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हिंदी कहानी "सबसे बड़ा भक्त कौन?"

 सबसे बड़ा भक्त कौन?


नारद जी हर समय 'नारायण-नारायण' का जाप करते रहते थे। अतः वह समझते थे कि तीनों लोकों में भगवान विष्णु का मुझसे बड़ा भक्त और कोई नहीं है। इस बात का उन्हें बहुत अहंकार भी था।

एक बार अहंकार में भरकर उन्होंने भगवान विष्णु से पूछ ही लिया, "हे भगवन्! आप यह बताइए कि त्रिलोक में आप का सबसे बड़ा भक्त कौन है?" 

नारद जी को पूर्ण विश्वास था कि भगवान विष्णु उसे ही अपना सबसे बड़ा भक्त बताएँगे। भगवान विष्णु ने बहुत ही शांत भाव से उत्तर दिया, "हे नारद! मेरा सबसे बड़ा भक्त धरती पर रहने वाला एक किसान है।" 

यह सुनकर नारद जी को बड़ा दुख हुआ और आश्चर्य भी। उन्होंने कहा, "भगवन्! क्या कोई किसान मुझसे भी बड़ा भक्त हो सकता है? मुझे तो विश्वास नहीं होता।"

भगवान विष्णु ने कहा, "नारद! मेरे वचनों की सत्यता जानने के लिए तो तुम्हें मृत्यु लोक में जाना होगा। तभी तुम्हें पता चलेगा कि वह मेरा सबसे बड़ा भक्त कैसे है?"

नारद जी भगवान विष्णु से आज्ञा लेकर रात को ही मृत्यु लोक की ओर चल दिए। सुबह होने पर वह छिपकर उस किसान की गतिविधियों को देखने लगे। उन्होंने देखा, किसान सवेरे उठा और नहा-धोकर भगवान के नाम का स्मरण किया और अपने खेत की ओर चल दिया। दोपहर तक वह खेत में काम करता रहा। दोपहर को वह खाना खाने के लिए घर आया। खाना खाने से पहले उसने भगवान के नाम का स्मरण किया और फिर खाना खाकर, थोड़ा विश्राम करने के बाद फिर खेत की ओर चल दिया। वहाँ वह शाम तक काम करता रहा। अँधेरा होने पर वह वापस घर आया। फिर से भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करके खाना खाया और सो गया। 

नारद जी वापस विष्णु धाम पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने विष्णु जी से कहा, "हे भगवन्! मैंने किसान की पूरे दिन की गतिविधि देखी, लेकिन मुझे तो कहीं से भी नहीं लगा कि वह आपका परम भक्त है। मैं तो पूरा दिन आपका नाम रटता रहता हूँ। उसने तो बस सुबह, दोपहर और रात-तीन बार ही आपका नाम लिया।" 

भगवान विष्णु ने कहा, "तुम्हारी इस बात का उत्तर मैं बाद में दूँगा। पहले तुम्हें मेरा एक छोटा-सा काम करना है।"
नारद बोले, "बताइए भगवन्! मैं तो हर समय आपके काम के लिए तैयार हूँ।"

भगवान विष्णु ने तेल से भरा एक पात्र उन्हें दिया और कहा, "तुम्हें तेल से भरा यह पात्र लेकर इंद्रलोक का एक चक्कर लगाना है। पर हाँ, ध्यान रखना कि तेल की एक बूँद भी इस पात्र से गिरनी नहीं चाहिए।"

नारद जी ने कहा, "यह कौन सी बड़ी बात है? यह काम में अभी किए देता हूँ।" ऐसा कह वह भगवान की आज्ञा का पालन करने के लिए उस पात्र को लेकर चल दिए। चक्कर लगाते समय उनका पूरा ध्यान उस पात्र की ओर था। वह नहीं चाहते थे कि इसमें से एक भी बूँद बाहर गिरे, अन्यथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन हो जाएगा।

चक्कर लगाने के बाद वह विष्णु जी के पास वापस आए और अत्यंत उत्साहित होकर बोले, "हे भगवन्! देखिए, मैंने इस पात्र में से एक बूँद भी तेल गिरने नहीं दिया। मैंने आपका कार्य तो सफलतापूर्वक कर दिया लेकिन मेरे प्रश्न का उत्तर अभी भी बाकी है।" 

विष्णु जी ने कहा, "नारद! तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तो तुम्हें मिल गया है।"

नारद जी चौंके, "कैसे भगवन्? अभी तो आपने मुझसे कुछ कहा ही नहीं।" 

भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा, "नारद! यह बताओ कि चक्कर लगाते समय तुमने कितनी बार मेरा नाम लिया? कितनी बार मुझे याद किया?"

नारद जी बोले, "भगवन्! सच पूछिए, तो एक बार भी मैंने आपका नाम नहीं लिया।" 

विष्णु जी ने कहा, "क्यों? तुम तो मेरे बहुत बड़े भक्त हो। फिर तुमने दिन भर में एक बार भी मेरा नाम क्यों नहीं लिया?" 

नारद जी सकुचाते हुए बोले, "भगवन्! चक्कर लगाते समय तो मेरा पूरा ध्यान इस पात्र की ओर था। मेरा तनिक भी ध्यान इस पात्र से हटकर किसी ओर गया ही नहीं। और फिर उस समय मैं आपके द्वारा दिया गया कार्य ही तो कर रहा था, फिर भला अलग से आपका नाम लेने की क्या आवश्यकता थी।" 

तब विष्णु जी हँसे और बोले, "हे नारद! वह किसान भी तो मेरा ही कार्य करता है। पर पूरी लगन से अपना कार्य करते हुए भी वह मुझे स्मरण करने का समय निकाल लेता है। तुमने तो सिर्फ एक ही कार्य करने में मुझे भुला दिया। जबकि यह किसान वर्षों से प्रतिदिन ऐसे ही पूरी निष्ठा और लगन से कार्य कर रहा है। अपने कृषि कार्य में व्यस्त होते हुए भी मुझे दिन भर में तीन बार याद कर लेता है। हे नारद! इसीलिए वह किसान मुझे तुमसे ज़्यादा प्रिय है।" 

नारद जी को अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था। उनका अहंकार जाता रहा। वे समझ चुके थे कि ईश्वर द्वारा दिए गए कार्यों को सही रूप में करना और हर परिस्थिति में ईश्वर को याद करना, उन्हें अपने ध्यान से कभी विस्मृत न करना ही वास्तव में सच्ची ईश भक्ति है।

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