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हिंदी भाषा पर स्लोगन (हिंदी दिवस पर विशेष)

हिंदी दिवस पर विशेष हिंदी भाषा पर स्लोगन 1- हिंदी है मेरी आन, हिंदी है मेरी शान, इसमें ही निहित है, देश का उत्थान। सहजता, सरलता, है इसकी पहचान, लचीलेपन का गुण, बनाता इसे महान।। 2- पूर्वजों से मिली हमें, ये अमोलक पूँजी, हिंदी ही तो है, सारेे विकास की कुंजी।। 3- हिंदी है अभिमान, ये शान है हमारी, हिंदी है मान, ये पहचान है हमारी, है कबीर, सूर, ये रसखान है हमारी, भाषाओं का ताज़, हिंदोस्तान है हमारी।। 4- हिंदी है जन-जन की भाषा, इसका प्रयोग ज़रूरी है। अंग्रेज़ी नहीं है दिलों की भाषा, वो तो एक मज़बूरी हैै।। 5- देश की संस्कृति-सभ्यता की पहचान है हिंदी, देश का गौरव, उसका मान-सम्मान है हिंदी। देश के चहुँमुखी विकास की कुंजी है हिंदी, भारत देश की अमूल्य धरोहर, पूँजी है हिंदी।। 6- निज भाषा से ही होता है, देश का संपूर्ण विकास। निज भाषा से ही मिलता है, आत्म को नव प्रकाश। निज भाषा से ही पूरे होते, हर आस और प्रयास। निज भाषा के प्रति रखो, नित्य श्रद्धा व विश्वास।। 7- हिंदी है समस्त ज्ञान और विज्ञान की भाषा, हिंदी ही है देश का सम्मान और आशा। हिंदी की वैज्ञानिकता क...

प्रकृति पर नारे Slogan On Nature

प्रकृति पर नारे 1- पेड़ हैं धरती का शृंगार, इनकी महिमा अपरंपार।। फल-फूल, सब्ज़ी, ईंधन दे, करते हैं हम पर उपकार। 2- मत काटो पेड़ों को, ये मरकर भी काम आएँगे। हे प्राणी! तुझे अंत में, ये ही तो जलाएँगे।। 3- प्रकृति से जितना नाता जोड़ेंगे, उतना ही स्वस्थ जीवन जी लेंगे।।

Slogan on “Say No to Plastic” प्लास्टिक पर नारे

Slogan on “say no to plastic”    प्लास्टिक पर नारे  1- हमने जब भी लिया संकल्प, उसे पूरा करके माना है। प्लास्टिक मुक्त करेंगे भारत को, अब हमने ये ठाना है।। 2- प्लास्टिक से यारी, पड़ेगी हम सब पर भारी। जीवन से इसे भगाने की, जल्द करो तैयारी।। 3- रंग-बिरंगी प्लास्टिक की पन्नियाँ, दिखा रहीं अपनी औकात। कैंसर, प्रदूषण, और बंजर धरती की, दे रहीं हमको सौगात।। 4- मिट्टी के बरतन अपनाओ, कपड़े कागज़ के थैले लाओ। प्लास्टिक है बहुत ज़हरीली, इसे जीवन से दूर भगाओ।। 5- प्लास्टिक न तो मरती, न मिटती और न गलती। फिर इसे अपनाने की, हम क्यों कर रहे गलती।। 6- प्लास्टिक से हो रही भूमि बरबाद, कहाँ उगाएँगे हम शाक-पात। अरे, सँभल जाओ अब तो नादान, मत करो धरती माँ से घात।। 7- प्लास्टिक दे रहा कैंसर का तोहफ़ा, फिर भी हम उसे अपना रहे। तभी तो निरीह पशु और इंसान, काल के गाल में समा रहे।।   8- सोचो, विचार करो,   अपनी आगामी पीढ़ियों के लिए हम क्या छोड़ कर जा रहे। प्रदूषित भूमि, दूषित वायु-जल, और फिर भी इस पर इतरा रहे।।

व्यंग्य का अद्भुत चितेरा (हरिशंकर परसाई के जन्म-दिवस पर विशेष)

व्यंग्य का अद्भुत चितेरा हरिशंकर परसाई के जन्म-दिवस पर विशेष सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी का जन्म मध्य-प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में 22 अगस्त सन् 1924 को हुआ। वे उन बच्चों में से थे, जिनके सिर से अल्पायु में ही माता-पिता का स्नेह-सिक्त साया उठ जाता है। भाई-बहनों में सबसे बड़े होने के कारण जीवन की भयावह एवं कटु सच्चाइयों से उन्हें ही सामना करना पड़ा।    परसाई जी का जीवन कष्टमय एवं संघर्षपूर्ण रहा। उनकी आँखों ने बाल्यकाल में ही ‘प्लेग’ जैसी महामारी की चपेट में आकर शरीर त्यागते हुए माँ के करुणांत को देखा। उन्होंने अनेक स्थानों पर नौकरी की, किंतु कहीं भी स्थायी रूप से नहीं रह सके। इसका कारण शायद यही था कि किसी भी तरह का बंधन उन्हें पसंद नहीं था। अतः उन्होंने स्वतंत्र लेखन आरंभ कर दिया और सन् 1957 में नौकरी से अंतिम एवं स्थायी विदा ले ली।  लगातार संघर्षों से सामना होने पर भी उनके अदम्य साहस ने उन्हें झुकने की बजाय उन संघर्षों से सामना करने को प्रेरित किया। उन्होंने बहुत जल्दी व्यक्तिगत घेरा त्यागकर सामाजिक जीवन में विचरना प्रारंभ क...

