सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Hindi Story कहानी वही, सोच नई

पहले मैं, पहले मैं नहीं, दोनों साथ 


आपने बचपन में एक कहानी पढ़ी अथवा सुनी होगी, जिसमें एक नदी पर एक सँकरा पुल होता है। वह पुल इतना छोटा होता है कि उसके ऊपर से एक बार में एक ही प्राणी गुज़र सकता है। 

एक बार एक बकरी उस पुल को पार कर रही होती है, तभी वह देखती है कि पुल के दूसरी ओर से एक और बकरी आ रही है। दोनों ही बकरियाँ पुल के बीचों-बीच आकर खड़ी हो जाती हैं। दोनों एक-दूसरे को गुस्से से देखती हैं। दोनों ही बकरियाँ पहले पुल पार करना चाहती हैं, लेकिन सँकरा पुल होने के कारण यह संभव नहीं है। उनमें से किसी एक को तो पीछे लौटना ही होगा, लेकिन कोई भी बकरी वापस लौटने को तैयार नहीं है। दोनों बकरियाँ 'पहले मैं' 'पहले मैं' करती हुई आपस में लड़ने लगती हैं। एक-दूसरे पर सींगों से प्रहार करने लगती हैं। लड़ते-लड़ते दोनों ही नदी में गिर जाती हैं और डूब कर मर जाती हैं।

अब एक और कहानी सुनिए। इस कहानी में भी बिल्कुल वही दृश्य है, वही परिस्थिति है। यानी कि एक सँकरे पुल पर दो बकरियाँ आमने-सामने से आ रही हैं। दोनों पुल के बीचों-बीच पहुँचती हैं। एक-दूसरे को देखती हैं। कुछ पल सोच-विचार करती हैं, फिर एक बकरी पुल पर नीचे बैठ जाती है और दूसरी बकरी उसके ऊपर चढ़कर पार हो जाती है। फिर बैठी हुई बकरी भी उठती है और अपनी दिशा की ओर चल देती है। इस तरह आपसी सहयोग और समझदारी से दोनों बकरियाँ एक ही समय में पुल पार कर लेती हैं। 

सीख-इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें  कोई भी निर्णय अहंकार वश नहीं लेना चाहिए, क्योंकि अहंकार में लिया गया निर्णय हमेशा दुखदाई होता है।

चित्र Shutterstock से साभार 

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदी हास्य कविता स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन

स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन स्वर्ग में से स्वर्गवासी झाँक रहे धरती पर इंद्र से ये बोले कुछ और हमें चाहिए। देव आप कुछ भी तो लाने देते नहीं यहाँ,  कैसे भोगें सारे सुख आप ही बताइए। इंद्र बोले कैसी बातें करते हैं आप लोग, स्वर्ग जैसा सुख भला और कहाँ पाइए।  बोले स्वर्गवासी एक चीज़ है, जो यहाँ नहीं, बिना उसके मेनका और रंभा न जँचाइए। इंद्र बोले, कौन-सी है चीज़ ऐसी भला वहाँ, जिसके बिना स्वर्ग में भी खुश नहीं तुम यहाँ? अभी मँगवाता हूँ मैं बिना किए देर-दार, मेरे स्वर्ग की भी शोभा उससे बढ़ाइए। बोले स्वर्गवासी, वो है मोबाइल कनैक्शन, यदि लग जाए तो फिर दूर होगी टेंशन। जुड़ जाएँगे सब से तार, बेतार के होगी बात, एस0 एम0 एस0 के ज़रिए अपने पैसे भी बचाइए। यह सुन इंद्र बोले, दूतों से ये अपने, धरती पे जाके जल्दी कनैक्शन ले आइए। दूत बोले, किसका लाएँ, ये सोच के हम घबराएँ, कंपनियों की बाढ़ है, टेंशन ही पाइए। स्वर्गवासी बोले भई जाओ तो तुम धरती पर, जाके कोई अच्छा-सा कनैक्शन ले आइए। बी0एस0एन0एल0 का लाओ चाहें आइडिया कनैक्शन जिओ का है मुफ़्त अभी वही ले आइए।...

HINDI ARTICLE PAR UPDESH KUSHAL BAHUTERE

‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’-इस पंक्ति का प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ में उस समय किया है, जब मेघनाद वध के समय रावण उसे नीति के उपदेश दे रहा था। रावण ने सीता का हरण करके स्वयं नीति विरुद्ध कार्य किया था, भला ऐसे में उसके मुख से निकले नीति वचन कितने प्रभावी हो सकते थे, यह विचारणीय है।  इस पंक्ति का अर्थ है कि हमें अपने आस-पास ऐसे बहुत-से लोग मिल जाते हैं जो दूसरों को उपदेश देने में कुशल होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग दूसरों को तो बड़ी आसानी से उपदेश दे डालते हैं, पर उन बातों पर स्वयं अमल नहीं करते, क्योंकि-‘‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।’’ हम भी ऐसे लोगों में से एक हो सकते हैं, या तो हम उपदेश देने वालों की श्रेणी में हो सकते हैं या उपदेश सुनने वालों की। अतः लगभग दोनों ही स्थितियों से हम अनभिज्ञ नहीं हैं। हमें सच्चाई पता है कि हमारे उपदेशों का दूसरों पर और किसी दूसरे के उपदेश का हम पर कितना प्रभाव पड़ता है। सच ही कहा गया है,  ‘‘हम उपदेश सुनते हैं मन भर, देते हैं टन भर, ग्रहण करते हैं कण भर।’’ फिर क्य...

Article निंदक नियरे राखिए

निंदक नियरे राखिए यह पंक्ति संत कवि कबीरदास जी के एक प्रसिद्ध दोहे की है। पूरा दोहा इस प्रकार है- ‘‘निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिनु पाणि साबण बिना, निरमल करै सुभाय।।’’ अर्थ-कबीर दास जी कहते हैं कि हमें हमारी निंदा करने वाले व्यक्ति से बैर नहीं पालना चाहिए, बल्कि उसे अपनी कुटिया में, अपने घर के आँगन में अर्थात् अपने समीप रखना चाहिए। निंदक व्यक्ति के कारण बिना पानी और बिना साबुन के हमारा स्वभाव निर्मल बन जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि कबीर ने ऐसी बात क्यों कह दी? भला जो व्यक्ति हमारी बुराई कर रहा हो, उससे हमारा सुधार कैसे हो सकता है? तो मैं आपको बता दूँ कि कबीर दास जी महान समाज-सुधारक थे। उनकी हर एक साखी उनके अनुभव का आईना है। उनकी हर एक बात में गूढ़ अर्थ निहित है। कबीर दास जी ने एकदम सही कहा है कि निंदक व्यक्ति बिना किसी खर्च के हमारा स्वभाव अच्छा बना देता है। सोचिए, हमें अपने तन की स्वच्छता के लिए साबुन एवं पानी आदि की आवश्यकता पड़ती है, जबकि मन को स्वच्छ करना इतना कठिन होता है, फिर भी उसे हम बिना किसी खर्च के अत्यंत सरलता से स्वच्छ कर सकते हैं। बस, इसके लिए हमें निं...