मित्र की समझदारी
एक नगर में एक सेठजी रहते थे। उनके यहाँ बहुत से नौकर-चाकर काम करते थे। एक दिन सेठजी के घर से एक सोने का हार चोरी हो गया। सेठजी ने सब नौकरों को बुलाया और उनसे बारी-बारी से पूछा, लेकिन किसी ने भी चोरी की बात नहीं कबूली। सेठजी ने बहुत डराया-धमकाया, लेकिन फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ। अंततः परेशान सेठजी ने अपने एक विद्वान मित्र को सारी घटना सुनाई और इस समस्या का समाधान निकालने को कहा।
मित्र बोला, "घबराओ नहीं, मैं शाम को तुम्हारे घर आता हूँ। तुम अपने सारे नौकरों को बुलाकर रखना।"
सेठ जी ने कहा, "उनसे पूछने का कोई फायदा नहीं है। मैं यह कार्य पहले ही कर चुका हूँ। कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं है।
मित्र ने कहा, "यह सब शाम को देखेंगे। बस, तुमसे जितना कहा है, उतना करो।"
सेठ जी ने कहा, "ठीक है।"
लेकिन सेठ जी मित्र की बातों से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उनका मित्र करना क्या चाहता है?
खैर, शाम को मित्र सेठ जी के घर पहुँचा। वहाँ पर सेठ जी ने सभी नौकरों को बुलाया। मित्र ने सभी नौकरों को एक बराबर की पतली सींकें (लकड़ी की पतली, बारीक डंडियाँ) दिखाईं और कहा, "देखो, मैं एक जादू जानता हूँ। यह सींके मंत्र पढ़ी हुई हैं, जो भी झूठ बोलेगा, उसकी सींक रात-ही-रात में एक इंच लंबी हो जाएगी।" कहकर उन्होंने सारे नौकरों को एक-एक सींक पकड़ा दी और उन्हें हिदायत दी, "सुबह होते ही सब ठीक सात बजे यहाँ आ जाएँगे। ध्यान रहे, सबको अपनी-अपनी सींकें सँभालकर रखनी हैं और कल अपने साथ लेकर आनी हैं। और हाँ, कोई भी अपनी सींक एक-दूसरे को दिखाएगा नहीं।"
सारे नौकर अपनी -अपनी सींक लेकर अपने घर चले गए। पर जिस नौकर ने चोरी की थी, उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी। उसे बार-बार अपने पकड़े जाने का डर सता रहा था। वह सोच रहा था कि कल जब मेरी सींक एक इंच लंबी हो जाएगी, तो सबके सामने मेरी कितनी बदनामी होगी।
उसने सोचा, 'क्यों न मैं पहले से ही इसे एक इंच काटकर छोटा कर देता हूँ। फिर कल नापे जाने पर मेरी सींक भी सबकी सींकों के बराबर निकलेगी और मैं चोर कहलाने से बच जाऊँगा।'
वह चोर सींक को एक इंच छोटा करके इत्मीनान से सो गया।
अगले दिन सभी नौकर सही सात बजे सेठ जी के घर पहुँच गए। वहाँ सेठ जी और उनका मित्र पहले से ही मौजूद थे। सेठ जी के मित्र ने सभी लोगों को अपनी-अपनी सींकें दिखाने को कहा। उन्होंने देखा कि सब की सींक उतनी ही बड़ी थी, जितनी उन्होंने उन्हें दी थी। लेकिन एक नौकर की सींक उन सबसे छोटी थी। यह वही नौकर था, जिसने अपनी सींक को रात में काट दिया था।
मित्र ने सेठ जी से कहा, "मित्र! यही है तुम्हारा असली चोर।"
सेठ जी ने पूछा, "कैसे?"
उन्होंने कहा, "दरअसल यह कोई जादू की सींकें न होकर साधारण सींकें थीं। यह सब तो मैंने असली चोर
पकड़ने के लिए नाटक किया था। मुझे पता था कि चोर सींक के लंबी होने की बात सुनकर डर जाएगा और उसे छोटा कर लेगा। मेरी यह चाल सफल हुई और तुम्हारा चोर पकड़ा गया।
सेठ जी अपने मित्र की सूझबूझ और समझदारी से बहुत प्रसन्न हुए।
बहुत बढ़िया. बच्चों को बहुत पसंद आयी
जवाब देंहटाएंEk acchi seekh
जवाब देंहटाएंAndaz e bayan achcha hai
जवाब देंहटाएंAndaz e bayan achcha hai
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