एक राजा था। वह अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था। वह समय-समय पर अपनी प्रजा के हाल-चाल लेने के लिए भेष बदलकर निकल जाता था और फिर उनकी समस्याओं को जानने का प्रयत्न करता था।
एक बार राजा टहलते हुए एक गाँव की ओर चला गया। वहाँ उसने देखा कि एक बूढ़ा किसान एक छोटा-सा आम का पौधा लगा रहा है। राजा ने किसान से कहा, "काका! यह आप क्या कर रहे हैं?"
किसान वेश बदला होने के कारण राजा को पहचान न सका। उसने उत्तर दिया, "भाई! मैं आम का पौधा लगा रहा हूँ। यह बड़ा होकर एक विशाल पेड़ बनेगा और फिर फल तथा छाया देगा।"
राजा हँसा और बोला, "काका! लगता है आपको अपनी उम्र का अंदाजा नहीं है। इस पौधे को वृक्ष बनने में तो कई साल लगेंगे। पता नहीं इसमें कब तक फल आएँ? मुझे तो आपकी उम्र देखकर ऐसा नहीं लगता कि आप इस वृक्ष के फल खाने के लिए जीवित रहेंगे। फिर भला आप इतनी मेहनत किसलिए कर रहे हैं?"
किसान ने राजा की बात सुनकर किसान शांत भाव से बोला, "हाँ भाई! आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। यूँ तो इंसान के जीवन का पल-भर का भी ठिकाना नहीं है और फिर मैं तो बूढ़ा हो चुका हूँ। यक़ीनन, इस वृक्ष के फल खाना मेरे नसीब में नहीं है।"
राजा ने आश्चर्य भाव से कहा, "काका! आप सब जानते हैं तो फिर किस उम्मीद से यह पौधा लगा रहे हैं? इतना परिश्रम क्यों कर रहे हैं?"
किसान ने कहा, "मैं यह पेड़ अपने लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए लगा रहा हूँ।"
"क्या मतलब! राजा ने पूछा।"
किसान ने कहा "भाई! मैंने जीवन भर अनेक आम खाए हैं, लेकिन जिन वृक्षों के वे आम थे, उनमें से एक भी वृक्ष मेरे द्वारा लगाया हुआ नहीं था। उन वृक्षों को भी मेरे जैसे ही किसानों ने लगाया होगा। वह तो चले गए, लेकिन उनके लगाए पेड़ों के फल हमें खाने को मिल रहे हैं। यदि वे भी यह सोचकर पौधे नहीं उगाते कि हमारे जीवन में तो इनमें फल नहीं आएँगे, तो फिर भला इन्हें क्यों लगाएँ? तो आज हमें उनके लगाए पेड़ों के फल खाने को नहीं मिलते। यह तो सृष्टि का नियम है कि हम अपने पूर्वजों से बहुत-से जीवन मूल्य, संस्कार, धरोहर के रूप में अनेक वस्तुएँ आदि लेते हैं। तो हमारा भी कर्तव्य है कि हम आने वाली पीढ़ी को भी यही सब चीजें देकर जाएँ। इस तरह संसार चक्र चलता रहना चाहिए।"
राजा मन-ही-मन अत्यंत प्रसन्न हुआ और ईश्वर को धन्यवाद देने लगा कि उसके राज्य में ऐसी श्रेष्ठ सोच वाले लोग हैं, जो अपने बारे में नहीं बल्कि दूसरों के बारे में सोचते हैं। साथ ही इतनी उम्र में भी इतने मेहनती और कर्मठ हैं।
राजा अपने को धन्य मानता हुआ वहाँ से चला गया। किसान पुन: उसी तन्मयता से अपने काम में जुट गया।
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