सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हिंदी लेख ‘शिक्षा का उद्देश्य’

शिक्षा का उद्देश्य

महात्मा गांधी ने कहा था-‘‘चरित्र निर्माण ही शिक्षा का अंतिम लक्ष्य है।’’ यह सच है कि शिक्षा मनुष्य के अंदर छिपी शक्तियों को बाहर लाती है, उसे व्यावहारिकता सिखाती है, समझदार बनाती है, दुनियादारी, धर्म, नैतिकता की शिक्षा देती है। क्रोध, हिंसा, ईष्र्या, घृणा आदि नकारात्मक भावों को हटाकर उसके अंदर निहित दया, करुणा, सहिष्णुता, क्षमा आदि सकारात्मक भावों को बढ़ावा देती है, मानसिक शक्ति में वृद्धि करके उसके चरित्र-निर्माण में सहायक बनती है। और इससे भी बड़ा है कि वह उसके अंदर अच्छे विचारों को जाग्रत करके, उसे पशु से ऊपर उठाती है, उसमें मनुष्यता के भावों का संचार करके उसे सही अर्थों में मानव बनाती है। 
पर, आज हम देखें तो शिक्षा अपने इस महान उद्देश्य से भटकी हुई नज़र आती है। पुस्तकीय ज्ञान देना ही इसका चरम लक्ष्य बनता जा रहा है। आज की शिक्षा मात्र सूचनाएँ प्रदान करने का साधन भर रह गई है। वह बालक को पढ़ना, लिखना, बोलना तो सिखा रही है, पर उसे जीने का सही तरीका नहीं सिखा पा रही है, उसे जीवन की परिस्थितियों का सामना करने योग्य नहीं बना पा रही है। वह उसे अभियंता, चिकित्सक, वकील, वैज्ञानिक, अध्यापक तो बना रही है, सही मायने में कहें तो आज की शिक्षा बालक को मशीन तो बना रही है, पर उसे इंसान नहीं बना पा रही है। उसमें मानवीय मूल्यों का विकास करने में असमर्थ है। उसकी चारित्रिक उन्नति करने में नाकाम है। आज विभिन्न विषयों को रटकर, परीक्षा में अच्छे अंक लाना तथा उसके बल पर प्रतिष्ठित नौकरी पाना ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बनता जा रहा है। 
आज हम देखते हैं कि अनेक आपराधिक मामलों में पढ़े-लिखे युवा वर्ग की भागीदारी बढ़ती जा रही है, जो कि शिक्षा-शास्त्रियों के लिए चिंता का एक विषय है। इसका प्रमुख कारण यही है कि आज हमारा युवा वर्ग दिग्भ्रमित है, उसे कर्तव्य - अकर्तव्य का फ़र्क ही समझ में नहीं आता। सहनशीलता, सद्भावना, बड़ों के प्रति सम्मान की भावना, छोटों के प्रति प्रेम, सहयोग की भावना आदि से तो उसका संबंध छूटता-सा जा रहा है। यही कारण है कि समाज में आज रिश्ते-नाते, भाईचारा आदि संबंध बेमानी होते जा रहे हैं। वृद्धों को उपेक्षित जीवन जीना पड़ रहा है। आज व्यक्ति धन-लोलुप हो रहा है, आत्म-केंद्रित व स्वार्थी होता जा रहा है। कारण यही है कि आज की शिक्षा युवाओं में इस तरह की सोच विकसित करने में पूर्णतः अक्षम है।  
यदि हम चाहते हैं कि शिक्षा अपने सही उद्देश्य की पूर्ति करे, मानव को सही अर्थों में सच्चा मनुष्य बनाए, तो यह तभी संभव है जब हमारी शिक्षा-नीति में सदाचार, आदर्श, अनुशासन, चारिन्न्य और नैतिक मूल्यपरक शिक्षा को शामिल किया जाए। हमारा बड़ा दुर्भाग्य है कि आज अधिकतर पाठ्यक्रम में न तो आरुणि, ध्रुव, एकलव्य, श्रवणकुमार जैसे संयमी, अनुशासित और संकल्पी चरित्रों को पढ़ाया जाता है और न ही सावित्री, सीता, सती अनसुइया, जीजाबाई आदि का स्मरण किया जाता है। 
आज शिक्षा को रोज़गाार देने के साथ-साथ मूल्य-प्रदायक भी होना चाहिए। समाज में हुए मूल्यों के विघटन ने ही इस तरह की परिस्थिति को जन्म दिया है। सी0 बी0 एस0 ई0 ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए एक सकारात्मक कदम उठाया है। उसने सभी विषयों के प्रश्नपत्र में एक मूल्यपरक प्रश्न को अनिवार्य कर दिया है, पर यह प्रयास नाकाफ़ी है। मूल्यपरक शिक्षा को थोपकर हम अपने उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सकेंगे, बल्कि इसके लिए हमारे राजनेता और शिक्षा-शास्त्रियों को निजी-स्वार्थ छोड़कर एक ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करना चाहिए, जिसमें युवा वर्ग को स्वाभाविक एवं सहज रूप में संयमी, संस्कारी, आत्म-सम्मानी, निडर, परोपकारी और अनुशासित बनने की प्रेरणा मिले। शिक्षा अपने चरम और परम लक्ष्य को प्राप्त करने में तभी समर्थ हो सकेगी, जब वह देश को ज़िम्मेदार, चारित्रिक रूप से सशक्त एवं आदर्श नागरिक प्रदान करेगी। 
हमें पूर्ण विश्वास है कि शिक्षा में सकारात्मक बदलाव अवश्य होगा, क्योंकि कोई भी कार्य कठिन तो हो सकता है पर असंभव नहीं।  

