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हिंदी लेख-गुरु की महिमा

गुरु की महिमा ‘ बिनु गुरु होय न ज्ञान ’ अर्थात् बिना गुरु के ज्ञान नहीं प्राप्त होता। ‘ गु ’ शब्द का अर्थ है - अंधकार , तथा ‘ रु ’ शब्द का अर्थ है - अंधकार का निरोधक। अर्थात् अंधकार को दूर करने वाले को गुरु कहा जाता है। गुरु ही हैं जो अज्ञान के अंधकार को मिटाते हैं , गुरु ही हैं जो सही और गलत का भेद बताते हैं , गुरु ही हैं जो सच्चा मार्ग दिखलाते हैं , गुरु ही हैं जो भवसागर से तारते हैं और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यही कारण है कि गुरु की महिमा के गीत गाये जाते हैं और उन्हें सर्वोपरि स्थान दिया जाता है - ‘‘ सतगुरु की महिमा अनंत , अनंत कियो उपकार। लोचन अनंत उघाड़िया , अनंत दिखावण हार।। ’’ कबीरदास जी ने तो गुरु की महिमा का बखान करते हुए उन्हें ईश्वर से भी प्रमुख स्थान दिया है - ‘‘ गुरु गोबिन्द दोउ खड़े , काकै लागूँ पाँय। बलिहारी गुरु आपणैं , गोबिन्द दियो बताय। ’’ उन्होंने ऐसा इसलिए कहा है , क्योंकि एक सच्चा गुरु ही

हिंदी लेख- विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी जीवन  विद्यार्थी की परिभाषा है-‘‘विद्यायाः अर्थी’ अर्थात् विद्या का इच्छुक या अभिलाषी। इसका अर्थ यही हुआ कि विद्यार्थी को विद्या प्राप्ति की इच्छा ही सर्वोपरि रखनी चाहिए, चाहे इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु उसे शारीरिक सुख प्राप्त करने की इच्छा को तिलांजलि ही क्यों न देनी पड़े। संस्कृत में कहा भी गया है- ‘‘सुखार्थिनः कुतो विद्या, विद्यार्थिनः कुतो सुखम्। सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।।’’ अर्थात् सुख चाहने वाले के पास विद्या कहाँ? विद्या चाहने वाले के पास सुख कहाँ सुख चाहने वाले को विद्या (प्राप्ति का विचार) त्याग देना चाहिए और विद्या चाहने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए। हमारी भारतीय परंपरा में प्राचीन काल में गुरुकुल की अवधारणा थी। गुरुकुल में पच्चीस वर्ष की आयु तक रहकर छात्र विभिन्न प्रकार की विद्याओं का अर्जन करता था; क्योंकि यही वह आयु है जिसमें विद्यार्थी पर न तो किसी प्रकार के दायित्वों का भार होता है और न आर्थिक चिंता। वह अपना मानसिक, शारीरिक एवं बौद्धिक विकास स्वतंत्र एवं निश्चिन्त होकर कर सकता है। गुरुकुल में शांत एवं प्राकृतिक व

देशभक्ति कविता-विंग कमांडर अभिनंदन पर

वंदन अभिनंदन धन्य है अभिनंदन जैसे धरती के लाल भारत माँ की रक्षा का सदा बीड़ा उठायो है। शौर्य और पराक्रम की दिखाई ऐसी मिसाल पुराने विमान से ही मिग 16 टपकायो है। मूंछें तनी रहीं देखो शत्रु की कैद मेें भी बब्बर शेर ने बला को साहस दिखायो है। राफेल विमान को ज़रा हाथ तो लगाने दो अभी तो उनके नाम से ही डरपायो है। गोपनीय दस्तावेज़ लगने नहीं दिए हाथ शत्रु के सामने ही उन्हें निगलायो है। दिखा दिया शत्रु को कि छेड़ा हम करते नहीं पर जब भी छिड़े तभी तुम्हें सबक सिखायो है। शत्रु के सभी सवालों का किया सामना यूँ डटकर चाय की चुस्कियों में भी होश नहीं बिसरायो है अभिनंदन, वंदन करती हूँ भारतीय जाबाँजांे को देश की खातिर सदा अपने लहू को बहायो है।

