स्वीकारने में कमज़ोर बना रहे हैं, उनके दिल में शिक्षा और झूठी डिग्री के लिए हमेशा एक भय, आशंका उत्पन्न कर रहे हैं।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस तरह छात्र जब आगे भी नकल के सहारे उच्च शिक्षा प्राप्त कर किसी संस्थान में नौकरी के लिए जाएगा तो वह अपने कार्य में कितना कुशल होगा, वह अपने पेशे के साथ कितना न्याय कर पाएगा? शायद वहाँ भी वह हर छोटे-छोटे कार्य के लिए दूसरों का मुँह ताकेगा। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो हम स्कूलों में ही देख सकते हैं। जब शिक्षा अधिकारी सरकारी स्कूलों में निरीक्षण करते हैं तो वहाँ उन्हें ऐसे शिक्षक मिलते हैं, जो महीनों और दिनों के नाम की वर्तनी भी शुद्ध लिख एवं बोल नहीं पाते। वे छात्र-छात्राओं को गलत ज्ञान बाँट रहे होते हैं, उनके भविष्य से खिलवाड़ करते हैं। कारण स्पष्ट है कि उनमें से अधिकतर वे अध्यापक होंगे, जो कभी नकल के ज़रिए पास होकर यहाँ तक पहुँचे हैं।
आज हमारी सरकार का तो यह उत्तरदायित्व बनता ही है कि वह नकल रोके, पर उससे पहले विद्यालय, अभिभावक, शिक्षक आदि सबका भी यह कर्त्तव्य है कि सब मिलकर शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने का हरसंभव प्रयत्न करें। यदि हमें हरा-भरा पेड़ बनाना है तो उसकी जड़ को सींचना होगा, न कि पत्ती या डालियों को, ठीक उसी तरह शिक्षा रूपी वृक्ष को विकसित करने के लिए उसकी जड़ यानी छात्रों को सही ज्ञान से सींचना अत्यावश्यक है।
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