एक लड़का था-राजू। वह कक्षा आठ में पढ़ता था। उसे खेलना बहुत पसंद था। वह परीक्षा के समय भी पढ़ाई न करके खेलता रहता था। उसकी माँ उसे बहुत समझातीं, परंतु उस पर कोई असर न होता। परीक्षा नजदीक आ गई, परंतु खेल के कारण वह परीक्षा की ढंग से तैयारी नहीं कर पाया। उसने परीक्षाएँ तो दीं, परंतु उसके पेपर बहुत अच्छे नहीं हुए। परिणाम यह हुआ कि वह गणित और अंग्रेजी-इन दो विषयों में फेल हो गया। वह अपना परीक्षा परिणाम देखकर रोने लगा। उसके माता-पिता ने बहुत समझाया, परंतु उसे अपनी एक साल बर्बाद होने का बहुत दुख हो रहा था।
खैर, इस तरह कुछ दिन बीत गए। अब नया सत्र शुरू होने वाला था। उसके माता-पिता ने उसे स्कूल जाने को कहा, परंतु राजू स्कूल जाने को राजी न हुआ। क्योंकि उसे कक्षा आठवीं में ही दोबारा बैठना पड़ता। सभी बच्चे उसका मजाक बनाते। यही सोच-सोचकर वह रोता जा रहा था और स्कूल से नाम कटाने की जिद कर रहा था। उसके माता-पिता को समझ नहीं आ रहा था कि वह उसे किस तरह साहस बँधाएँ।
एक दिन उस बच्चे ने देखा कि उसके कमरे के रोशनदान में एक चिड़िया ने घोंसला बना लिया था। उसने सोचा, कहीं पंखे से टकराकर चिड़िया घायल न हो जाए या मर ना जाए। इसलिए उसने अपनी माँ से कहा कि वह इस घोंसले को घर से बाहर रखने में उसकी मदद करें। माँ ने घोंसले को उतारकर बाहर रख दिया। अगले दिन राजू के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उसने देखा कि घोंसला तो पूर्ववत् रोशनदान पर रखा हुआ है।
उसने अपनी माँ से पूछा कि "माँ, यह घोंसला क्या आपने उठाकर वापस रखा है?"
माँ ने कहा, "नहीं, जब तुम दोपहर में सो रहे थे, तो चिड़िया एक-एक तिनका अपनी चोंच में दबाकर ला रही थी और वापस अपना घोंसला बना रही थी। तुमने जो समय सोने में बिताया, उस समय नन्ही चिड़िया अनेक चक्कर अंदर-बाहर करके इसे तैयार करने में लगी रही।"
तभी राजू ने देखा कि चिड़िया पुनः एक तिनका चोंच में दबाए कमरे में प्रवेश करती है और उस तिनके को घोंसले में रखकर दूसरा तिनका लाने के लिए पुनः वापस बाहर उड़ जाती है। वह उसे ऐसा करते देखता रहा।
थोड़ा रुककर उसने अपनी माँ से कहा, "माँ, भला यह चिड़िया ऐसा बार-बार क्यों कर रही है? जब हमने उसका घोंसला बाहर निकाल दिया, तो यह पुनः अपना घोंसला बनाने में वक्त क्यों बर्बाद कर रही है?"
माँ ने कहा, "बेटा, यह चिड़िया वक्त बर्बाद नहीं कर रही, बल्कि यह अपने आने वाले बच्चों के लिए एक घर तैयार कर रही है। कुछ ही दिनों में यह इस घोंसले में अंडे देगी, इसलिए यह पहले से ही उन अंडों की सुरक्षा का इंतजाम कर रही है।"
माँ ने सोच में डूबे राजू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "राजू, जब यह एक छोटी-सी चिड़िया अपना घोंसला हटाए जाने पर निराश नहीं हुई, तो भला तुम तो इंसान हो। तुम्हें तो भगवान ने सोचने-समझने और काम करने की इतनी अधिक शक्ति दी है। तो तुम एक बार परीक्षा में असफल होने पर इतने निराश क्यों हो रहे हो?"
राजू को अपनी माँ के कहने का आशय समझ में आ गया। उसने कहा, "माँ, आप ठीक कहती हैं। मैं कल से ही स्कूल जाना प्रारंभ कर देता हूँ। इस बार मैं प्रत्येक पाठ का बार-बार अभ्यास करूँगा। देखना, इस बार मैं अवश्य ही अच्छे अंक लेकर पास होऊँगा। जब इस नन्ही चिड़िया ने हार नहीं मानी, तो भला मैं क्यों हार मानूँ?"
नन्हे राजू की बात सुनकर माँ की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए। उन्होंने उसे गले से लगा लिया और कहा, "बेटा, मुझे तुम पर पूरा यकीन है। अब तुम्हें परिश्रम का महत्व पता चल गया है, इसलिए अब कोई भी निराशा तुम्हें छू भी ना पाएगी। तुम्हें सफल होने से अब कोई नहीं रोक सकता।"
माँ की बात सुनकर नन्हे राजू की आँखों में भी आँसू आ गए। माँ जानती थीं कि यह खुशी, आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प के आँसू हैं।
अगले दिन जब माँ सोकर उठीं, तो उन्होंने देखा कि राजू उनसे पहले ही जाग गया था। वह अपनी स्कूल की ड्रेस निकालकर नहाने जाने की तैयारी में लगा हुआ था। राजू प्रसन्नता में कोई गीत भी गुनगुना रहा था। यह सब देख कर माँ को बहुत अच्छा लगा। मैं समझ गईं कि अब राजू को न किसी के मजाक बनाने की चिंता है, न पुनः आठवीं कक्षा में बैठने की चिंता है और न मास्टरों की डाँट की ही परवाह है।
उन्हें पक्का यकीन हो गया कि नन्ही चिड़िया ने अनजाने ही राजू को श्रम का पाठ पढ़ा दिया है। अब उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
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