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Hindi Article बिन पानी सब सून (Save Water)

‘बिन पानी सब सून’ आप दो स्थितियों पर कल्पना करें-पहली, आपके नल में यकायक पानी चला जाए और आपने पहले से समुचित पानी का भंडारण भी न किया हो और जल-निगम की ओर से सूचना आ जाए कि किसी गड़बड़ी के कारण दो दिनों तक पानी की आपूर्ति नहीं हो सकेगी। सोचिए, उस समय आप क्या करेंगे? पहले से जो पानी घर में है, उसे बहुत सोच-समझकर उपयोग में लाएँगे। साथ ही इधर-उधर से पानी जुटाने में अपना महत्त्वपूर्ण समय और शक्ति खर्च करेंगे।  दूसरी स्थिति, यदि पर्याप्त बारिश न होने के कारण जल का स्तर काफ़ी नीचे चला जाए और सरकार आपको पीने लायक पानी उपलब्ध कराने में भी असमर्थ हो रही हो, तो?............। शायद आप महँगे से महँगे दाम में भी पानी खरीदने पर विवश होंगे और जो जल घर में है, उसकी एक-एक बूँद को अमृत की तरह सहेजकर रखेंगे। दोस्तो! ये सिर्फ़ काल्पनिक किस्से नहीं हैं। यदि हमने पानी की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया और हम समय पर नहीं चेते तो ये किस्से हकीकत में बदलते समय नहीं लगेगा।  अब हम ज़रा कल्पना से निकलकर सच्चाई की ओर रुख करें तो देखते हैं कि जब हमारे घरों में समुचित जल आपूर्ति हो रही है, ऐसे में हम हज़ारों लीटर

HINDI ARTICLE PAR UPDESH KUSHAL BAHUTERE

‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’-इस पंक्ति का प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ में उस समय किया है, जब मेघनाद वध के समय रावण उसे नीति के उपदेश दे रहा था। रावण ने सीता का हरण करके स्वयं नीति विरुद्ध कार्य किया था, भला ऐसे में उसके मुख से निकले नीति वचन कितने प्रभावी हो सकते थे, यह विचारणीय है।  इस पंक्ति का अर्थ है कि हमें अपने आस-पास ऐसे बहुत-से लोग मिल जाते हैं जो दूसरों को उपदेश देने में कुशल होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग दूसरों को तो बड़ी आसानी से उपदेश दे डालते हैं, पर उन बातों पर स्वयं अमल नहीं करते, क्योंकि-‘‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।’’ हम भी ऐसे लोगों में से एक हो सकते हैं, या तो हम उपदेश देने वालों की श्रेणी में हो सकते हैं या उपदेश सुनने वालों की। अतः लगभग दोनों ही स्थितियों से हम अनभिज्ञ नहीं हैं। हमें सच्चाई पता है कि हमारे उपदेशों का दूसरों पर और किसी दूसरे के उपदेश का हम पर कितना प्रभाव पड़ता है। सच ही कहा गया है,  ‘‘हम उपदेश सुनते हैं मन भर, देते हैं टन भर, ग्रहण करते हैं कण भर।’’ फिर क्या करें? क

HINDI STORY (MIRTYU KA SACH)

मृत्यु का सच रोहन और अनिल दोनों एक ही मुहल्ले में रहते थे और बचपन से ही साथ-साथ एक ही स्कूल में पढ़े थे। दोनों का जन्म भी लगभग साथ ही हुआ था और मृत्यु भी.................पर दोनों की मृत्यु में कितना अंतर था। ‘अनिल की इस तरह की मृत्यु का मैं ही ज़िम्मेदार हूँ। वर्ना आज मेरा बेटा भी शहीद कहलाने का हकदार होता।’ सोचते हुए शर्माजी ने आँसू छलक पड़े। ‘‘शर्माजी रोओ नहीं, रोहन जैसी मौत खुशकिस्मतों को ही नसीब होती है। मेरा बेटा मरा नहीं है, बल्कि देश के लिए शहीद हुआ है। उसकी शहादत पर तो हमें गर्व होना चाहिए।’’रोहन के पिता ने शर्माजी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।’’ ‘‘हाँ, आप ठीक कह रहे हैं।’’ कहते हुए उन्होंने अपने बहते आँसुओं को रोकने की कोशिश की। पर उन आँसुओं का रहस्य वे ही जानते थे । ये देखने वालों के लिए सिर्फ़ आँसू थे, पर सच्चाई तो यह थी कि उनके इन आँसुओं में उनका दिल बह-बहकर निकल रहा था। मातम के उस माहौल में बैठे शर्माजी के अशांत हृदय और बेबस आँखों के आगे अनिल का चेहरा घूम गया।  ‘‘बेटा, अब तुम आगे क्या करना चाहते हो, मैं सोचता हूँ कि अपनी काॅलेज़ की पढ़ाई के साथ-साथ कंपटीशन की तैयारी भी शु

KAREENA +SAIF =TAIMUR (NAAM ME KYA RAKHA HAI)

तैमूर अली खान  सबसे पहले तो करीना और सैफ को पुत्र-रत्न की बधाई! आमतौर पर जब बच्चे का जन्म होता है तब नाते-रिश्तेदार, बड़े-बुज़ुर्ग, पंडित आदि नवजात शिशु के लिए बहुत-से नाम सुझाते हैं। अनेक बार शिशु के माता-पिता स्वयं भी पहले से ही नाम चुनकर रखते हैं। शायद करीना-सैफ के शिशु के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो, तभी तो उन्होंने पुत्र-रत्न की प्राप्ति होने के बाद उसके नाम की घोषणा करने में ज़्यादा वक्त नहीं लिया। और नाम भी कुछ साधारण नहीं, बल्कि ऐसा जिसने सोशल मीडिया में हलचल पैदा पैदा कर दी। नाम अप्रचलित या सर्वथा नया नहीं है, बल्कि चौदहवीं शताब्दी में उज्बेगिस्तान में जन्मे एक शासक के नाम पर है। पर इस शासक की गणना संसार के सबसे क्रूर और निष्ठुर शासकों में की जाती है, नाम है-तैमूर। फिर भला सैफ-करीना को अपने पुत्र के लिए यही नाम क्यों सूझा? इसका उत्तर तो वही दे सकते हैं। अपने बच्चे के नाम का चुनाव करना प्रत्येक माँ-बाप का अधिकार है। पर हम तो इतना ही कहेंगे कि या तो इतिहास के पन्नों में स्याह अक्षरों में दर्ज़ इस शासक के विषय में इन्हें कोई जानकारी नहीं है या फिर अति उत्साह में कुछ नयापन करने

HINDI STORY (MAMTA KA NAYA CHEHRA)

ममता का नया चेहरा मैं रोज़ की तरह आज भी सुबह की ठंडी और ताज़ी हवा का आनंद लेने निकल पड़ा हूँ। पार्क के पास पहुँचा तो एक कुतिया ने मुझे देखते ही ज़ोर-ज़ोर से भौंकना शुरू कर दिया। कहीं वो काट न जाए, यह सोचकर मैंने उसे डराने के लिए अपना डंडा आगे किया ही था कि वह भागकर सड़क के किनारे लगे पेड़ के पास जाकर खड़ी हो गई और वहीं से भौंकने लगी। अनायास मेरा हाथ वहीं का वहीं ़रुक गया, क्योंकि मैंने देखा कि वह जिस स्थान पर खड़ी थी, वहाँ उसका एक बच्चा लेटा हुआ था। मैंने उत्सुकतावश कुछ पास जाकर गौर से देखा, तो पाया कि वह उसका नवजात शिशु था, जो शायद सर्दी के कारण मर गया था। वह कुतिया संभवतः उसकी सुरक्षा के कारण ही हर आते-जाते पर भौंक रही थी। मेरे मन में उस असहाय कुतिया के प्रति हमदर्दी उमड़ पड़ी। मैं पार्क के अंदर न जाकर वहीं पार्क की बाउंड्री पर बैठ गया और उसकी गतिविधि को देखने लगा। वो दूर से ही किसी को देख लेती थी, तो भागी हुई उस तरफ जाती और भौंककर उसे अपने शिशु के पास जाने से रोक देती। अभी पाँच मिनट ही बीते थे कि वहाँ एक कूड़ा भरने वाली गाड़ी आकर रुकी। पहले तो कूड़े वाले ने सड़क के दूसरी ओर का कूड़ा उठाना शुरू

