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सोलह श्रृंगार कौन-कौन से हैं?

            सोलह श्रृंगार  सोलह श्रृंगार का अर्थ है-सोलह प्रकार के आभूषण, जो शरीर के अलग-अलग अंगों पर पहने जाते हैं। करवाचौथ आदि विशेष अवसरों पर महिलाएँ या नववधुएँ-ये सोलह श्रृंगार करती हैं।  सबसे पहले हल्दी-चंदन-बेसन का लेप या उबटन लगाकर महिलाएँ स्नान करती हैं। उसके पश्चात् ये सोलह श्रृंगार करती हैं। पहले स्वर्ण आभूषण या कहीं-कहीं फूलों के आभूषण बनाकर पहने जाते थे, परंतु आजकल हीरे, मोती तथा चाँदी आदि के आभूषण भी पहने जाते हैं।  करवाचौथ पर सुहागिन महिलाएँ व्रत रखती हैं। करवा माता की पूजा करती हैं और उनसे अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। इस अवसर पर महिलाएँ सोलह श्रृंगार करती हैं। तो चलिए, आज हम जानते हैं कि सोलह श्रृंगार कौन-कौन से हैं- (१) मज्जन (धोना या स्नान करना) (२) चीर (कपड़े) (३) हार (गले का हार)  (४) तिलक (माथे पर लगाने वाला टीका) (५) अंजन (काजल) (६) कुंडल (कान के आभूषण) (७) नासामुक्ता (नाक का आभूषण) (८) केशविन्यास (बालों का सजाना) (९) चोली (कंचुक) (ऊपर का कपड़ा) (१०) नूपुर (पायल) (११) अंगराग (सुगंध) (१२) कंकण (...

बंदर मगरमच्छ की कहानी (दोस्ती वही, कहानी नई)

दोस्तो, आपने यह कहानी तो सुनी होगी जिसमें एक बंदर और एक मगरमच्छ की आपस में बहुत दोस्ती होती है बंदर मगरमच्छ को प्रतिदिन मीठे जामुन लाकर देता था।  एक दिन मगरमच्छ ने जामुन अपनी पत्नी को खिलाए। पत्नी ने अपने जीवन में पहली बार इतने मीठे जामुन खाए थे। उसने कहा तुम्हारा दोस्त प्रतिदिन इतने मीठे जामुन खाता है, उसका कलेजा भी कितना मीठा होगा। मुझे तो उसका कलेजा खाना है। मगर के बहुत समझाने पर भी वह नहीं मानी। आखिरकार मगरमच्छ को पत्नी हठ के आगे हार माननी पड़ी। अगले दिन वह नदी के किनारे पहुँचा तो वहाँ बंदर मीठे जामुन लेकर उसका इंतजार कर रहा था।  मगरमच्छ ने कहा, "बंदर भाई तुम्हारी भाभी यानी मेरी पत्नी तुमसे मिलना चाहती है।" बंदर ने कहा, "मुझे तो तैरना भी नहीं आता, भला मैं कैसे जा पाऊँगा।" मगरमच्छ ने कहा, "कोई बात नहीं, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें ले जाऊँगा।"  बंदर मगरमच्छ की बातों में आ गया और वह उसके घर जाने के लिए उसकी पीठ पर बैठ गया। किंतु मगरमच्छ दिल का भोला था। उसने सोचा अब तो बंदर मरने ही वाला है, तो इसे सत्य बता ही देना चाहिए। उसने कहा, "बंदर भाई! ...

मोबाइल महिमा Hindi poem

मोबाइल महिमा सुबह-सुबह आँखें खुलते ही, मोबाइल को हम पाते हैं,  बिना ब्रश किए पहले, नोटिफिकेशन चेक कर जाते हैं। बिस्तर में ही फेसबुक, व्हाट्सएप का दौर चलता है,  चाय ठंडी हो जाए चाहे, पर स्क्रीन से प्यार पलता है। नाश्ते की टेबल पर भी, मोबाइल संग निवाला है,  घरवाले बातें करें तो, 'एक मिनट' का हवाला है। रास्ते में चलते-चलते, मैसेज टाइप किए जाते हैं,  खंभे से टकरा जाएँ पर, इससे दूर न हो पाते हैं। बॉस ऑफिस में लेते मीटिंग, हम तो चैटिंग में व्यस्त हैं,  वो करते मार्केटिंग की प्लानिंग, पर हम इंस्ट्रा में रत हैं। रात को सोने से पहले, मोबाइल का आलिंगन है,  बिना इसके जीवन जैसे, सूना-सूना घर-आँगन है। हे मोबाइल! तेरा जादू, सब जग पर ऐसा छाया है,  बिना तेरे जीवन जैसे, बिना नमक का खाना है। इस मोबाइल के फेर में, नौकरी पर बन आई है, बॉस का 'टास्क' भूलकर, रील्स में आँख गड़ाई है। मोबाइल के चक्रव्यूह ने, अलग ही दुनिया बसाई है,  सारा जगत अब मुट्ठी में है, पर दिल में तन्हाई है।

