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चपड़ी मौसी (मज़ेदार कहानी)

चपड़ी मौसी  बिल्ली चूहे को क्यों ना पसंद करती है और शेर को बिल्ली ज़रा भी पसंद नहीं, ऐसा क्यों जानिए इस कहानी के ज़रिए बिल्ली चूहे को पसंद नहीं करती है और शेर बिल्ली को  ज़रा भी पसंद नहीं करता। ऐसा क्यों जानिए इस कहानी के ज़रिए बिल्ली को शेर की मौसी कहा जाता है। लेकिन शेर को तो बिल्ली ज़रा-भी पसंद नहीं आती। आख़िर क्यों? और ऐसा भी क्या है कि बिल्ली जैसी चालाक प्राणी नन्हे चूहे के पीछे पड़ी रहती है? प्रस्तुत है इसी मुद्दे को और रोचक बनाती जंगल की एक कहानी। बहुत पुरानी बात है। जंगल का राजा शेर बिल्ली पर बहुत भरोसा करता था। बिल्ली चपड़ी मौसी के नाम से मशहूर थी। चपड़ी मौसी शेर की सलाहकार भी थी। शेर के दरबार में चूंचूं चूहा भी था। वह शेर का मंत्री था। चूंचूं बुद्धिमान था। संकट में चूंचूं ही शेर के काम आता। चपड़ी मौसी बहानेबाज़ थी। बीमारी का बहाना लेती। एक दिन शेर ने बिल्ली से कहा, ‘चपड़ी मौसी। जब-जब हम मुसीबत में होते हैं, चूहा ही हमें उबार लेता है।’ यह सुनकर बिल्ली जल-भुन गई। मौक़ा देखकर बिल्ली चूहे से बोली, ‘पिद्दी भर के छोकरे। कसम खाती हूं।’ एक दिन तुझे ज़रूर हराऊंगी।’ चूहा मुस्कराया। प्य...
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सोलह श्रृंगार कौन-कौन से हैं?

            सोलह श्रृंगार  सोलह श्रृंगार का अर्थ है-सोलह प्रकार के आभूषण, जो शरीर के अलग-अलग अंगों पर पहने जाते हैं। करवाचौथ आदि विशेष अवसरों पर महिलाएँ या नववधुएँ-ये सोलह श्रृंगार करती हैं।  सबसे पहले हल्दी-चंदन-बेसन का लेप या उबटन लगाकर महिलाएँ स्नान करती हैं। उसके पश्चात् ये सोलह श्रृंगार करती हैं। पहले स्वर्ण आभूषण या कहीं-कहीं फूलों के आभूषण बनाकर पहने जाते थे, परंतु आजकल हीरे, मोती तथा चाँदी आदि के आभूषण भी पहने जाते हैं।  करवाचौथ पर सुहागिन महिलाएँ व्रत रखती हैं। करवा माता की पूजा करती हैं और उनसे अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। इस अवसर पर महिलाएँ सोलह श्रृंगार करती हैं। तो चलिए, आज हम जानते हैं कि सोलह श्रृंगार कौन-कौन से हैं- (१) मज्जन (धोना या स्नान करना) (२) चीर (कपड़े) (३) हार (गले का हार)  (४) तिलक (माथे पर लगाने वाला टीका) (५) अंजन (काजल) (६) कुंडल (कान के आभूषण) (७) नासामुक्ता (नाक का आभूषण) (८) केशविन्यास (बालों का सजाना) (९) चोली (कंचुक) (ऊपर का कपड़ा) (१०) नूपुर (पायल) (११) अंगराग (सुगंध) (१२) कंकण (...

बंदर मगरमच्छ की कहानी (दोस्ती वही, कहानी नई)

दोस्तो, आपने यह कहानी तो सुनी होगी जिसमें एक बंदर और एक मगरमच्छ की आपस में बहुत दोस्ती होती है बंदर मगरमच्छ को प्रतिदिन मीठे जामुन लाकर देता था।  एक दिन मगरमच्छ ने जामुन अपनी पत्नी को खिलाए। पत्नी ने अपने जीवन में पहली बार इतने मीठे जामुन खाए थे। उसने कहा तुम्हारा दोस्त प्रतिदिन इतने मीठे जामुन खाता है, उसका कलेजा भी कितना मीठा होगा। मुझे तो उसका कलेजा खाना है। मगर के बहुत समझाने पर भी वह नहीं मानी। आखिरकार मगरमच्छ को पत्नी हठ के आगे हार माननी पड़ी। अगले दिन वह नदी के किनारे पहुँचा तो वहाँ बंदर मीठे जामुन लेकर उसका इंतजार कर रहा था।  मगरमच्छ ने कहा, "बंदर भाई तुम्हारी भाभी यानी मेरी पत्नी तुमसे मिलना चाहती है।" बंदर ने कहा, "मुझे तो तैरना भी नहीं आता, भला मैं कैसे जा पाऊँगा।" मगरमच्छ ने कहा, "कोई बात नहीं, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें ले जाऊँगा।"  बंदर मगरमच्छ की बातों में आ गया और वह उसके घर जाने के लिए उसकी पीठ पर बैठ गया। किंतु मगरमच्छ दिल का भोला था। उसने सोचा अब तो बंदर मरने ही वाला है, तो इसे सत्य बता ही देना चाहिए। उसने कहा, "बंदर भाई! ...