वर्तमान में भगवान महावीर के सिद्धांतों की सार्थकता

वर्तमान में भगवान महावीर के सिद्धांतों की सार्थकता जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन त्याग, अहिंसा, संयम, साधना, तप का जीवन है। उनका मुख्य संदेश था- ‘‘जीओ और जीने दो।’ ’ वे छोटे-से-छोटे जीव को भी सताने या मारने के विरोधी थे। वे चाहते थे कि हमें दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखने चाहिए जो हम दूसरों से अपने लिए चाहते हों। भगवान महावीर ने दुनिया को सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाया। उन्होंने मानव मात्र को आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु पाँँच सिद्धांत बताए, जिनमें पाँच व्रतों को अपनाने पर बल दिया गया है। ये पंचव्रत इस प्रकार हैं-अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। हम ये जानने का प्रयत्न करते हैं कि वर्तमान समय में इन सिद्धांतों की क्या उपयोगिता व उपादेयता है? इन सिद्धांतों को अपनाकर मनुष्य किस प्रकार अपने को व्यवस्थित तथा अपने जीवन को सार्थक बना सकता है? अहिंसा भगवान महावीर अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म मानते थे। परंतु उनका अहिंसा सिद्धांत मात्र ‘जीओ और जीने दो’ तक ही सीमित नहीं था, उनकी अहिंसा का आदर्श था-दूसरों को जीने में सहायता करो और अ

हिंदी कविता 'पर्यावरण को सुंदर बनाएँ'

पर्यावरण को सुंदर बनाएँ आओ मिल-जुल पेड़ लगाएँ, पर्यावरण को सुंदर बनाएँ। पेड़ों से ही हमको मिलते     रंग-बिरंगे फूल और फल, इन्हें देखकर और खाकर,      पड़ जाता मन-तन को कल।   घनी पत्तियाँ इसकी देतीं        तपतों को शीतल छाँव पवन, प्राणदायी ऑक्सीजन पाकर       धन्य हो जाता है हर जन।  जड़ भी इसकी बड़े काम की     पानी सींच धरती को रखे नम,  अन्न इसका खाकर ही     जीवन धारण करते हैं हम। बीमारियों से दूर रखें      इसकी औषधियाँ हैं पावन, टहनी लकड़ी भी उपयोगी     देतीं दातुन और ईंधन। पेड़ों से ही शोभा पाते    सारे जंगल और उपवन, यदि बचाया नहीं इन्हें तो     नष्ट हो जाएगा जन-जीवन।

हिंदी कविता 'गौरैया की पुकार'

इस बार की गर्मी में बच्चो खूब मस्ती, होमवर्क करना है जूस शरबत पीने के संग  तुमको एक काम ये करना है इन छोटी-छोटी गौरैयों का, चीं-चीं स्वर भी सुनना है। तपती गर्मी में चलती है लू से भरी हुई जब आँधी पानी मिलता नहीं दूर तक दिखती छाया न दाना है  कटोरे में दाना-पानी भरकर, आँगन-छत पर रखना है। चीं-चीं करतीं ये गौरैयाँ  जब पानी पीने आएँगी नहीं डराना नहीं भगाना अपनत्व उनसे जताना है इस बार तुम ठान लो मन में, ये कि उन्हें बचाना है। दो बूँद पानी के अभाव में न तोड़े दम कोई भी पक्षी इन निरीह प्राणियों के जीवन में  आस-विश्वास तुम्हें जगाना है मिट्टी के बरतन में पानी रख, तुमको वचन निभाना है।

हिंदी लेख 'नकल पर कैसे लगेगी नकेल'

नकल पर कैसे लगेगी नकेल उत्तर प्रदेश में नकल पर रोक लगाने की बात बड़े ज़ोरों पर चल रही है। उत्तर प्रदेश या बिहार में ही नहीं, कमोवेश देखा जाए तो यह अनेक प्रदेशों की समस्या है। सरकारें नकल पर नकेल कसने में अपने को असहाय पाती हैं। अनेक केंद्रों पर धड़ल्ले से सामूहिक नकल होती रहती है और प्रशासन विवश एवं मूक बना देखता रहता है।   अब सवाल यह आता है कि ऐसा नज़ारा आमतौर पर सरकारी स्कूलों में ही देखने को क्यों मिलता है? इसका सीधा-सा उत्तर है कि उन्हें नकल की सहूलियतें प्राप्त हैं, जबकि प्राइवेट स्कूलों में तो छात्रों को गरदन घुमाने की भी अनुमति नहीं मिलती। इसी से जुड़ा एक अन्य अहम् सवाल ये भी है कि आखिर सरकारी स्कूलों के छात्रों को ही नकल करने की ज़रूरत क्यों पड़ती है?  ऊपरी तौर पर इसका उत्तर यह कहकर दिया जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षारत छात्र पढ़ता नहीं है। कारण अनेक गिनाए जा सकते हैं, जैसे-घर का माहौल शिक्षा के लिए उपयुक्त न होना, माता-पिता का पढ़ा-लिखा न होना, पढ़ाई के साधनों का पर्याप्त अभाव आदि, जिनकी वज़ह से वह पढ़ाई की बजाय नकल के भरोसे बैठा रहता है।  पर बुनियादी तौर पर देखा जाए तो