नेता जी की लीला अपरंपार
(हास्य-व्यंग्य कविता)
नेता जी आए गाँव में, मच गया बड़ा धमाल,
कहने लगे - "अब बदलूँगा मैं देश-गाँव का हाल।"
झाड़ू लिए हाथ में बोले - "मैं हूँ सेवा का पुजारी,"
भीड़ बोली - "पहले तो थे घोटालों के अधिकारी!"
हर गली में पोस्टर उनके, हर नुक्कड़ पर नाम,
अब तो बच्चे भी कहने लगे – "नेता जी को प्रणाम!"
मंच से बोले - "मैं गरीबों का बेटा हूँ सच्चा,"
और मंच के नीचे बिरयानी का डब्बा था कच्चा।
बिजली, पानी, सड़क दिलाऊँ, रोज़ दिल से कहें,
लेकिन खुद जनरेटर लाते, जब भाषण में रहें।
गाँव में दिखे बस एक दिन, जब चुनावी मौसम आया,
फिर पाँच साल तलक किसी ने नेता जी को न पाया।
बोले थे – "हर हाथ को दूँगा काम मैं दोगुना,"
हुआ ये कि बाकी आधा गाँव भी हो गया काम बिना।
नेता जी की लीला देखो, वादों का पुलिंदा भारी,
हर झूठ को सच बना दें, वाकपटुता से है इनकी यारी!
स्वार्थ की आग पर हाथ सेंकते, मचाकर ये बवाल।
अगलें-बगलें झाँकते, जब जनता पूछे कोई सवाल।
गाँव वाले भी समझ गए अब, नेताजी की हर चाल,
ऐसे नेता से तो बिन नेता भले, मन में कर रहे मलाल।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें