तरक्की का सूरज निकला, अँधेरा फिर भी न पिघला
तरक्की का सूरज निकला, पर अँधकार फिर भी न पिघला।कंप्यूटर, मोबाइल, राॅकेट, यानों ने, मानव की गति को बदला।
पर अशिक्षा, महँगाई, प्रदूषण ने, सूरज की किरणों को निगला।।
ज्यों-ज्यों विज्ञान का उत्कर्ष हुआ, मानवता हो गई किनारे ।
आदमी पहुँचा चाँद और मंगल पर, संस्कार हो गए बेचारे ।।
पर बहुत हो चुका समय व्यर्थ अब, दोषारोपण से बचना होगा ।
हम सब युवाओं को मिलकर अब, कुछ न कुछ तो करना होगा।।
अब नरेंद्र मोदी की छिड़ी मुहिम, जल्द भ्रष्टाचार भगा देगी।
इस युग पुरुष की ताकत, राम-राज्य को फिर ला देगी।।
तरक्की के सूरज की तपिश, असभ्य-अँधेरे को पिघला देगी।
तरक्की का फिर से प्रकाश फैलेगा, अँधेरे की न छाया होगी।।
मेरे मन तू निराश न हो, ये काली घटाएँ भी छँट जाएँगी।
दिन में शुक्ल पक्ष का सूरज, रात में पूनम की चाँदनी होगी।।
तरक्की के सूरज को देख अँधेरा पिघल-पिघल भागेगा।
उन्नति के जय घोष के संग, मानवता का पोषण होगा।।
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