श्रीकृष्ण केवल एक महान योद्धा, राजनेता और दार्शनिक ही नहीं थे, बल्कि वे प्रकृति प्रेमी भी थे। उनके जीवन के अनेक प्रसंगों में प्रकृति के प्रति उनका गहरा लगाव दिखाई देता है। वे नंदगांव और वृंदावन की हरी-भरी वादियों में गायों के साथ विचरण करते थे, यमुना के निर्मल जल में क्रीड़ा करते थे और कुंज-वनों में बांसुरी की मधुर धुन से प्रकृति को संगीतमय बना देते थे। श्रीकृष्ण का जीवन हमें पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति प्रेम की सीख देता है।
श्रीकृष्ण और प्रकृति का गहरा संबंध
1. गोकुल और वृंदावन की हरियाली
श्रीकृष्ण का बाल्यकाल गोकुल और वृंदावन की हरी-भरी भूमि में बीता। वे अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ गाएं चराने जाते थे। उनके जीवन का यह पक्ष हमें पशुपालन, जैव विविधता और प्रकृति संरक्षण की महत्ता समझाता है।
2. यमुना नदी से प्रेम
श्रीकृष्ण का यमुना नदी से गहरा संबंध था। उन्होंने कालिय नाग का वध करके यमुना के जल को शुद्ध किया, जिससे जीव-जंतुओं को स्वच्छ जल प्राप्त हुआ। यह घटना हमें जल संरक्षण और प्रदूषण मुक्ति का संदेश देती है।
3. गोवर्धन पर्वत की पूजा
जब इंद्रदेव के प्रकोप से मूसलधार बारिश होने लगी, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर पूरे गोकुलवासियों को आश्रय दिया। इसके बाद से गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है, जो पर्वत, वृक्षों और प्रकृति के सम्मान का प्रतीक है।
4. वनों और वृक्षों से प्रेम
श्रीकृष्ण का जीवन वृक्षों और वनों से घिरा हुआ था। वृंदावन, जिसका अर्थ ही "तुलसी और वन का स्थान" है, श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रमुख केंद्र था। वे पीपल, बरगद, कदंब और अन्य वृक्षों की छांव में बांसुरी बजाते थे। यह हमें वृक्षारोपण और वन संरक्षण का संदेश देता है।
आज के समय में श्रीकृष्ण के पर्यावरणीय संदेश की प्रासंगिकता
आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और जल प्रदूषण जैसी समस्याओं से जूझ रही है, तब श्रीकृष्ण का प्रकृति प्रेम हमारे लिए प्रेरणादायक है। उनका संदेश हमें सिखाता है कि हमें जल, जंगल, जमीन और जीवों की रक्षा करनी चाहिए। अगर हम प्रकृति को सहेजेंगे, तो पृथ्वी पर जीवन भी सुरक्षित रहेगा।
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण केवल धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु ही नहीं थे, बल्कि वे प्रकृति प्रेम और पर्यावरण संरक्षण के भी प्रतीक थे। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि प्रकृति हमारी माता के समान है, जिसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। अगर हम श्रीकृष्ण के आदर्शों को अपनाएं, तो पर्यावरण संकट से बच सकते हैं और धरती को फिर से हरा-भरा बना सकते हैं।
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