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Hindi Kahani ओछी मानसिकता

 ओछी मानसिकता 

‘नहीं माँ, कह तो दिया कि अब मैं आज से भैया के साथ बिल्कुल नहीं जाऊंगी। मैं अब बच्ची नहीं रही, जो मुझे हर पल किसी सहारे की जरूरत पड़े।’’ रीना कुछ गुस्से भरे स्वर में बोली। 

‘‘अरे! तू भला क्यों नहीं जाएगी भैया के साथ?’’ 

‘‘नहीं माँ, मैं नहीं जाऊँगी। मैं टेंपो करके चली जाऊँगी।’’ 

‘‘ठीक है, जैसी तेरी मर्जी। वैसे भी तू किसी बात को सुनती तो है नहीं। देख रोहन! अपनी बहन को देख! अपनी बहन को समझा, कह रही है कि तेरे साथ नहीं जाएगी। अरे! भला टैंपू में जाने से पैसे और समय दोनों का ही नुकसान होगा। और फिर तेरा तो ऑफिस है ही उस तरफ़ ..........’’ 

रोहन सुनकर शांत रहा, कुछ नहीं बोला। रीना अपना बैग उठाकर बाहर जाने लगती है। 

‘‘अरे! कम-से-कम दूध तो पीती जा।’’ माँ ने मेज पर रखे हुए दूध को देखकर रीना को आवाज़ लगाई। 

‘‘नहीं माँ, देर हो रही है। मैं कैंटीन में ही कुछ खा-पी लूँगी’’, कहकर रीना तेज़ी से बाहर निकल जाती है। 

‘‘इस लड़की के दिमाग में भी पता नहीं क्या-क्या चलता रहता है।’’ अपने आप से ही बड़बड़ाती हुई माँ दूध वापस फ्रिज में रखने चली गईं। 

रीना नज़रें दौड़ाकर टेंपो वाले को देख रही थी। मगर अभी कोई भी टेंपो वाला दिखाई नहीं दे रहा था। रीना मन-ही-मन सोच रही थी कि कहीं देर ना हो जाए, वरना मालती मैडम आज मुझे छोड़ने वाली नहीं हैं। आज तो उन्हें टैस्ट लेना है। सोचेंगी कि टैस्ट से घबराकर ही मैंने देर से आने का बहाना बनाया है। और फिर वो क्लास में सबके सामने ऐसे-ऐसे कमेंट करती हैं कि बस.........।

मालती मैडम का रोबीला चेहरा आँखों के सामने आते ही अब उसे रह-रहकर कॉलेज के उन लड़कों पर बेहद गुस्सा आने लगा, जिनकी वजह से आज उसे अकेले कॉलेज़ जाने का निर्णय लेना पड़ा। अच्छा भला वह अपने भाई के साथ रोज़ जा ही रही थी। भैया अपने ऑफिस जाते समय उसे ड्राप कर देते थे। पर तुरंत उसे कॉलेज़ के गेट पर खड़े मनचले लड़कों के कमेंट याद हो आए, जो उसे रोज-रोज न चाहते हुए भी सुनने पड़ते थे, 

‘‘देखो, कितने सुंदर लड़के पर हाथ डाला है। अरे! हम क्या मर गए थे जो इसे कॉलेज के बाहर के लड़के से दोस्ती की ज़रूरत पड़ गई।’’ 

‘‘अरे भाई! तुम देख नहीं रहे, हमारे पास इस लड़के जैसी इतनी बड़ी गाड़ी कहाँ है? आजकल तो लड़कियाँ लड़कों पर नहीं, उनके पैसों पर मरती हैं।’’ 

कभी-कभी उसे यह भी सुनने को मिलता, ‘‘किसी दिन इस लड़के को ही देखते हैं। इसे ही सबक सिखाना पड़ेगा, वरना तो हर लड़की कॉलेज के लड़कों को छोड़कर और लड़कों से दोस्ती करती रहेगी, फिर हमारा क्या होगा?’’

रीना अच्छी तरह जानती थी कि इन आवारा लड़कों के ये शब्द उसके भाई के कानों में भी अवश्य पड़ते रहे होंगे, तभी तो आज उसके मना करने और माँ के कहने पर भी भैया ने उसे एक बार भी अकेले जाने से रोका नहीं। शायद भैया भी इस तरह की परिस्थिति का सामना करने से बच रहे हों।

‘नहीं-नहीं, इस तरह तो इन लड़कों को शह मिलती रहेगी। पर मैं भला कर ही क्या सकती हूँ?’

रीना अभी ऊहापोह की स्थिति से जूझ ही रही थी कि तभी उसने देखा उसके घर में काम करने वाली बाई, जो कि लगभग उसी की हमउम्र होगी, अपने भाई के साथ उसकी साइकिल पर पीछे बैठकर आराम से बातें करती हुई उसके सामने से गुज़र रही थी। बातों में व्यस्त होने के कारण उसकी नज़र रीना की तरफ़ तो क्या किसी की तरफ़ नहीं गई। उन दोनों का ध्यान सिर्फ़ अपनी बातों में था। उसे याद आया कि माँ ने जब भी कभी इससे जल्दी आने को कहा है, इसने हमेशा यह कहकर मना किया है कि मैं इससे जल्दी नहीं आ सकती, क्योंकि मेरा घर दूर है। इसलिए जब उसका भाई फैक्ट्री जाता है, तो वही अपने साथ लेता हुआ आ जाता है। इससे उसे भी आराम रहता है और उसकी माँ को भी उसकी ज़्यादा चिंता नहीं रहती। 

अभी रीना का ध्यान उसकी तरफ़ से हटा भी नहीं था कि एक टेंपो वाला उसके सामने आकर खड़ा हो गया। अंदाज़ा लगाकर उसने पूछा ‘‘कहीं जाना है मैडम?’’ उसने कहा, ‘‘हाँ।’’ और वह उस टेंपो में बैठ गई। टेंपों में बैठते ही उसने कहा, ‘‘भैया! आजाद नगर ले चलो।’’ उसके कहते ही टेंपो वाले ने अपना टेंपो आजाद नगर की ओर घुमा लिया। 

यह कोई कॉलेज का रास्ता नहीं था, वरन् उसके अपने घर का रास्ता था। अब वह टेंपों वाले को निर्देश देकर पूरी निश्चिंतता से बैठ गई। उसने मन-ही-मन निर्णय ले लिया कि अब वह प्रतिदिन अपने भैया के साथ ही कॉलेज जाएगी। वह इन आवारा लड़कों के छिछोरे कमेंट सुनकर न घबराएगी और न अपना निर्णय बदलेगी। और हाँ, इस विषय में भैया और माँ से भी खुलकर बात करेगी। परिवार के साथ से कोई-न-कोई रास्ता अवश्य निकलेगा। 

अब वह न सिर्फ़ बेफ़िक्र थी बल्कि पूरी तरह तनाव-रहित भी थी। इस समय उसे न तो मालती मैडम का डर सता रहा था और ना ही उन आवारा लड़कों की फब्तियों का।

बस, रह-रह कर एक सवाल अवश्य उसके मन में उठ रहा था, ‘क्या एक लड़के और लड़की का बस प्रेमी-प्रेमिका वाला ही संबंध होता है, इसके अलावा और कुछ नहीं? भला यह बात किसी को क्यों नहीं समझ में आती कि एक युवा भाई-बहन भी फिल्म देखने जा सकते हैं, होटल में खाना खाने जा सकते हैं, या फिर साथ-साथ कॉलेज जा सकते हैं। आखिर इस ओछी मानसिकता का अंत कब होगा? कैसेे होगा?’

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