कल लेना बदला
एक बार एक युवक की अपने मित्र से किसी बात पर बहुत बहस हुई। दोनों ने एक-दूसरे को बहुत बुरा-भला सुनाया। युवक गुस्से में घर आया और उसने अपने घर में रखी हुई बंदूक को निकाला। उसे गुस्से में देख उसकी माँ ने पूछा, "क्या हुआ बेटा! बंदूक लेकर कहाँ जा रहे हो?"
युवक ने कहा, "माँ, मुझे अपने एक मित्र से बदला लेना है। आज उसने वर्षों की दोस्ती को एक ही दिन में भुला दिया। आज उसने मुझसे बहुत ही अपशब्द कहे हैं, इसलिए मैं उसे जिंदा छोड़ने वाला नहीं हूँ।"
माँ ने स्थिति को भाँपते हुए बड़ी ही शांति से कहा, "ठीक है बेटा! यदि तुम्हें बदला लेना ही है, तो कल ले लेना।" युवक ने उत्तेजना में भरकर कहा, "नहीं माँ, कल क्यों? आज क्यों नहीं? मैं तो आज ही उसे भगवान के पास पहुँचाकर रहूँगा।"
माँ ने पुन: बड़े ही संयत स्वर में कहा, "ठीक है, मैं तुम्हें मना नहीं कर रही, बस सिर्फ एक दिन रुकने के लिए कह रही हूँ। मेरी बात मानो और एक दिन रुक जाओ। मैं कल तुम्हें रोकूँगी नहीं।"
बेटे ने कहा, "ठीक है, लेकिन आप मुझे आज बदला न लेने के लिए क्यों कह रही हैं?"
माँ ने कहा, "बस, ऐसे ही। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम्हारे लिए आज का दिन ठीक नहीं है। इसलिए तुम मेरी बात मानो और आज रुक जाओ।"
बेटे ने सोचा, "कोई बात नहीं, माँ इतना कह रही हैं, तो आज रुक जाता हूँ। आखिर एक दिन में क्या बिगड़ जाएगा? मुझे बदला तो लेना ही है, आज नहीं तो कल ले लूँगा। उसे एक दिन और जीने का अवसर दे देता हूँ।"
युवक अपनी माँ की बात मानकर बंदूक वापस रख देता है और सोने चला जाता है।
परंतु नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। बार-बार आज का घटनाक्रम उसके सामने घूम रहा था। रह-रहकर उसे अपने मित्र पर बहुत क्रोध आ रहा था। वह सोचने लगा, आखिर उसने मुझसे इतना झगड़ा क्यों किया?
सोचते-सोचते ही उसे लगा कि मैंने भी तो उसके द्वारा कही गई छोटी-सी बात का बतंगड़ बना दिया, जिससे उसका गुस्सा और भड़क गया। मैंने भी ईंट का जवाब पत्थर से देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यदि मैं ही शांत हो जाता तो शायद झगड़ा होता ही नहीं। वरना तो आज से पहले उसने कई बार मेरी सहायता की है। नहीं-नहीं, आज के झगड़े में जितनी गलती उसकी है, उतनी ही मेरी भी है। मुझे उसकी बातों का इतना बुरा लग रहा है, तो उसे भी तो मेरी बातों से इतना ही दुख पहुँचा होगा। ऐसा सोचते-सोचते युवक की आँख लग गई।
जब वह सवेरे उठकर कमरे से बाहर आया, तो उसकी माँ ने उसे गौर से देखा और फिर उन्होंने अलमारी से बंदूक निकालकर उसकी ओर बढ़ाई और कहा,
"बेटा, मुझे क्षमा करना। कल मैंने तुम्हारे कार्य में बाधा पहुँचाई। पर अब मैं वादे के अनुसार यह बंदूक तुम्हें दे रही हूँ, अब तुम जाओ और अपने मित्र को जान से मारकर अपने अपमान का बदला ले लो।"
बेटे ने पहले माँ की ओर देखा, फिर बंदूक की ओर। बोला, "माँ, अब मुझे उसे मारने की आवश्यकता नहीं है। कल के लड़ाई प्रकरण में जितनी गलती उसकी थी, उतनी ही मेरी भी थी। आपने कल मुझे रोककर मेरे ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है। आप ऐसा नहीं करतीं, तो मैं अपने ही हाथों अपने प्रिय मित्र की जान लेने का अपराध कर देता और फिर जीवन भर पश्चाताप की अग्नि में झुलसता रहता।" ऐसा कहकर युवक अपनी माँ के चरणों पर गिर पड़ा।
माँ ने उसे उठाकर गले लगाते हुए कहा, "बेटा, कभी भी कोई फ़ैसला क्रोध में नहीं करना चाहिए। क्रोध बुद्धि को हर लेता है क्रोध में उठाया गया कदम सामने वाले के लिए जितना घातक होता है, उतना ही हमारे लिए भी।"
"पर माँ, आपने मुझे ये सब बातें कल क्यों नहीं समझाईं?"
"बेटा, तुम कल बहुत गुस्से में थे, इसलिए कल तुम्हें मेरी ये सब बातें समझ नहीं आतीं। बल्कि मेरे समझाने पर तुम मुझे भी अपना दुश्मन समझते। मुझे पता था कि जब थोड़ी देर बाद तुम्हारा क्रोध शांत हो जाएगा, तो तुम स्वयं ही सही निर्णय ले सकोगे। आज मैंने तुम्हारा चेहरा देखकर ही समझ लिया था कि अब तुम्हारा क्रोध शांत हो चुका है।"
युवक माँ की इस अनोखी सूझबूझ से हतप्रभ रह गया। वह पुनः माँ के चरणों पर गिर पड़ा और बोला,
"माँ, मैं आपका कृतज्ञ हूँ। आपने मुझे हत्यारा होने से बचा लिया। वरना आज मैंने न सिर्फ अपना एक अच्छा मित्र खोया होता, बल्कि आज मैं जेल में पड़ा होता और समाज में आपकी प्रतिष्ठा को एक क्षण में धूमिल कर चुका होता।"
सीख - इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें कोई भी निर्णय क्रोध में नहीं करना चाहिए। क्रोध की स्थिति में किया गया निर्णय हमें जीवन भर कष्ट पहुँचा सकता है।
Nice story
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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