दिल का घाव बात बहुत पुराने समय की है। जब लोग पैदल ही यात्राएँ किया करते थे। एक बार कुछ लोगों का समूह यात्रा करते समय एक घने जंगल से गुज़र रहा था। तभी सबने एक शेर की आवाज़ सुनी। सब डर के कारण इधर-उधर भागने लगे। शेर बोला, "डरो मत, मैं तो खुद ही संकट में हूँ। मेरे पैर में एक काँटा लगा हुआ है। न मैं चल पा रहा हूँ, न शिकार कर पा रहा हूँ। मैं काँटे से बहुत पीड़ित हूँ। कृपया मेरा काँटा निकाल दें। मेरी सहायता करें।" लेकिन किसी की भी हिम्मत शेर के पास जाने की नहीं हो रही थी। उन्हें लगा कि कहीं यह शेर की चाल न हो। उस समूह में रामदास नाम का एक व्यक्ति भी था। उसे शेर की बात में सच्चाई लगी। उसने लोगों से शेर की सहायता करने के लिए कहा, परंतु कोई भी जोखिम उठाने को तैयार न हुआ। सभी लोग आगे बढ़ गए। परंतु रामदास ने शेर की सहायता करने की ठानी। वह डरते हुए शेर के पास गया। उसने देखा, शेर अपना दाहिना पैर ऊपर की ओर उठाए हुए था। उस पैर के पंजे में बहुत बड़ा काँटा चुभा हुआ था और शेर के पंजे से रक्त बह रहा था। काँटे की चुभन से शेर दुख के मारे तड़प रहा था। रामदास ने शेर से कहा, "मैं तुम्हारे पै...
"हे भगवान! आज फिर कपड़ों पर स्याही के छींटे! लगता है, आज भी किसी से झगड़ा करके आया है।" "रोहित! इधर तो आ ज़रा।" मालती ने अपने नौ वर्षीय बेटे को पुकारा। "हाँ मम्मी, आपने मुझे बुलाया।" "हाँ बेटे, यह बताओ आज किस से झगड़ा हुआ है?" "किसी से भी तो नहीं" रोहित ने कुछ घबराते हुए कहा। "देख! झूठ मत बोल। सच-सच बता। तेरी कमीज़ पर स्याही किसने फेंकी है।" "वो.……स्या…ही..वो तो मम्मी अनुभव से गलती से गिर गई" हकलाते हुए रोहित ने कहा। "गलती से गिर गई…..मुझसे कुछ भी मत छुपा। मैं सब जानती हूँ कि गलती से गिरी है या फिर अनुभव ने जानबूझकर फेंकी होगी। वैसे भी स्याही के छींटे तेरी कमीज़ में सामने की तरफ़ हैं। यहाँ सामने की तरफ़ भला गलती से स्याही कैसे गिर सकती है। ये तो जानबूझकर छिड़की गई छींटें हैं।" "सच-सच बोल दे, वरना……" रोहित द्वारा अनुभव का बचाव किए जाने पर मालती आग-बबूला हो उठी। "मम्मी! असल में अनुभव मुझसे रंग माँग रहा था। आपने कहा था न कि ये रंग बहुत महँगे हैं, किसी को मत देना। बस, मैंने देने से मना कर दिया ...