क्या हम पूर्ण स्वतंत्र हैं? Article on 15 August

क्या हम पूर्ण स्वतंत्र हैं? 15 अगस्त सन् 1947 का दिन हमारे भारतीय इतिहास में अत्यंत गौरवपूर्ण दिन है। हो ही क्यों न, इस दिन हमें अंग्रेज़ों से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। ऐसी स्वतंत्रता, जिसे पाने के लिए हज़ारों देशभक्तों ने अपनी जान न्योछावर कर दी थी। ‘स्वतंत्रता’, ‘आज़ादी’, ‘स्वाधीनता’-ये सभी एक-दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। सभी का एक ही अर्थ है-बंधन मुक्त होना, अपनी इच्छा से जीवन जीना। इन शब्दों की मिठास वास्तव में वर्णनातीत है। ये शब्द अनगिनत अहसासों से भरे हैं। ‘आज़ादी’ शब्द जे़हन में आते ही ऐसा लगता है मानो हमारे पंख उग आए हों और हम नीलगगन में दूर कहीं उड़ने को तैयार हों। आज़ादी भला किसे नहीं अच्छी लगती? सिर्फ़ मनुष्य ही नहीं, वरन् छोटे से बड़े सभी पशु-पक्षी, पेड़ का हर पत्ता, सागर की प्रत्येक लहर, नदी की हर उछाल-सभी जीवित प्राणी आज़ाद रहना चाहते हैं। बंधन में बँधना भला कौन चाहता है? पशु-पक्षियों को पिंजरे में बंद करके उन्हें समस्त सुविधाएँ, जैसे, समय-समय पर भोजन-पानी आदि उपलब्ध कराते रहो, पर फिर भी वे अवसर पाते ही पिंजरे से निकल भागने को आतुर रहते हैं। मनुष्य तो एक चेतनाश...

संत कबीर की भाषा

              संत कबीर की भाषा  कबीर दास जी त्रिकालदर्शी क्रांतिकारी कवि थे। यही कारण है कि निरक्षर होते हुए भी कबीर आज भी साक्षर लोगों के द्वारा पढ़े जाते हैं। उनके साहित्य पर लगातार शोध कार्य होते रहते हैं। जैसी ताकत कबीर की भाषा में है, वैसी अन्य कवियों की भाषा में नहीं है। यह परम आश्चर्य की बात है कि जहाँ आज के बहुत-से पढ़े-लिखे कवियों को भी भाषा का सही-सही प्रयोग करना नहीं आता है, अनुभूति और अभिव्यक्ति में सामंजस्य बिठाना नहीं आता है, वहीं अनपढ़ कबीर को सुप्रसिद्ध आलोचक पं0 हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने ‘भाषा का डिक्टेटर’ कहकर सम्मानित किया। कहा जाता है कि भाषा पर कबीर को पूर्ण अधिकार प्राप्त था। भाषा कबीर के भावों के पीछे-पीछे चलती थी अर्थात् उनकी गुलाम थी। भाषा उनके सामने लाचार-सी नज़र आती थी। पं0 हजारी प्रसाद द्विवेदी जी लिखते हैं- ‘‘भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी वे़ डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है उसे उसी रूप में भाषा से कहलवा दिया। बन गया है तो सीधे-सीधे, नहीं तो दरेरा देकर।’’ पं0 हज़ारी प्रसाद...

कबीर के दोहों को ‘साखी’ क्यों कहा जाता है

कबीर के दोहों को ‘ साखी ’  क्यों कहा जाता है कबीर दास जी एक संत थे। वे एक स्थान पर न रहकर अन्य संतों की तरह ही जगह - जगह भ्रमण करते रहते थे। उनकी इस घुमक्कड़ी ने उन्हें अनेक भाषाओं एवं लोगों से तो परिचित कराया ही , साथ ही उनके अनुभवों का दायरा भी विशाल बनाया। यही कारण है कि अनपढ़ होते हुए भी कबीरदास जी का अनुभवजन्य ज्ञान इतना विस्तृत था , जिसने मोटी - मोटी पोथी पढ़े हुए तथाकथित ज्ञानियों को भी चमत्कृत कर दिया। कबीर ने अपनी निरक्षरता को इंगित करते हुए लिखा है - ‘‘ मसि कागद छुवो नहिं , कलम गहि नहिं हाथ। ’’ चारिक जुग को महातम , मुखहिं जनाई बात।। ’’ अर्थात् न तो मैंने कभी कागज और स्याही का ही स्पर्श किया और न ही कभी लेखनी हाथ में ली। चारों युगों का महात्म्य केवल अपने मुँह द्वारा जता दिया है। संत कबीर अपने समकालीन कवियों में सबसे अधिक प्रतिभाशाली कवि माने जाते ह़ैं। अनपढ़ होते हुए भी वे अपने समाज की समस्याओं , तत्कालीन परिस...