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Hindi story आप भले तो जग भला

आप भले तो जग भला  एक बार एक व्यक्ति एक गांव में शरण देने के लिए पहुंचता है। वहां जाकर उस गांव के बाहर बने एक चबूतरे पर बैठे हुए कुछ लोगों से पूछता है, "मैं रहने के लिए एक गांव की तलाश कर रहा हूं। यह गांव कैसा है? इसमें रहने वाले लोग कैसे हैं?" तब एक बुजुर्ग व्यक्ति पूछता है कि आप अपना गांव छोड़कर क्यों आए हैं? तब वह व्यक्ति कहता है, "मैं अपना पहले वाला गांव इसलिए छोड़कर आया हूं, क्योंकि उस गांव के सभी लोग बहुत ही चालाक धोखेबाज और दुष्ट थे।" तब वह बुजुर्ग व्यक्ति कहता है, "अरे! तुम यहां से चले जाओ। यह गांव तुम्हारे लायक नहीं है। यहां के सभी लोग बहुत दुष्ट तथा चालाक हैं।" यह सुनकर वह व्यक्ति वहां से चला जाता है। कुछ ही देर बाद एक अन्य व्यक्ति आता है और वह भी वहां बैठे लोगों से पूछता है, "महाशय! कृपया बताइए कि यह गांव कैसा है? मैं कुछ दिन इस गांव में रहना चाहता हूं?" तब बुजुर्ग व्यक्ति उससे भी वही सवाल करता है कि पहले आप यह बताएं कि आप जिस गांव को छोड़कर आए हैं, वहां के लोग कैसे थे? ...

प्रकृति : कल, आज और कल Hindi poem on nature

हरी मखमली चादर ओढ़े, पहले धरती मुसकाती थी। पंछी के मीठे कलरव से,  हर सुबह इठलाती थी। नदियों का निर्मल पावन जल,  जीवन का राग सुनाता था। पेड़ों की शीतल छाँव तले,  हर तन-मन सुख पा जाता था। पर लोभ की अग्नि में मानव ने,  देखो सब कुछ बिसराया है। स्वार्थ की अंधी भाग-दौड़ में, प्रकृति का दामन ठुकराया है।  कटते वन व जलते जंगल,  और बंजर होती धरती माँ। सूख रहे ये जीवन-झरने,  चहुँ ओर घिरा धुआँ-धुआँ। ओजोन की चादर तार-तार हो,  पड़ी-पड़ी कराहती है‌। तेज धधकती सूर्य किरण नित,  चेतावनी देकर जाती है। ‘संभल जाओ हे स्वार्थी मानव,  अब भी थोड़ा समय है बाकी। वर्ना फिर जल्दी बुझ जाएगी, तेरे जीवन की यह बाती। न सँभले गर, अब भी हम तुम,  तो प्रकृति देगी सब सूद समेत। जैसा हम देंगे, वैसा पाएँगे, धरती न रखती टका एक। आज जो दिख रहे बाढ़ बवंडर,  ये तो बस एक झाँकी है। थाम के दिल फिर देखना होगा, क्योंकि, पूरी पिक्चर अभी बाकी है। धरती को और गंगा को ‘माँ’, कहने भर से अब नहीं चलेगा। इनका दामन साफ सफाई,  और हरियाली से भरना होगा। आने वाली पीढ़ी हमको न कोसे,  मिलके...

दशहरा पर कविता (Dusshera par Hindi poem)

अधर्म का नाश करें, धर्म को बचाएँ रावण का पुतला समझाता है हमको  अहंकारी का अंत होता है बहुत बुरा। पकड़ लो धर्म और सत्य के मार्ग को अन्यायी के साथ कभी होना न खड़ा।। रघुनंदन में धैर्य और साहस था अपार, जो आज भी देता है हमें सीख बारंबार। अच्छाई ने बुराई को हराया है हर बार, सत्य की जीत का सदा फैला है प्रकाश ।। आओ इस दशहरा नया संकल्प जगाएं अपने भीतर बैठे रावण को मार गिराएँ। अनुशासन, सच्चाई और सद्गुण अपनाएँ न्याय और करुणा का सदा साथ निभाएँ। श्रीराम ने रावण को मार धर्म था बचाया,  त्याग, से वा, भक्ति का अध्याय था रचाया। दशहरे के संदेश को हम मन से अपनाएँ, अधर्म का नाश करें और धर्म को बचाएँ।।