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदी हास्य कविता स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन

स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन स्वर्ग में से स्वर्गवासी झाँक रहे धरती पर इंद्र से ये बोले कुछ और हमें चाहिए। देव आप कुछ भी तो लाने देते नहीं यहाँ,  कैसे भोगें सारे सुख आप ही बताइए। इंद्र बोले कैसी बातें करते हैं आप लोग, स्वर्ग जैसा सुख भला और कहाँ पाइए।  बोले स्वर्गवासी एक चीज़ है, जो यहाँ नहीं, बिना उसके मेनका और रंभा न जँचाइए। इंद्र बोले, कौन-सी है चीज़ ऐसी भला वहाँ, जिसके बिना स्वर्ग में भी खुश नहीं तुम यहाँ? अभी मँगवाता हूँ मैं बिना किए देर-दार, मेरे स्वर्ग की भी शोभा उससे बढ़ाइए। बोले स्वर्गवासी, वो है मोबाइल कनैक्शन, यदि लग जाए तो फिर दूर होगी टेंशन। जुड़ जाएँगे सब से तार, बेतार के होगी बात, एस0 एम0 एस0 के ज़रिए अपने पैसे भी बचाइए। यह सुन इंद्र बोले, दूतों से ये अपने, धरती पे जाके जल्दी कनैक्शन ले आइए। दूत बोले, किसका लाएँ, ये सोच के हम घबराएँ, कंपनियों की बाढ़ है, टेंशन ही पाइए। स्वर्गवासी बोले भई जाओ तो तुम धरती पर, जाके कोई अच्छा-सा कनैक्शन ले आइए। बी0एस0एन0एल0 का लाओ चाहें आइडिया कनैक्शन जिओ का है मुफ़्त अभी वही ले आइए।...

HINDI ARTICLE PAR UPDESH KUSHAL BAHUTERE

‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’-इस पंक्ति का प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ में उस समय किया है, जब मेघनाद वध के समय रावण उसे नीति के उपदेश दे रहा था। रावण ने सीता का हरण करके स्वयं नीति विरुद्ध कार्य किया था, भला ऐसे में उसके मुख से निकले नीति वचन कितने प्रभावी हो सकते थे, यह विचारणीय है।  इस पंक्ति का अर्थ है कि हमें अपने आस-पास ऐसे बहुत-से लोग मिल जाते हैं जो दूसरों को उपदेश देने में कुशल होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग दूसरों को तो बड़ी आसानी से उपदेश दे डालते हैं, पर उन बातों पर स्वयं अमल नहीं करते, क्योंकि-‘‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।’’ हम भी ऐसे लोगों में से एक हो सकते हैं, या तो हम उपदेश देने वालों की श्रेणी में हो सकते हैं या उपदेश सुनने वालों की। अतः लगभग दोनों ही स्थितियों से हम अनभिज्ञ नहीं हैं। हमें सच्चाई पता है कि हमारे उपदेशों का दूसरों पर और किसी दूसरे के उपदेश का हम पर कितना प्रभाव पड़ता है। सच ही कहा गया है,  ‘‘हम उपदेश सुनते हैं मन भर, देते हैं टन भर, ग्रहण करते हैं कण भर।’’ फिर क्य...

Article निंदक नियरे राखिए

निंदक नियरे राखिए यह पंक्ति संत कवि कबीरदास जी के एक प्रसिद्ध दोहे की है। पूरा दोहा इस प्रकार है- ‘‘निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिनु पाणि साबण बिना, निरमल करै सुभाय।।’’ अर्थ-कबीर दास जी कहते हैं कि हमें हमारी निंदा करने वाले व्यक्ति से बैर नहीं पालना चाहिए, बल्कि उसे अपनी कुटिया में, अपने घर के आँगन में अर्थात् अपने समीप रखना चाहिए। निंदक व्यक्ति के कारण बिना पानी और बिना साबुन के हमारा स्वभाव निर्मल बन जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि कबीर ने ऐसी बात क्यों कह दी? भला जो व्यक्ति हमारी बुराई कर रहा हो, उससे हमारा सुधार कैसे हो सकता है? तो मैं आपको बता दूँ कि कबीर दास जी महान समाज-सुधारक थे। उनकी हर एक साखी उनके अनुभव का आईना है। उनकी हर एक बात में गूढ़ अर्थ निहित है। कबीर दास जी ने एकदम सही कहा है कि निंदक व्यक्ति बिना किसी खर्च के हमारा स्वभाव अच्छा बना देता है। सोचिए, हमें अपने तन की स्वच्छता के लिए साबुन एवं पानी आदि की आवश्यकता पड़ती है, जबकि मन को स्वच्छ करना इतना कठिन होता है, फिर भी उसे हम बिना किसी खर्च के अत्यंत सरलता से स्वच्छ कर सकते हैं। बस, इसके लिए हमें निं...