सच्चा पाठक
एक बार एक बहुत बड़े लेखक थे। उनकी लिखी रचनाएँ लोगों को बहुत पसंद आतीं। उनके हजारों प्रशंसक बन गए थे, जो उन्हें प्रतिदिन प्रशंसा भरे ढेरों खत लिखते। एक बार लेखक ने एक उपन्यास लिखा। हमेशा की तरह इस बार भी उनकी इस रचना को सभी लोगों ने बहुत पसंद किया और उन्हें शुभकामना भरे पत्र लिखे।
पत्र पढ़ते समय एक पत्र पर उनकी निगाह अटक गई। उस पत्र में एक प्रशंसक ने उनके उपन्यास की आलोचना की थी, जिसमें उसने उस उपन्यास की कुछ कमियों की ओर लेखक का ध्यान आकर्षित किया था। इस पत्र को पढ़कर लेखक को बहुत क्रोध आया। उसने सोचा, बड़े-बड़े विद्वान तक तो मेरे इस उपन्यास की प्रशंसा कर रहे हैं, फिर भला यह कौन है जो इस तरह मेरे लेखन में कमियाँ निकाल रहा है?
लेखक उसी क्षण अपने उस आलोचक बनाम प्रशंसक के लिए पत्र लिखने बैठ गए। उन्होंने इस पत्र में उस आलोचक के लिए बहुत गुस्से भरे शब्दों का प्रयोग करते हुए यहाँ तक लिख दिया कि तुम न तो एक अच्छे पाठक हो और न ही तुम्हें रचनाओं की समझ तक है। मैं एक उत्कृष्ट लेखक हूँ, सभी मेरी प्रशंसा करते हैं, यदि मेरे लेखन में कमी होती तो क्या वह अन्य रचनाकारों को नहीं दिखाई देती? इसका अर्थ ही यह है कि तुम सिर्फ झूठी लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए मेरे उपन्यास में कमियाँ निकाल रहे हो।
पत्र लिखने के बाद लेखक अपने अन्य कामों में व्यस्त हो गए और उस पत्र को पोस्ट करना भूल गए। जब अगले दिन वह अपनी मेज पर अपनी रचनाएँ लिखने के लिए बैठे, तब उन्हें उस पत्र का ध्यान आया। उन्होंने उस पत्र को बहुत खोजा, पर वह न मिला। उन्होंने सोचा कि चलो दूसरा पत्र लिख देते हैं। आखिर उस आलोचक बने प्रशंसक को पत्र तो लिखना ही चाहिए, वरना तो वह आगे भी इसी तरह की कमियाँ निकालता रहेगा।
पर अब तक उनका गुस्सा कल जितना नहीं रह गया था। उन्होंने सोचा, कल मैंने पत्र में कुछ ज़्यादा ही अनाप-शनाप लिख दिया था। आखिर ऐसा भी तो उसने कुछ नहीं लिखा, जिस पर इतना नाराज़ हुआ जाए। बस, मेरे लेखन में कुछ कमियाँ ही तो निकाली हैं। इस बार लेखक ने अपने पत्र में पहले से कहीं अधिक सभ्य और शांत शब्दों का प्रयोग किया। इस बार उनकी लिखावट में बहुत कम नाराजगी दिखाई दे रही थी। पर इस बार भी पत्र लिखने के बाद वह किन्हीं आवश्यक कार्यों में व्यस्त हो गए और दूसरे दिन भी पत्र को डाकखाने में डालना भूल गए।
जब तीसरे दिन वह लेखन कार्य के लिए अपनी मेज के पास आए, तब उन्हें वह पत्र वहाँ दिखाई दिया। उन्होंने सोचा डाकखाने में डालने से पहले इस पत्र को एक बार और पढ़ लेना चाहिए। अब तक उनका गुस्सा बिल्कुल ही समाप्त हो चुका था। उन्होंने पत्र पढ़कर सोचा कि गुस्से में मैंने यह सब क्या लिख दिया? आखिर मुझे तो यह सोचकर प्रसन्न होना चाहिए कि कोई तो मेरा सच्चा प्रशंसक है, जो ज्ञान में मुझसे भी बढ़कर है। उसमें इतनी सामर्थ्य, साहस, आत्मविश्वास और साहित्य की गहरी समझ है, तभी तो उसे मेरी बारीक कमियाँ भी नजर आ गईं। आज मुझे इस प्रशंसक के रूप में सच्चा आलोचक मिल गया है। और मैं उसका अहसानमंद होने की बजाय उस पर नाराज़ हो रहा हूँ। सभी लोग तो सिर्फ़ मेरी तारीफ़ लिखते हैं, सोचते होंगे कि कहीं अपनी कमियाँ पढ़कर मुझे बुरा ना लग जाए। एक यही प्रशंसक ऐसा है, जिसने मेरी कमियों की ओर भी मेरा ध्यान आकर्षित किया है। अब मैं कम-से-कम अगले उपन्यास में पुनः यही गलतियाँ तो नहीं दोहराऊँगा। अगर अन्य प्रशंसकों की तरह यह भी मेरे लेखन की कमियों की ओर ध्यान आकर्षित नहीं करता, तो मैं अपनी कमियों को न कभी समझ पाता और न ही उनमें कोई सुधार ही कर पाता।
लेखक ने तुरंत उस पत्र को उठाकर फाड़ दिया और अब उसकी जगह एक और पत्र लिखना प्रारम्भ किया, इसमें उन्होंने लिखा- "धन्यवाद मित्र! मेरी कमियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए। मैं तुम्हारा एहसानमंद हूँ। मुझे जीवन में पहली बार साहित्य की गहरी समझ रखने वाला एक सच्चा पाठक मिला है। अब मैं अपनी प्रत्येक रचना की प्रति सबसे पहले तुम्हें भेजा करूँगा। मुझे आशा है कि आगे भी तुम मुझे ऐसे महत्वपूर्ण सुझाव एवं राय देते रहोगे।"
और इस बार पत्र लिखते ही लेखक उसे पोस्ट ऑफिस में डालने के लिए चल दिया, क्योंकि इस बार वह उस पत्र को शीघ्रातिशीघ्र अपने आलोचक तक पहुँचाना चाहता था।
इमेज़ Shutterstock से साभार
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें