सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हिंदी कहानी (लालच का भूत)

लालच का भूत

एक बार एक बंदर खाने की तलाश करते हुए एक किसान के घर में घुस गया। वहाँ उसने देखा कि एक सुराहीनुमा बर्तन में चने रखे हुए हैं। उसने चने निकालने के लिए उस बर्तन में हाथ डाला और चनों को मुट्ठी में भर लिया। अब जब उसने हाथ बाहर निकालना चाहा, तो हाथ बाहर ही नहीं निकला। मुट्ठी बंद होने के कारण हाथ उस बर्तन के मुँह में फँस गया।

बंदर बुरी तरह घबरा गया। उसने सोचा कि बर्तन के अंदर अवश्य ही कोई भूत बैठा है, उसी ने उसका हाथ पकड़ रखा है। वह बहुत देर तक हाथ बाहर निकालने की कोशिश करता रहा, परंतु उसके सारे प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए।


उसने सोचा यह भूत अब उसे छोड़ने वाला नहीं है। मारे डर और घबराहट के वह जोर-जोर से रोने लगा। उसका रोना सुनकर किसान वहाँ पहुँचा। पहले तो बंदर को चने चुराते देख उसे बहुत क्रोध आया, परंतु फिर बंदर को जोर-जोर से रोता देख उसका क्रोध तरस में बदल गया।


उसने बंदर से कहा, "एक तो तुम चने चुरा रहे हो, ऊपर से इतनी तेज़ रो भी रहे हो। आखिर क्यों?"


बंदर रोते हुए बोला, "आइंदा मैं कभी आपके घर में नहीं आऊँगा, बस अभी मेहरबानी करके आप मेरा हाथ बर्तन के अंदर बैठे हुए भूत से छुड़ाइए।"


"भूत" किसान ने आश्चर्य से कहा। उसे बंदर की बात कुछ समझ न आई।


"हाँ, भूत!" जब मैंने चने निकालने के लिए इस बर्तन में हाथ डाला, तब तो सब ठीक था। पर जब चनों से मुट्ठी भरने के बाद हाथ बाहर निकालना चाहा, तो वह निकला ही नहीं। अवश्य ही इस बर्तन में भूत है, जिसने मेरा हाथ कसकर पकड़ रखा है।" कहकर बंदर फिर से रोने लगा।


किसान को सारी बात समझते देर न लगी। वह जोर से हँसा और बोला, "अरे मूर्ख! तुझे भूत ने नहीं, बल्कि तेरे लालच ने पकड़ रखा है। पहले मुट्ठी खोल और चने हाथ से गिरा। फिर देख, तुझे तेरे लालच का भूत कैसे छोड़ता है?"


किसान की बात मानकर बंदर ने वैसा ही किया। जैसे ही हाथ खाली हुआ, वैसे ही हाथ आसानी से बाहर निकल आया।

बंदर की जान-में-जान आई। किसान ने उस भूखे और नादान बंदर की हालत पर तरस खाकर उसे थोड़े चने खाने को दिए और फिर आइंदा अपने घर में न घुसने की चेतावनी देकर उसे भगा दिया।


मित्रो! इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बंदर की तरह हम भी लालच को अपनी मुट्ठी में पकड़े रहते हैं और फिर जीवन भर दुख उठाते हैं। यह लालच बाहर नहीं बल्कि हमारे मन के भीतर ही है। अतः जितनी जल्दी हो सके, हमें अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और सूझबूझ से इस लालच रूपी भूत से मुक्ति पाने का प्रयास करना चाहिए।



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदी हास्य कविता स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन

स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन स्वर्ग में से स्वर्गवासी झाँक रहे धरती पर इंद्र से ये बोले कुछ और हमें चाहिए। देव आप कुछ भी तो लाने देते नहीं यहाँ,  कैसे भोगें सारे सुख आप ही बताइए। इंद्र बोले कैसी बातें करते हैं आप लोग, स्वर्ग जैसा सुख भला और कहाँ पाइए।  बोले स्वर्गवासी एक चीज़ है, जो यहाँ नहीं, बिना उसके मेनका और रंभा न जँचाइए। इंद्र बोले, कौन-सी है चीज़ ऐसी भला वहाँ, जिसके बिना स्वर्ग में भी खुश नहीं तुम यहाँ? अभी मँगवाता हूँ मैं बिना किए देर-दार, मेरे स्वर्ग की भी शोभा उससे बढ़ाइए। बोले स्वर्गवासी, वो है मोबाइल कनैक्शन, यदि लग जाए तो फिर दूर होगी टेंशन। जुड़ जाएँगे सब से तार, बेतार के होगी बात, एस0 एम0 एस0 के ज़रिए अपने पैसे भी बचाइए। यह सुन इंद्र बोले, दूतों से ये अपने, धरती पे जाके जल्दी कनैक्शन ले आइए। दूत बोले, किसका लाएँ, ये सोच के हम घबराएँ, कंपनियों की बाढ़ है, टेंशन ही पाइए। स्वर्गवासी बोले भई जाओ तो तुम धरती पर, जाके कोई अच्छा-सा कनैक्शन ले आइए। बी0एस0एन0एल0 का लाओ चाहें आइडिया कनैक्शन जिओ का है मुफ़्त अभी वही ले आइए। धरती

HINDI ARTICLE PAR UPDESH KUSHAL BAHUTERE

‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’-इस पंक्ति का प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ में उस समय किया है, जब मेघनाद वध के समय रावण उसे नीति के उपदेश दे रहा था। रावण ने सीता का हरण करके स्वयं नीति विरुद्ध कार्य किया था, भला ऐसे में उसके मुख से निकले नीति वचन कितने प्रभावी हो सकते थे, यह विचारणीय है।  इस पंक्ति का अर्थ है कि हमें अपने आस-पास ऐसे बहुत-से लोग मिल जाते हैं जो दूसरों को उपदेश देने में कुशल होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग दूसरों को तो बड़ी आसानी से उपदेश दे डालते हैं, पर उन बातों पर स्वयं अमल नहीं करते, क्योंकि-‘‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।’’ हम भी ऐसे लोगों में से एक हो सकते हैं, या तो हम उपदेश देने वालों की श्रेणी में हो सकते हैं या उपदेश सुनने वालों की। अतः लगभग दोनों ही स्थितियों से हम अनभिज्ञ नहीं हैं। हमें सच्चाई पता है कि हमारे उपदेशों का दूसरों पर और किसी दूसरे के उपदेश का हम पर कितना प्रभाव पड़ता है। सच ही कहा गया है,  ‘‘हम उपदेश सुनते हैं मन भर, देते हैं टन भर, ग्रहण करते हैं कण भर।’’ फिर क्या करें? क

महावीर जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