एक बार की बात है। एक युवक अपने माता-पिता के साथ एक छोटे-से घर में रहता था। वह पढ़-लिखकर विदेश जाकर खूब धन कमाना चाहता था। उसके माता-पिता उसे अपने से दूर नहीं करना चाहते थे, अतः वे उसे न जाने के लिए बहुत समझाते, पर बेटा उनसे कहता,"हम इतने छोटे से घर में रह रहे हैं, इतना गरीबी का जीवन बिता रहे हैं, इसलिए मैं जल्दी ही बहुत सा-धन कमाकर वापस आऊँगा, फिर हम चैन से रहेंगे। हम मिलकर बहुत अच्छा जीवन बिताएँगे।" बूढ़े माता-पिता बेटे की ज़िद के आगे हार मान लेते हैं।
एक दिन बेटा खुशी-खुशी विदेश चला जाता है। वहाँ एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है। उसके माता-पिता बीच-बीच में अपने देश आने की बात कहते हैं, पर वह बार-बार उन्हें आश्वासन देता रहता है कि इस समय मुझे कंपनी में मेहनत करके अपनी एक अच्छी जगह बनानी है इसलिए अभी मैं नहीं आ सकता। और वह बहुत जल्दी अपनी मेहनत के बल पर एक अच्छे पद पर पहुँच भी जाता है।
कुछ समय बाद वह अपनी एक सहकर्मी के साथ विवाह कर लेता है। माता-पिता उसे फिर बुलाते हैं, वह अपनी पत्नी और काम में व्यस्त रहने के कारण कुछ समय बाद आने की बात कहता है। कुछ समय बाद उस युवक को एक पुत्र की प्राप्ति होती है। पिता बन जाने के बाद उसकी जिम्मेदारियाँ और बढ़ जाती हैं। वहीं दूसरी ओर उसके माता पिता अपनी बहू और पोते का मुँह देखने के लिए तरस जाते हैं। वे फिर से बुलाते हैं, पर वह धन कमाने और परिवार में पूरी तरह व्यस्त हो जाता है।
अब उसका बेटा स्कूल जाने लगता है। वह हर बार यही सोचता है कि अपने देश अब जाऊँगा, तब जाऊँगा। परंतु हर बार वह किसी-न-किसी जिम्मेदारी से घिरा होने के कारण जा नहीं पाता। हर बार वह सोचता है कि बस थोड़े दिन और पैसे कमा लूँ, फिर चैन से जाकर अपने माता-पिता के पास रहूँगा।
मगर अफ़सोस, समय व्यतीत होने के साथ-साथ उसे और उसके परिवार को एक बार देख लेने की चाह लिए उसके माता-पिता एक-एक करके इस संसार से चले जाते हैं। इस बीच उस युवक की भी उम्र बढ़ती जाती है। कब उसके बाल सफेद हो जाते हैं, कब उसे बुढ़ापा और दुनिया भर के रोग घेर लेते हैं, इसका उसे खुद ही पता नहीं चलता। एक दिन उसकी पत्नी भी उसका साथ छोड़कर ईश्वर के पास चली जाती है। उसके बेटा एक बिजनेस करने में उसकी सारी जमा-पूंजी बर्बाद कर देता है और फिर विवाह करके एक अन्य देश में जाकर बस जाता है। अब तक बूढ़े हो चुके उस युवक के पास रिटायरमेंट के कारण नौकरी भी नहीं रह गई थी।
अब वह बिल्कुल अकेला पड़ जाता है। उसे अपने देश की याद सताती है। वह वापस आता है और उस छोटे-से घर में पहुँचता है, जहाँ अपने माता-पिता को अकेला छोड़कर गया था। उस समय वह उन्हें आश्वासन देकर गया था कि मैं इतना धन कमा कर लौटूँगा कि हम सब एक बड़े से घर में मिलकर चैन से रहेंगे। मगर अफ़सोस, अब उसके पास न तो बड़ा घर खरीदने को पैसा ही रह गया था और न ही उस बड़े घर में रहने के लिए कोई सदस्य ही।
वह वापस अपने उसी पुराने, छोटे-से घर में रहने का फैसला करता है, जहाँ उसकी और उसके माता-पिता की सुखद यादें बसी हुई थीं।
एक दिन उसका एक बचपन का मित्र उससे मिलने आता है। वह कहता है, "मित्र! आखिर इतने सालों बाद तुमने वापस अपने देश आने का फैसला कैसे लिया? अब तो यहाँ तुम्हारा कोई अपना भी नहीं है।"
तब वह बूढ़ा हो चुका युवक कहता है, "मित्र! मैं सुख-चैन पाने की आशा लिए अपने देश लौटा हूँ।"
यह सुनकर उसका मित्र जोरों से हँसता है और कहता है, "मित्र! तुम बहुत-सा धन कमाकर सुखपूर्वक एक बड़े से घर में रहने की चाहत लेकर यहाँ से गए थे, लेकिन अंत में तुम वापस इस छोटे से घर में सुख-चैन पाने के लिए आए हो। अरे! जब इस छोटे से घर में ही रहना था तो तुम गए ही क्यों? तुमने जहाँ से जीवन का सफर प्रारंभ किया था, तुम आज इतने सालों बाद भी वहीं खड़े हो। पर तुमने कभी सोचा कि इतने वर्षों में तुमने क्या खोया और क्या पाया? तुमने अपने माता-पिता, अपनी पत्नी, बेटा - सब खो दिए। और बदले में तुम्हें क्या मिला - सिर्फ अकेलापन, उदासी, ग्लानि!
बूढ़ा हो चुका वह युवक फफक-फफक कर रोने लगा। आज पहली बार उसे माता-पिता के न होने का इतना तीव्र अहसास हुआ था। जीवन की इस अवस्था में अकेले पड़ने पर उसे अपने बूढ़े माता-पिता के अकेलेपन की छवि अपने आप में स्पष्ट दिखने लगी। वह आँसू भरा चेहरा लेकर माता-पिता की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और भरे गले से मन-ही-मन बुदबुदाया, "मुझे माफ़ करना। काश, मैंने धन से ज्यादा रिश्तों को सँभाला होता।"
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