HINDI SANSMARAN बदलता बचपन (BADALTA BACHPAN)

संस्मरण बदलता बचपन एक बार कृष्णा सोबती जी की रचना पढ़ी-‘मेरा बचपन’। पढ़कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि लेखिका के बचपन में हर चीज़ कितनी सस्ती मिलती थी, सच, कितना अच्छा होगा उनका बचपन। पर आज़ जब मैं अपने अतीत की ओर झाँकती हूँ, तो देखती हूँ कि मेरा बचपन भी तो आज के बच्चों के बचपन से कितना अलग, कितना अच्छा था। भले ही मेरे बचपन में चीजें उतनी सस्ती तो न थीं, जितनी कृष्णा सोबती जी के बचपन में थीं, पर ऐसा बहुत कुछ था, जिसे याद करके खुश...... नहीं, बल्कि बहुत खुश हुआ जा सकता है। तब भी चीज़ें आज के जितनी महँगी तो न थीं। मुझे आज भी याद है, तब मात्र चालीस-पचास हज़ार में नया बना-बनाया घर मिल जाया करता था। यह बात अलग थी कि तब उसे भी महँगा ही समझा जाता था। पर आज फ्लैट कहे जाने वाले ये दड़बेनुमा घर (जो उस समय कम-से-कम छोटे शहरों में तो बिल्कुल न थे) बीस-पच्चीस लाख में मिलते हैं। तब हम बच्चों के खेल भी बिल्कुल अलग हुआ करते थे। बादलों को देखकर उनमें दादी माँ, ऐरावत हाथी या फूल-पक्षी की कल्पना करने के अलावा गिट्टी फोड़, ऊँच-माँगी नीच, किल-किल काँटे, पोसमपा, विष-अमृत, लुका-छिपी, लँगड़ी टाँग.............और भी न जाने

HINDI EKANKI (TIME PASS)

,dkadh टाइम पास पात्र- पोपटलाल जी-उम्र (लगभग पैंतालीस साल), रंग साफ़, हल्की मूँछें। सुमित्रा-पोपटलाल जी की पत्नी (उम्र लगभग चालीस साल) रामप्रसाद जी (पोपटलाल जी के मित्र) रंग साँवला, पैंट-शर्ट पहने हुए हैं। (कुर्ता पायज़ामा पहने तथा आँखों पर चश्मा चढ़ाए पोपटलाल जी, कमरे में एक कुर्सी पर बैठे अखबार के पन्ने पलट रहे हैं।) पोपटलाल जी (ऊँचे स्वर में पढ़ते हुए )-महँगाई के कारण एक परिवार ने की सामूहिक आत्महत्या, कर्ज़ में डूबे किसान फसल चैपट होने से भुखमरी के कगार पर, प्याज और आलू की कीमतों में उछाल। (अखबार को मेज़ पर लगभग फेंककर, झुँझलाते हुए)-समझ में नहीं आता, आखिर आम आदमी इस महँगाई में करे तो क्या करे? रामप्रसाद जी (कमरे में प्रवेश करते हुए, हँसकर)-पोपटलाल जी, लगता है भाभीजी बोलने का वक्त नहीं देतीं, इसलिए अकेले-अकेले ही बड़बड़ाए जा रहे हो। पोपटलाल जी (सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हैं, उनके स्वर में अभी भी झुँझलाहट है)-आइए!आइए! बैठिए रामप्रसाद जी! क्या बताऊँ, इस महँगाई ने तो नाक में दम कर रखा है। रामप्रसाद जी-तो, ये बात है। (चुटकी लेते हुए) लगता है, आज़ इतवार होन