करवा चौथ के व्रत की कथा
करवाचौथ को सारे भारतवर्ष में धार्मिक पर्व की तरह धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूर्णमासी के चौथे दिन होता है। इस दिन आमतौर पर विवाहित महिलाएँ व्रत रखती हैं। कुछ परिवारों में वे युवतियाँ भी इस व्रत को रखती हैं, जिनका विवाह तय हो गया है। शाम के समय महिलाएँ सोलह शृंगार कर समूह में पूजा करती हैं। पूजा के समय सोने, चाँदी, मिट्टी अथवा चीनी के करवे (एक लोटानुमा पात्र) का आपस में आदान-प्रदान करती हैं। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर, जेठानी आदि को श्रद्धापूर्वक विभिन्न उपहार प्रदान करती हैं तथा उन्हें प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेती हैं।
इस व्रत में महिलाएँ पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और रात को चंद्रमा निकलने पर उसे अर्घ्य देती हैं। तत्पश्चात पति के हाथों पानी पीकर व्रत खोलती हैं। इसके बाद विभिन्न प्रकार के तैयार किए गए व्यंजनों को अपने पति तथा परिवार के साथ मिल-बैठकर प्रेमपूर्वक खाती-खिलाती हैं।
हर त्योहार अथवा व्रतादि के पीछे कोई-न-कोई कहानी, घटना, वैज्ञानिक तथ्य या मान्यता जुड़ी होती है। इस व्रत के साथ एक नहीं वरन् कई कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। यहाँ सबसे प्रचलित उस कहानी को प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसे अधिकतर घरों में पूजा के समय सुनाया जाता है।
बहुत समय पहले की बात है। एक साहूकार के सात बेटे थे। उन सात भाइयों की एक ही बहन थी, नाम था ‘करवा’। करवा सातों भाइयों की अत्यंत लाड़ली बहन थी। सातों भाई उससे इतना प्रेम करते थे कि वे पहले करवा को खाना खिलाते, उसके खाने के बाद ही स्वयं खाते।
एक बार शादी के उपरांत करवा अपने मायके आई हुई थी, तभी करवाचौथ का व्रत पड़ा। करवा ने व्रत का विधिपूर्वक पालन किया। उसने निर्जला व्रत रखा, पूरे दिन कुछ भी न खाया, न पिया। शाम को जब सातों भाई अपने व्यापार-व्यवसाय के बाद घर लौटे तो उन्होंने देखा, उनकी प्यारी बहन भूख-प्यास के कारण कुछ व्याकुल है। सभी भाई जब खाना खाने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी खाने का आग्रह किया। परंतु करवा ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि आज उसने करवा चौथ का निर्जल व्रत रखा है और वह चंद्रोदय के बाद उसे अर्घ्य देकर ही जलादि ग्रहण करेगी।
भाइयों ने देखा कि चंद्रमा निकलने में तो अभी समय है। इतनी देर तक उनकी प्यारी बहन कैसे भूखी रहेगी? तब सबसे छोटा भाई अपनी बहन की व्याकुलता देख एक दीपक तथा छलनी लेकर दूर पीपल के पेड़ पर चढ़ जाता है। वह दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। तभी दूसरा भाई अपनी बहन को आवाज़ देकर चाँद के निकलने की सूचना देता है। दूर से उस दीपक को देखने पर करवा को ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में चाँद निकल आया है। वह अपनी भाभियों को भी चाँद के दर्शन कर व्रत खोलने को कहती है, पर उसकी भाभियों को अपने पतियों की हरकत का पता होता है, अतः वह उसे भी ऐसा करने को मना करती हैं। पर करवा अपने भाइयों की बात पर विश्वास कर लेती है और श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक चाँद को अर्घ्य देकर भोजन करने बैठ जाती है।
जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है, तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है, तो उसमें बाल निकल आता है। और जैसे ही वह तीसरा टुकड़ा मुख में डालने को उद्धत होती है, वैसे ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिलता है। वह दुःखी हो विलाप करने लगती है। तब उसकी भाभियाँ उसे सच्चाई से अवगत कराती हैं और बताती हैं कि हमारी बात पर विश्वास न करने की भूल के कारण ही उसके साथ ऐसा अपशकुन हुआ है।
सच्चाई जानने के बाद वह फूट-फूटकर रोने लगती है। उसे समझ आ जाता है कि करवा चौथ के व्रत का सही तरह से पालन न करने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं, जिसके कारण उसके साथ यह सब हुआ है। करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवित करके रहेगी। वह पूरे वर्ष अपने पति के शव के पास बैठी रहती है और उसकी देखभाल करती है। शव के ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को एकत्र करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। वह अपनी भाभियों के साथ नियमपूर्वक व्रत रखती है।
जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी को सूईनुमा घास देकर आग्रह है कि ‘श्याम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’, लेकिन हर भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने की बात कहकर चली जाती है। जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। वह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था, अतः उसकी पत्नी में ही तुम्हारे पति को दोबारा जीवित करने की शक्ति है। इसलिए जब वह आए, तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे छोड़ना मत।
छहों भाभियों के जाने के बाद जब सबसे अंत में छोटी भाभी आती है, तो करवा उनसे भी सुहागिन बनाने का आग्रह करती है, लेकिन छोटी भाभी उसकी बात टालने लगती है। इसे देख करवा उन्हें ज़ोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने की विनती करती है।
अंत में करवा की तपस्या देख भाभी द्रवित हो जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत निकालकर करवा के पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत ‘श्रीगणेश-श्रीगणेश’ कहता हुआ उठ बैठता है।
कथा पढ़कर सभी सुहागिनें भगवान गणेश से प्रार्थना करती हैं, 'हे श्रीगणेश! माँ गौरी! जिस प्रकार करवा को आपसे चिर सुहागन होने का वरदान मिला है, वैसा ही हम सब सुहागिनों को मिले।’
सभी सुहागिन स्त्रियाँ करवा माता से भी प्रार्थना करती हैं, ‘हे करवा माता! जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुँह से वापस निकाल लिया, वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।’
बोल करवा माता की जय
Jai Karvachauth maa 🙏🏼
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