सच्चा पाठक एक बार एक बहुत बड़े लेखक थे। उनकी लिखी रचनाएँ लोगों को बहुत पसंद आतीं। उनके हजारों प्रशंसक बन गए थे, जो उन्हें प्रतिदिन प्रशंसा भरे ढेरों खत लिखते। एक बार लेखक ने एक उपन्यास लिखा। हमेशा की तरह इस बार भी उनकी इस रचना को सभी लोगों ने बहुत पसंद किया और उन्हें शुभकामना भरे पत्र लिखे। पत्र पढ़ते समय एक पत्र पर उनकी निगाह अटक गई। उस पत्र में एक प्रशंसक ने उनके उपन्यास की आलोचना की थी, जिसमें उसने उस उपन्यास की कुछ कमियों की ओर लेखक का ध्यान आकर्षित किया था। इस पत्र को पढ़कर लेखक को बहुत क्रोध आया। उसने सोचा, बड़े-बड़े विद्वान तक तो मेरे इस उपन्यास की प्रशंसा कर रहे हैं, फिर भला यह कौन है जो इस तरह मेरे लेखन में कमियाँ निकाल रहा है? लेखक उसी क्षण अपने उस आलोचक बनाम प्रशंसक के लिए पत्र लिखने बैठ गए। उन्होंने इस पत्र में उस आलोचक के लिए बहुत गुस्से भरे शब्दों का प्रयोग करते हुए यहाँ तक लिख दिया कि तुम न तो एक अच्छे पाठक हो और न ही तुम्हें रचनाओं की समझ तक है। मैं एक उत्कृष्ट लेखक हूँ, सभी मेरी प्रशंसा करते हैं, यदि मेरे लेखन में कमी होती तो क्या वह अन्य रचनाकारों को नहीं दिखाई देती? ...