मोबाइल महिमा Hindi poem

मोबाइल महिमा सुबह-सुबह आँखें खुलते ही, मोबाइल को हम पाते हैं,  बिना ब्रश किए पहले, नोटिफिकेशन चेक कर जाते हैं। बिस्तर में ही फेसबुक, व्हाट्सएप का दौर चलता है,  चाय ठंडी हो जाए चाहे, पर स्क्रीन से प्यार पलता है। नाश्ते की टेबल पर भी, मोबाइल संग निवाला है,  घरवाले बातें करें तो, 'एक मिनट' का हवाला है। रास्ते में चलते-चलते, मैसेज टाइप किए जाते हैं,  खंभे से टकरा जाएँ पर, इससे दूर न हो पाते हैं। बॉस ऑफिस में लेते मीटिंग, हम तो चैटिंग में व्यस्त हैं,  वो करते मार्केटिंग की प्लानिंग, पर हम इंस्ट्रा में रत हैं। रात को सोने से पहले, मोबाइल का आलिंगन है,  बिना इसके जीवन जैसे, सूना-सूना घर-आँगन है। हे मोबाइल! तेरा जादू, सब जग पर ऐसा छाया है,  बिना तेरे जीवन जैसे, बिना नमक का खाना है। इस मोबाइल के फेर में, नौकरी पर बन आई है, बॉस का 'टास्क' भूलकर, रील्स में आँख गड़ाई है। मोबाइल के चक्रव्यूह ने, अलग ही दुनिया बसाई है,  सारा जगत अब मुट्ठी में है, पर दिल में तन्हाई है।

सास-बहू की डिजिटली नोंक-झोंक (हास्य क्षणिकाएँ)

1. बहू बोली सासू माँ, अब तो मोबाइल रख दो हाथ, रोटियाँ जल गईं इधर, आप थीं स्नैपचैट के साथ। सासू बोली – बहू! रील बना रही थी नई रसोई की, जल गई रोटी, हाय! अब मिलेगी लाइक बस सौ-पचास। 2. सास कहे – बहू!  तेरी अँखियाँ तो हैं बड़ी ही नीली, अरे! ये तो है फिल्टर की करामात, बहू हँसकर बोली। सासू माँ, अब तो डिजिटल ज़माने का ही सब खेला है, ब्यूटी पार्लर की जरूरत नहीं, इंस्टा ने रूप को बदला है। 3. बहू कहे – सासू माँ! घर की बातें अब कम किया करो, व्हाट्सएप पर मोहल्ले को न रोज़ अपडेट दिया करो। सास बोली – पगली, ये मेरी सोसायटी की फीलिंग है, जहाँ स्टेटस न बदला जाए, वहाँ बोरिंग सी लिविंग है! 4. मोबाइल स्क्रीन का लॉक हो, या वाई-फाई का पासवर्ड, बस इनके ही निर्माण में, दीखे बहू का मास्टर वर्क। लाइक्स और व्यूज बढ़ाने में, हो रही होड़ा-होड़ी, फॉलोवर्स बढ़ाने में व्यस्त है, अब सास-बहू की जोड़ी।

रिश्ता अनमोल bhai bahan par sundar si poem

"रिश्ता अनमोल" तू जब हँसे, तो खिल जाए जीवन, तेरे बिना लगे सूना सब घर-आँगन। झगड़े भी तुझसे, मनुहार भी तुझसे है, गुस्सा भी तुझसे, त्योहार भी तुझसे है। कभी तू रुला दे, कभी तू हँसा दे, छोटे-छोटे लम्हे तू यादें बना दे। राखी की डोर में बाँधा है अहसास,  भैया, हर जनम में मिले तेरा साथ।  जब भी कोई डर सताए मुझे, तेरी आवाज़ हिम्मत दिलाए मुझे। तू है तो सब कुछ मेरे पास है, तेरे बिना अधूरी-सी हर आस है। न है कोई शर्त, न है कीमत, न दाम, भरोसा, विश्वास है इस रिश्ते की जान। यूँ ही बनी रहे हमारे संबंधों में सुबास, भैया, हमारा रिश्ता है सबसे ही खास।

नेता जी की लीला अपरंपार (हास्य-व्यंग्य कविता)

नेता जी की लीला अपरंपार (हास्य-व्यंग्य कविता) नेता जी आए गाँव में, मच गया बड़ा धमाल, कहने लगे - "अब बदलूँगा मैं देश-गाँव का हाल।" झाड़ू लिए हाथ में बोले - "मैं हूँ सेवा का पुजारी," भीड़ बोली - "पहले तो थे घोटालों के अधिकारी!" हर गली में पोस्टर उनके, हर नुक्कड़ पर नाम, अब तो बच्चे भी कहने लगे – "नेता जी को प्रणाम!" मंच से बोले - "मैं गरीबों का बेटा हूँ सच्चा," और मंच के नीचे बिरयानी का डब्बा था कच्चा। बिजली, पानी, सड़क दिलाऊँ, रोज़ दिल से कहें, लेकिन खुद जनरेटर लाते, जब भाषण में रहें। गाँव में दिखे बस एक दिन, जब चुनावी मौसम आया, फिर पाँच साल तलक किसी ने नेता जी को न पाया। बोले थे – "हर हाथ को दूँगा काम मैं दोगुना," हुआ ये कि बाकी आधा गाँव भी हो गया काम बिना। नेता जी की लीला देखो, वादों का पुलिंदा भारी, हर झूठ को सच बना दें, वाकपटुता से है इनकी यारी! स्वार्थ की आग पर हाथ सेंकते, मचाकर ये बवाल।  अगलें-बगलें झाँकते, जब जनता पूछे कोई सवाल। गाँव वाले भी समझ गए अब, नेताजी की हर चाल, ऐसे नेता से तो बिन नेता भले, मन में कर ...