सास-बहू की डिजिटली नोंक-झोंक (हास्य क्षणिकाएँ)

1. बहू बोली सासू माँ, अब तो मोबाइल रख दो हाथ, रोटियाँ जल गईं इधर, आप थीं स्नैपचैट के साथ। सासू बोली – बहू! रील बना रही थी नई रसोई की, जल गई रोटी, हाय! अब मिलेगी लाइक बस सौ-पचास। 2. सास कहे – बहू!  तेरी अँखियाँ तो हैं बड़ी ही नीली, अरे! ये तो है फिल्टर की करामात, बहू हँसकर बोली। सासू माँ, अब तो डिजिटल ज़माने का ही सब खेला है, ब्यूटी पार्लर की जरूरत नहीं, इंस्टा ने रूप को बदला है। 3. बहू कहे – सासू माँ! घर की बातें अब कम किया करो, व्हाट्सएप पर मोहल्ले को न रोज़ अपडेट दिया करो। सास बोली – पगली, ये मेरी सोसायटी की फीलिंग है, जहाँ स्टेटस न बदला जाए, वहाँ बोरिंग सी लिविंग है! 4. मोबाइल स्क्रीन का लॉक हो, या वाई-फाई का पासवर्ड, बस इनके ही निर्माण में, दीखे बहू का मास्टर वर्क। लाइक्स और व्यूज बढ़ाने में, हो रही होड़ा-होड़ी, फॉलोवर्स बढ़ाने में व्यस्त है, अब सास-बहू की जोड़ी।

रिश्ता अनमोल bhai bahan par sundar si poem

"रिश्ता अनमोल" तू जब हँसे, तो खिल जाए जीवन, तेरे बिना लगे सूना सब घर-आँगन। झगड़े भी तुझसे, मनुहार भी तुझसे है, गुस्सा भी तुझसे, त्योहार भी तुझसे है। कभी तू रुला दे, कभी तू हँसा दे, छोटे-छोटे लम्हे तू यादें बना दे। राखी की डोर में बाँधा है अहसास,  भैया, हर जनम में मिले तेरा साथ।  जब भी कोई डर सताए मुझे, तेरी आवाज़ हिम्मत दिलाए मुझे। तू है तो सब कुछ मेरे पास है, तेरे बिना अधूरी-सी हर आस है। न है कोई शर्त, न है कीमत, न दाम, भरोसा, विश्वास है इस रिश्ते की जान। यूँ ही बनी रहे हमारे संबंधों में सुबास, भैया, हमारा रिश्ता है सबसे ही खास।

नेता जी की लीला अपरंपार (हास्य-व्यंग्य कविता)

नेता जी की लीला अपरंपार (हास्य-व्यंग्य कविता) नेता जी आए गाँव में, मच गया बड़ा धमाल, कहने लगे - "अब बदलूँगा मैं देश-गाँव का हाल।" झाड़ू लिए हाथ में बोले - "मैं हूँ सेवा का पुजारी," भीड़ बोली - "पहले तो थे घोटालों के अधिकारी!" हर गली में पोस्टर उनके, हर नुक्कड़ पर नाम, अब तो बच्चे भी कहने लगे – "नेता जी को प्रणाम!" मंच से बोले - "मैं गरीबों का बेटा हूँ सच्चा," और मंच के नीचे बिरयानी का डब्बा था कच्चा। बिजली, पानी, सड़क दिलाऊँ, रोज़ दिल से कहें, लेकिन खुद जनरेटर लाते, जब भाषण में रहें। गाँव में दिखे बस एक दिन, जब चुनावी मौसम आया, फिर पाँच साल तलक किसी ने नेता जी को न पाया। बोले थे – "हर हाथ को दूँगा काम मैं दोगुना," हुआ ये कि बाकी आधा गाँव भी हो गया काम बिना। नेता जी की लीला देखो, वादों का पुलिंदा भारी, हर झूठ को सच बना दें, वाकपटुता से है इनकी यारी! स्वार्थ की आग पर हाथ सेंकते, मचाकर ये बवाल।  अगलें-बगलें झाँकते, जब जनता पूछे कोई सवाल। गाँव वाले भी समझ गए अब, नेताजी की हर चाल, ऐसे नेता से तो बिन नेता भले, मन में कर ...

