ये कैसी आधुनिकता ?
लगभग छह-सात महीने पहले मोहल्ले में एक परिवार किराए पर रहने आया था। परिवार में पति, पत्नी तथा उनकी आठ वर्षीया पुत्री थी। बातचीत में मालूम हुआ कि पति का तबादला इस शहर में हो गया था और उनके इस शहर में रहने वाले एक रिश्तेदार ने ही इस मोहल्ले में उन्हें घर खोज कर दिलाया था। हालाँकि उनकी पत्नी को यह मोहल्ला शुरू से ही पसंद नहीं था। कारण यह था कि उसकी नज़र में मोहल्ले की सारी औरतें अनपढ़, गँवार और बेशऊर थीं। हाँ, परंतु मोहल्ले की औरतों सहित सबकी रुचि उनकी पत्नी में अवश्य थी। अपने आधुनिक रहन-सहन, वेशभूषा और अंग्रेजी भाषा की वजह से वो पूरे मोहल्ले के आकर्षण का केंद्र थी।
पंद्रह अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के दिन वो प्रतिदिन की तरह अपनी बेटी को स्कूटी पर बिठाकर स्कूल से ला रही थीं। रास्ते में बेटी ने आइसक्रीम खाने की इच्छा जाहिर की। उस तथाकथित आधुनिक महिला ने स्कूटी रोककर आइसक्रीम खरीदी। माँ-बेटी दोनों ने बड़े चाव से आइसक्रीम खाई। आइसक्रीम बेटी के हाथ और होंठों के आस-पास लग गई थी। उस महिला ने दुकानदार से पेपर नैपकिन की माँग की। दुकानदार ने बेचारगी से ‘न’ में सिर हिला दिया। उसके चेहरे पर ग्लानि के भाव साफ़ तौर पर दिखाई दे रहे थे। उस महिला की आधुनिकता के सामने वह बेचारा पेपर नैपकिन न रखने पर पानी-पानी हो रहा था।
आमतौर पर तो ऐसे समय में मोहल्ले की महिलाएँ अपनी धोती के पल्लू से ही अपने नौनिहालों का चेहरा साफ़ कर देती हैं, पर उस जींस-धारी महिला के पास तो उसका भी अभाव था। पर्स टटोला, पर उसमें भी कुछ मुँह पोंछने लायक चीज़ दिखाई न दी। परेशान होकर इधर-उधर नज़रें दौड़ाईं। बच्ची की ओर देखा, अभी भी उसका आइसक्रीम सना हाथ सामने की ओर फैला था और दूसरे हाथ में स्कूल की तरफ़ से दिया गया एक छोटा-सा तिरंगा लहरा रहा था। अगले ही पल तिरंगा उस महिला के हाथ में था और उससे बच्ची का मुँह साफ़ किया जा रहा था। बच्ची के हाथ-मुँह पोंछने के बाद उसने झंडे को दुकान के बाहर रखे डस्टबिन में फेंक दिया।
बस इसी पल से आज वह तथाकथित आधुनिक महिला मुझे हमारे मोहल्ले की दकियानूसी, निरक्षर महिलाओं से कहीं ज्यादा अनपढ़ और गँवार मालूम पड़ रही थी।
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