सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Hindi story आप भले तो जग भला

आप भले तो जग भला 

एक बार एक व्यक्ति एक गांव में शरण देने के लिए पहुंचता है। वहां जाकर उस गांव के बाहर बने एक चबूतरे पर बैठे हुए कुछ लोगों से पूछता है, "मैं रहने के लिए एक गांव की तलाश कर रहा हूं। यह गांव कैसा है? इसमें रहने वाले लोग कैसे हैं?"

तब एक बुजुर्ग व्यक्ति पूछता है कि आप अपना गांव छोड़कर क्यों आए हैं?

तब वह व्यक्ति कहता है, "मैं अपना पहले वाला गांव इसलिए छोड़कर आया हूं, क्योंकि उस गांव के सभी लोग बहुत ही चालाक धोखेबाज और दुष्ट थे।"

तब वह बुजुर्ग व्यक्ति कहता है, "अरे! तुम यहां से चले जाओ। यह गांव तुम्हारे लायक नहीं है। यहां के सभी लोग बहुत दुष्ट तथा चालाक हैं।"

यह सुनकर वह व्यक्ति वहां से चला जाता है। कुछ ही देर बाद एक अन्य व्यक्ति आता है और वह भी वहां बैठे लोगों से पूछता है, "महाशय! कृपया बताइए कि यह गांव कैसा है? मैं कुछ दिन इस गांव में रहना चाहता हूं?"

तब बुजुर्ग व्यक्ति उससे भी वही सवाल करता है कि पहले आप यह बताएं कि आप जिस गांव को छोड़कर आए हैं, वहां के लोग कैसे थे?

व्यक्ति कहता है, "वहां के लोग बड़े ही सभ्य, सज्जन, सुख-दुख में साथ देने वाले तथा दयालु थे। मैं वहां से आना ही नहीं चाहता था, लेकिन रोजगार की तलाश में मुझे अन्य गांव की खोज करनी पड़ रही है।"

तब बुजुर्ग व्यक्ति कहता है कि फिर तो आप यहां रह सकते हैं, क्योंकि यह गांव भी बहुत अच्छा है। यहां के लोग बड़े ही सहयोगी तथा बहुत ही मिलनसार हैं। व्यक्ति उस गांव के भीतर की तरफ चल देता है।

तब वहां चबूतरे पर बैठे एक व्यक्ति से रहा नहीं जाता, वह बुजुर्ग से पूछता है, "बाबा, आपने पहले वाले व्यक्ति को तो यह कहा कि यह गांव तुम्हारे रहने लायक नहीं है, यहां पर सभी लोग बहुत दुष्ट तथा चालाक हैं। जबकि इस व्यक्ति को आपने यह कहा कि इस गांव से अच्छा गांव तुम्हारे लिए हो ही नहीं सकता, यहां के सभी लोग बहुत अच्छे और मिलनसार हैं। आखिर ऐसा क्यों?

तब वह बुजुर्ग व्यक्ति कहता है, "क्यों, तुमने सुना नहीं पहले वाले व्यक्ति ने अपने गांव के लोगों के बारे में कहा था कि वह जिस गांव को छोड़कर आया है, वहां के सभी लोग दुष्ट प्रवृत्ति के थे। इसलिए मुझे वह गांव छोड़कर आना पड़ा।

अब तुम ही बताओ कि गांव के सारे लोग तो दुष्ट हो नहीं सकते। इसका मतलब है कि इस व्यक्ति में ही कुछ कमी थी। वह व्यक्ति किसी से भी प्रेम और सद्भाव का व्यवहार नहीं करता होगा, इसीलिए इसे सब दुष्ट लगते हैं। इसलिए यदि यह यहां रहता तो गांव के सभी लोगों में अपनी खराब आदतों को फैला देता। जबकि दूसरे व्यक्ति ने कहा कि मेरे गांव के सभी लोग बहुत ही सभ्य और अच्छे थे। यह तो हम सभी जानते हैं कि गांव के सभी व्यक्ति अच्छे तो नहीं हो सकते, कोई तो उनमें खराब आदत वाला भी होगा। परंतु इसके उत्तर से पता चलता है कि इस व्यक्ति की दृष्टि अच्छाइयों की ओर ही जाती है। यह खुद अच्छा है इसीलिए इसे सभी लोग अच्छे दिखते हैं। इसका मतलब यह है कि यह व्यक्ति अच्छाइयों को ही देखता है इसकी नजर बुराइयों की ओर नहीं जाती यह इस अकाउंट में भी अपनापन और प्यार भी खेलेगा इसलिए मैंने इसी कहा कि यह गांव तुम्हारी रहने योग्य है गांव के सभी व्यक्ति समझदार व्यक्ति की वाह-वाह कर उठे।



आप भले तो जग भला कुत्ते का गाना एक कहानी जिसमें एक आदमी गांव में जाता है पैसे नहीं इस तरह के लोग रहते हैं क्योंकि मेरे गांव में तो बहुत काम रहते है


