सूखी धरती कर रही पुकार
सूखी धरती कर रही पुकार,
मुझ पर करो रहम-उपकार।
पेड़ लगाकर मुझे हरसाओ
जल के लिए न तुम तरसाओ
रत्न-गर्भा पर कुछ तरस खाओ
माँ कहकर छला है मुझे बेहिसाब
मुझ पर करो रहम-उपकार।
पर्वत, वन, बादल मेरा गहना
खेत है हँसी, खिलखिलाहट झरना
अल्हड़ चाल से नदियों का बहना
मेरा ये सौंदर्य क्यूँ दिया उजाड़
मुझ पर करो रहम-उपकार।
रंग-बिरंगे पक्षी गाते थे गाना
पशु स्वच्छंद हो घूमते मेरे अँगना
खुशी से चहकता था घर-द्वार
उजाड़ दिया क्यूँ मेरा परिवार
मुझ पर करो रहम-उपकार।
मैं माँ हूँ अतः कोई शाप नहीं दूँगी
शालीन हूँ, सो अपशब्द भी न कहूँगी
रक्षक हूँ, पालक हूँ, सब कुछ सहूँगी
पर मेरा रोम-रोम कर रहा चीत्कार
मुझ पर करो रहम-उपकार।
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