चंदन तेल (Sandalwood Oil) के फायदे

चंदन तेल (Sandalwood Oil) के फायदे   चंदन तेल के बहुत सारे फायदे हैं। खासकर आयुर्वेद में इसका उपयोग त्वचा, मन और शरीर को शांत करने के लिए किया जाता है। यहाँ कुछ मुख्य लाभ दिए गए हैं:- 1. त्वचा के लिए फायदेमंद • मुहांसों और दाग-धब्बों को कम करता है • त्वचा को नमी और ठंडक प्रदान करता है • रिंकल्स और झुर्रियों को कम करने में              सहायक 2. तनाव और मानसिक शांति में मददगार • चंदन तेल की खुशबू तनाव कम करती है। • ध्यान और मेडिटेशन के समय उपयोग             करने से एकाग्रता बढ़ती है। 3. सूजन और जलन में राहत • इसके एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण सूजन को कम       करने में मदद करते हैं। • जलन या कीड़े के काटने पर राहत देता है। 4. एंटीसेप्टिक गुण • चोट या कट पर लगाने से संक्रमण नहीं           होता। • फंगल संक्रमण में भी उपयोगी। 5. बालों के लिए लाभकारी • स्कैल्प को ठंडक देता है। • डैंड्रफ को कम करने में सहायक। चंदन तेल के कुछ घरेलू उपयोग  यहाँ चंदन तेल के कुछ घरे...

गीत: जा री बिटिया, जीवन पथ चलना

गीत: जा री बिटिया, जीवन पथ चलना (धुन: लोकगीत या भावगीत की शैली में) इस गीत में एक मां अपनी बेटी को विदा करते समय अपने मन के भावों को व्यक्त कर रही है- (अंतरा 1) जा री बिटिया, जीवन पथ चलना, मां के आंचल की छांव छोड़ चलना। तेरे नर्म पाँवों में हों कांटे कई, पर तू हिम्मत से हर राह चलना। जा री बिटिया, जीवन पथ चलना... (अंतरा 2) घर की देहरी अब तू पार करेगी, नई दुनिया से पहचान करेगी। पर तू कभी संस्कार न भूलना, हर रिश्ता सच्चे मन से निभाना। जा री बिटिया, जीवन पथ चलना... (अंतरा 3) बचपन की बातें, वो तेरी हँसी, तेरी हर लोरी अब याद आएगी। तेरे बिना सूना सा घर लग रहा, पर तेरा साजन घर आबाद रहे। जा री बिटिया, जीवन पथ चलना... (अंतरा 4) जब भी लगे तू थक सी गई है, मां की दुआ तेरे संग कहीं है। अपनेपन से तू दीप जलाना, हर अंधेरे को उजियारा बनाना। जा री बिटिया, जीवन पथ चलना...

26 जनवरी का पर्व, लाया नई सौगात (देशभक्ति कविता)

                      गणतंत्र दिवस पर कविता वंदन है उस धरा को, जो भारत माँ कहलाती, हर कोने में जिसके, खुशहाली मुस्काती। 26 जनवरी का पर्व, लाया नई सौगात, गणतंत्र का यह उत्सव, है हम सबका साथ। संविधान की शक्ति से, चल रहा देश महान, सपनों का भारत बने, यही है अरमान। बलिदानों की धरती पर, लहराए तिरंगा प्यारा, हर दिल में हो बस एक ही नारा – "भारत माता की जयकारा!" वीरों के बलिदान से, सींची आज़ादी की बगिया, हर हाथ में हो तिरंगा, हर मन में हो सुख-शांति की दुनिया। चलो मिलकर कदम बढ़ाएं, सपनों का भारत सजाएं, गणतंत्र के इस पावन दिन, हर दिल को हम जगाएं।

श्रीकृष्ण: प्रकृति प्रेमी और पर्यावरण संरक्षक (हिंदी लेख)

श्रीकृष्ण: प्रकृति प्रेमी और पर्यावरण संरक्षक श्रीकृष्ण केवल एक महान योद्धा, राजनेता और दार्शनिक ही नहीं थे, बल्कि वे प्रकृति प्रेमी भी थे। उनके जीवन के अनेक प्रसंगों में प्रकृति के प्रति उनका गहरा लगाव दिखाई देता है। वे नंदगांव और वृंदावन की हरी-भरी वादियों में गायों के साथ विचरण करते थे, यमुना के निर्मल जल में क्रीड़ा करते थे और कुंज-वनों में बांसुरी की मधुर धुन से प्रकृति को संगीतमय बना देते थे। श्रीकृष्ण का जीवन हमें पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति प्रेम की सीख देता है। श्रीकृष्ण और प्रकृति का गहरा संबंध 1. गोकुल और वृंदावन की हरियाली श्रीकृष्ण का बाल्यकाल गोकुल और वृंदावन की हरी-भरी भूमि में बीता। वे अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ गाएं चराने जाते थे। उनके जीवन का यह पक्ष हमें पशुपालन, जैव विविधता और प्रकृति संरक्षण की महत्ता समझाता है। 2. यमुना नदी से प्रेम श्रीकृष्ण का यमुना नदी से गहरा संबंध था। उन्होंने कालिय नाग का वध करके यमुना के जल को शुद्ध किया, जिससे जीव-जंतुओं को स्वच्छ जल प्राप्त हुआ। यह घटना हमें जल संरक्षण और प्रदूषण मुक्ति का संदेश देती है। 3. गोवर्धन पर्वत की...