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदी हास्य कविता स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन

स्वर्ग में मोबाइल कनैक्शन स्वर्ग में से स्वर्गवासी झाँक रहे धरती पर इंद्र से ये बोले कुछ और हमें चाहिए। देव आप कुछ भी तो लाने देते नहीं यहाँ,  कैसे भोगें सारे सुख आप ही बताइए। इंद्र बोले कैसी बातें करते हैं आप लोग, स्वर्ग जैसा सुख भला और कहाँ पाइए।  बोले स्वर्गवासी एक चीज़ है, जो यहाँ नहीं, बिना उसके मेनका और रंभा न जँचाइए। इंद्र बोले, कौन-सी है चीज़ ऐसी भला वहाँ, जिसके बिना स्वर्ग में भी खुश नहीं तुम यहाँ? अभी मँगवाता हूँ मैं बिना किए देर-दार, मेरे स्वर्ग की भी शोभा उससे बढ़ाइए। बोले स्वर्गवासी, वो है मोबाइल कनैक्शन, यदि लग जाए तो फिर दूर होगी टेंशन। जुड़ जाएँगे सब से तार, बेतार के होगी बात, एस0 एम0 एस0 के ज़रिए अपने पैसे भी बचाइए। यह सुन इंद्र बोले, दूतों से ये अपने, धरती पे जाके जल्दी कनैक्शन ले आइए। दूत बोले, किसका लाएँ, ये सोच के हम घबराएँ, कंपनियों की बाढ़ है, टेंशन ही पाइए। स्वर्गवासी बोले भई जाओ तो तुम धरती पर, जाके कोई अच्छा-सा कनैक्शन ले आइए। बी0एस0एन0एल0 का लाओ चाहें आइडिया कनैक्शन जिओ का है मुफ़्त अभी वही ले आइए।...

HINDI ARTICLE PAR UPDESH KUSHAL BAHUTERE

‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’-इस पंक्ति का प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ में उस समय किया है, जब मेघनाद वध के समय रावण उसे नीति के उपदेश दे रहा था। रावण ने सीता का हरण करके स्वयं नीति विरुद्ध कार्य किया था, भला ऐसे में उसके मुख से निकले नीति वचन कितने प्रभावी हो सकते थे, यह विचारणीय है।  इस पंक्ति का अर्थ है कि हमें अपने आस-पास ऐसे बहुत-से लोग मिल जाते हैं जो दूसरों को उपदेश देने में कुशल होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग दूसरों को तो बड़ी आसानी से उपदेश दे डालते हैं, पर उन बातों पर स्वयं अमल नहीं करते, क्योंकि-‘‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।’’ हम भी ऐसे लोगों में से एक हो सकते हैं, या तो हम उपदेश देने वालों की श्रेणी में हो सकते हैं या उपदेश सुनने वालों की। अतः लगभग दोनों ही स्थितियों से हम अनभिज्ञ नहीं हैं। हमें सच्चाई पता है कि हमारे उपदेशों का दूसरों पर और किसी दूसरे के उपदेश का हम पर कितना प्रभाव पड़ता है। सच ही कहा गया है,  ‘‘हम उपदेश सुनते हैं मन भर, देते हैं टन भर, ग्रहण करते हैं कण भर।’’ फिर क्य...

Article निंदक नियरे राखिए

निंदक नियरे राखिए यह पंक्ति संत कवि कबीरदास जी के एक प्रसिद्ध दोहे की है। पूरा दोहा इस प्रकार है- ‘‘निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिनु पाणि साबण बिना, निरमल करै सुभाय।।’’ अर्थ-कबीर दास जी कहते हैं कि हमें हमारी निंदा करने वाले व्यक्ति से बैर नहीं पालना चाहिए, बल्कि उसे अपनी कुटिया में, अपने घर के आँगन में अर्थात् अपने समीप रखना चाहिए। निंदक व्यक्ति के कारण बिना पानी और बिना साबुन के हमारा स्वभाव निर्मल बन जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि कबीर ने ऐसी बात क्यों कह दी? भला जो व्यक्ति हमारी बुराई कर रहा हो, उससे हमारा सुधार कैसे हो सकता है? तो मैं आपको बता दूँ कि कबीर दास जी महान समाज-सुधारक थे। उनकी हर एक साखी उनके अनुभव का आईना है। उनकी हर एक बात में गूढ़ अर्थ निहित है। कबीर दास जी ने एकदम सही कहा है कि निंदक व्यक्ति बिना किसी खर्च के हमारा स्वभाव अच्छा बना देता है। सोचिए, हमें अपने तन की स्वच्छता के लिए साबुन एवं पानी आदि की आवश्यकता पड़ती है, जबकि मन को स्वच्छ करना इतना कठिन होता है, फिर भी उसे हम बिना किसी खर्च के अत्यंत सरलता से स्वच्छ कर सकते हैं। बस, इसके लिए हमें निं...