पहले मैं, पहले मैं नहीं, दोनों साथ
आपने बचपन में एक कहानी पढ़ी अथवा सुनी होगी, जिसमें एक नदी पर एक सँकरा पुल होता है। वह पुल इतना छोटा होता है कि उसके ऊपर से एक बार में एक ही प्राणी गुज़र सकता है।
एक बार एक बकरी उस पुल को पार कर रही होती है, तभी वह देखती है कि पुल के दूसरी ओर से एक और बकरी आ रही है। दोनों ही बकरियाँ पुल के बीचों-बीच आकर खड़ी हो जाती हैं। दोनों एक-दूसरे को गुस्से से देखती हैं। दोनों ही बकरियाँ पहले पुल पार करना चाहती हैं, लेकिन सँकरा पुल होने के कारण यह संभव नहीं है। उनमें से किसी एक को तो पीछे लौटना ही होगा, लेकिन कोई भी बकरी वापस लौटने को तैयार नहीं है। दोनों बकरियाँ 'पहले मैं' 'पहले मैं' करती हुई आपस में लड़ने लगती हैं। एक-दूसरे पर सींगों से प्रहार करने लगती हैं। लड़ते-लड़ते दोनों ही नदी में गिर जाती हैं और डूब कर मर जाती हैं।
अब एक और कहानी सुनिए। इस कहानी में भी बिल्कुल वही दृश्य है, वही परिस्थिति है। यानी कि एक सँकरे पुल पर दो बकरियाँ आमने-सामने से आ रही हैं। दोनों पुल के बीचों-बीच पहुँचती हैं। एक-दूसरे को देखती हैं। कुछ पल सोच-विचार करती हैं, फिर एक बकरी पुल पर नीचे बैठ जाती है और दूसरी बकरी उसके ऊपर चढ़कर पार हो जाती है। फिर बैठी हुई बकरी भी उठती है और अपनी दिशा की ओर चल देती है। इस तरह आपसी सहयोग और समझदारी से दोनों बकरियाँ एक ही समय में पुल पार कर लेती हैं।
सीख-इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें कोई भी निर्णय अहंकार वश नहीं लेना चाहिए, क्योंकि अहंकार में लिया गया निर्णय हमेशा दुखदाई होता है।
चित्र Shutterstock से साभार
Bilkul sahi udahran hai
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख है सभी के लिए
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