आओ आज मिलकर तिरंगा फहराते हैं (देश-भक्ति पर कविता)

आओ आज मिलकर तिरंगा फहराते हैं, देश की शक्ति का परचम लहराते हैं। ये तिरंगा है आन और शान का प्रतीक, इसके तले गाये हैं मतवालों ने कई गीत। बलिदानों की गाथा को याद करते चलें, भारत मां के चरणों में शीश झुकाते चलें। साहस और त्याग की जो मिसाल बने, उन वीरों के सपनों को साकार करते चलें। हर रंग इसका संदेश बड़ा दे जाता, हमें एकता और सद्भाव सिखा जाता। केसरिया हो ऊर्जा का प्रतीक बनकर, हरियाली से धरती को महकाते हैं। सफेद रंग से शांति का संदेश फैलायें, नीले चक्र से कर्म की राह दिखायें। आओ आज इस प्रण को दोहराते हैं, मिलकर भारत को विश्वगुरु बनाते हैं।

नेता जी पर व्यंग्य कविता (नेता जी बड़े चालबाज हैं)

* नेता पर व्यंग्य  कविता*  नेता जी बड़े चालबाज हैं, नेता जी बड़े चालबाज हैं, बोलें मीठी-मीठी बात हैं। वादों का बड़ा पिटारा खोलें, जनता को वोटों में बस तोलें। दिखते जनता के सच्चे सेवक, ‍पर इनके जैसा न कोई शोषक।। चुनाव के पहले दिखें सीधे-सादे, करते जनता के हित के वादे। पर कुर्सी मिलते ही बदलें रंग, भूल जाएं जनता का संग। अपने भाई-भतीजों का ही बस, करते रहते हरदम ये उद्धार।  नेता जी बड़े चालबाज हैं, बोलें मीठी-मीठी बात हैं। बोलें गरीबी मिटा देंगे हम, हर घर विकास पहुँचाएँगे। पर चुनाव में जाते जब जीत पाँच साल तक दर्शन न देते। बस अपना घर नोटों से भरते, जनसेवक बन जनता को ठगते। नेता जी बड़े चालबाज हैं, बोलें मीठी-मीठी बात हैं। नेता हर दिन करते नया ही नाटक, कभी धरना, अनशन, तो कभी भाषण। सच पूछो तो इनकी सब बातें, बस होती हैं लुभावना आकर्षण। जो वादे करके उन्हें पूरा कर दे, उसको भला कोई नेता कैसे समझे। नेता जी बड़े चालबाज हैं, बोलें मीठी-मीठी बात हैं। जनता से कहें, "देश है महान, इसके लिए लुटा दो तुम जान।" पर अपने लिए शीशमहल बनवाते, थाइलैंड में जाकर मौज उड़ाते। स्विस बैंकों म...

बाबा ओ बाबा (Father's day special poem)

"बाबा, मेरी धुन में तुम, मेरा हर राग हो तुम।" बचपन में जब चलना सीखा, तेरी उँगली थामी थी, हर गिरने पर मुसकाये तुम, तुमने बाँह मेरी थामी थी। तेरे साए में खिली रही मैं, तेरी मुसकान से जीती, बाबा, ओ बाबा, तू ही तो है मेरी प्रीति। तू मेरी धुन है, तू मेरा राग, तेरे बिना अधूरा है सारा साज। तू ही है वो गीत, जो दिल में बसा, बाबा, तू ही तो मेरा है आसरा। जब डर लगा अँधेरों से, तेरी आवाज़ ने पुकारा, "डर मत बेटी, मैं हूँ तेरे साथ," और फिर सारा डर उतारा। मेरे हर ख्वाब में तू बसता, तेरी सीखों में है सही रस्ता। बाबा, ओ बाबा, तू है मेरा पहला ग्रंथा। तू मेरी धुन है, तू मेरा राग, तेरे बिना अधूरा है सारा साज। तू ही है वो गीत, जो दिल में बसा, बाबा, तू ही तो मेरा है आसरा। तेरे नाम की छाया में, मैं हर दर्द सह जाती हूँ, तेरी बेटी हूँ, ये कहकर, दुनिया से लड़ जाती हूँ। सारी मुश्किल लगे आसान जब मैं लेती हूँ तेरा नाम बाबा, ओ बाबा, तेरे चरणों में मेरे चारों धाम। "बाबा, मेरी धुन में तुम, मेरा हर राग हो तुम।"