‘तोल-मोल के
बोल’
एक बार एक किसान का अपने पड़ोसी से किसी बात पर झगड़ा हो गया। उसने गुस्से में अपने पड़ोसी को बहुत भला-बुरा कह दिया। पर कुछ समय बाद जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह बहुत पछताया और एक संत के पास गया। उसने संत से कहा, ‘‘महात्मा जी, मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा है। मैं अपने शब्द वापस लेना चाहता हूँ। कृपया कोई उपाय सुझाइए।’’
संत ने किसान को सामने पड़े पंख दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम ये सारे पंख एकत्र करो और शहर के बीचों-बीच जाकर रख दो।’’किसान ने संत की आज्ञा का पालन कर वैसा ही किया। पंख रखने के बाद वह पुनः संत के पास पहुँचा।संत ने उसकी ओर गौर से देखा और कहा, ‘‘अब जाओ और उन पंखों को इकट्ठा कर के वापस ले आओ।’’किसान की कुछ समझ न आया, पर फिर भी वह महात्मा जी की बात मानकर पंख एकत्र करने के लिए वापस उसी स्थान पर पहुँचा। पर यह क्या? इतनी देर में तो सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे। किसान निराश हो संत के पास पहुँचा और खाली हाथ लौटने का सारा किस्सा कह सुनाया । तब संत ने उससे कहा, ‘‘वत्स! ठीक ऐसा ही हमारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है। हम दूसरों को दुख पहुँचाने वाले कटु शब्दों को आसानी से अपने मुख से निकाल तो सकते हैं, पर चाहकर भी उन्हें वापस नहीं ले सकते। अतः अब ‘क्षमा’ ही एकमात्र उपाय है। जाओ और अपने पड़ोसी से सच्चे हृदय से क्षमा-याचना करो।’’इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि प्रत्येक शब्द तोल-मोल के ही मुख से निकालना चाहिए, क्योंकि एक बार शब्द मुख से निकल गया तो वह लाख यत्न करके भी वापस नहीं लौटाया जा सकता।संत कबीर दास जी ने भी कहा है-‘‘शब्द सम्हारे बोलिये, शब्द के हाथ न पाँव।एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।’’
very nice, keep it up
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